पिछले शनिवार हम ने औद्योगिक विवाद अधिनियम के बारे में बात आरंभ की थी। आप जानना चाह रहे होंगे कि औद्योगिक विवाद क्या हैं? लेकिन उस से पहले यह जान लें कि औद्योगिक विवाद उत्पन्न कहाँ होते हैं? यह एक सामान्य बात है कि औद्योगिक विवाद किसी उद्योग में ही उत्पन्न हो सकते हैं। इस कारण पहले यह जानना बेहतर होगा कि उद्योग क्या है?
औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में “उद्योग” शब्द को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है।
(j) “Industry” means any business, trade, undertaking, manufacture or calling of employers and includes any calling, service, employment, handicraft, or industrial occupation or avocation of workmen;
(ञ) “उद्योग” का अर्थ है कोई भी व्यवसाय, व्यापार, उपक्रम, निर्माण या नियोक्ताओं द्वारा किया जाने वाला धंधा और कोई भी धंधा, सेवा, रोजगार, हस्तकला, या औद्योगिक धन्धा या कामगार द्वारा किया जाने वाली उपजीविका भी शामिल है;
भारत सरकार का टेलीकॉम विभाग, डाक विभाग, नगरपालिकाओं, पंचायतों, पंचायत समितियों का कर विभाग, जनपरिवहन विभाग, अग्निशमन विभाग, विद्युत विभाग, जलप्रदाय विभाग, नगर अभियांत्रिकी विभाग, सफाई विभाग, स्वास्थ्य विभाग, बाजार विभाग, शिक्षा विभाग, निर्माण विभाग, उद्यान विभाग, मुद्रण विभाग अनेक विभाग, सामान्य प्रशासन विभाग एवं कुछ अन्य विभागों को न्यायालयों ने उद्योग माना है। जिन अस्पतालों और चेरिटेबल संस्थाओं में कर्मचारी नियोजित किए जाते हैं या जो लाभ कमाते हैं वे भी उद्योग माने गए हैं। भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी, भारतीय कैंसर सोसायटी, रीयल ऐस्टेट कंपनी जो मकानों को लीज पर देती है और उन की मरम्मत व देखरेख के लिए कर्मचारी नियोजित करती है, सरकार द्वारा चलाए जाने वाले ट्य़ूबवैल तथा हैण्डपंप सुधारने वाले विभागों को उद्योग माना गया है। बड़े क्लबों को, विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों को भी उद्योग माना गया है। सहकारी समितियाँ, इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स, कृषि कार्य करने वाली कंपनियाँ, खादी ग्रामोद्योग संघ, सिंचाई विभाग, राज्य कर्मचारी बीमा व प्रोवीडेण्ट फण्ड विभाग, समाज कल्याण विभाग, पर्यटन विभाग, स्टेट लॉटरी विभाग, अन्य अनेक विभागों को उ्दयोग माना गया है।
इस तरह हम मान सकते हैं कि प्रत्येक वह गतिविधि जिस में कर्मचारी नियोजित किए जाते हैं वह उद्योग हो सकती है। इस कारण से कर्मचारी नियोजित करने वाले नियोजकों को जाँच लेना चाहिए कि वे जो गतिविधि कर रहे हैं वह उद्योग तो नहीं है। यदि वह उद्योग है तो उन्हें औद्योगिक विवाद अधिनियम के प्रावधानों का पालन करना होगा। हमारे यहाँ छोटे नियोजक इन कानूनों पर ध्यान नहीं देते हैं और अक्सर इस के उपबंधों की पालना न करने के कारण मुसीबत में फँस जाते हैं। इस तरह प्रत्येक कर्मचारी को यह जाँच लेना चाहिए कि वह जहाँ काम कर रहा है वह उद्योग है या नहीं। कर्मचारी भी अज्ञान के कारण अक्सर नुकसान उठाते हैं और अपने अधिकारों से वंचित रहते हैं।