पिछले आलेख में मैं ने चैक अनादरण के अपराध पर लिखे आलेखों पर आई जिज्ञासाओं और प्रश्नों पर बात की थी आज उस सिलसिले को जारी रखता हूँ…..
बवाल भाई का कहना बिलकुल सही है। चैक अनादरण के अपराध में शिकायत कर्ता से इस बात की कोई पूछताछ ही नहीं है कि उस के पास यह चैक धारण करने का कारण क्या था और वह सही है भी या नहीं। इस बात का लाभ गैर कानूनी रूप से सूदखोरी का काम कर रहे लोग भारी मात्रा में उठा रहे हैं। ब्याज पर रुपया उठाने के जिस धंधे को कानून के जरिए नियमित किया गया था। वह कानून ही बेकार सिद्ध हो गया है। या तो संसद और विधानसभाएँ किसी भी ब्याज पर किसी को भी रुपया उधार देना और उस का कोई हिसाब न देना कानूनी कर दे, या फिर चैक के अनादरण की शिकायत करने वाले के लिए इन सब बातों को प्रमाणित करना आवश्यक कर दे। वरना ये विसंगतियाँ कानून के प्रति आस्था को ही समाप्त कर देंगी।
ताऊ रामपुरिया जी कहते हैं कि, ‘चेक के अनादरण को दंडनीय मामला बनाने के पीछे नीयत तो नेक थी, और फ़र्क यह तो अवश्य ही आया है कि बोगस चेक देते समय आदमी सोचने अवश्य लगा है। कुछ कठिनाइयां भी कम हुई हैं, पर जो मामले कोर्ट मे हैं उन पर त्वरित कार्यवाहियाँ शायद संसाधनों के अभाव मे नहीं हो पाती हैं।
तकनीक दृष्टा जी जो अमरीका से हैं वे अंग्रेजी में कहते हैं कि, ‘मुझे भारतीय बैंकों के बारे में पता नहीं, पर यहाँ संयुक्त राज्य के बैंक चैक के अनादरित होते ही 5 से 10 डालर का दंड वसूलते हैं। यदि बैंक भारत में भी ऐसा करने का प्रस्ताव करें तो उसे भारत में भी मान्य होना चाहिए।’
आलेख इस बार भी अपनी सीमा से बड़ा होता जा रहा है इस लिए इस सिलसिले को जारी रखते हुए यहीं विराम देता हूँ। चैक अनादरण के अपराध पर लिखे आलेखों पर आई जिज्ञासाओं और प्रश्नों पर बात अगले आलेख में जारी रहेगी। (जारी)