तीसरा खंबा

किसी भी कानूनी समस्या के हल के लिए तिथियाँ और समय जरूरी तथ्य हैं

समस्या-

लिंगराज यादव ने रायगढ़, छत्तीसगढ़ से पूछा है-

मेरे पिताजी के दो भाई थे,  मेरे बड़े पिताजी तीनों भाइयों में बड़े थे। उस समय एक वनभुमि कब्ज़ा मेरे दादाजी द्वारा किया गया था व तब शासन द्वारा वन भूमि पट्टा दिया गया। मेरे पिताजी और चाचाजी काफी छोटे थे जिस कारण मेरे दादाजी द्वारा यह कहकर  बड़े पापाजी के नाम में  पट्टा कराया गया कि भाई- भाई भविष्य में उसे बाँट लेंगे। मेरे बड़े पापा का देहांत 20 वर्ष पूर्व हो चुका है। फलस्वरुप उनके वारिस के रूप में उनके पुत्र व पुत्रियों के नाम में फौती इन्तकाल हो गया है। जिसका लाभ उठाते हुए अन्य भाइयों को नहीं देने की बात कही जा रही है, जो विवाद का कारण बन रहा है।  हम अपना हक़ कैसे पा सकते हैं?

समाधान-

समस्या को समझने के लिए तिथियाँ और समय अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं। कानून कोई स्थायी चीज नहीं है। वे नए बनते हैं पुराने निरस्त किए जाते हैं। समय के साथ साथ व्यक्तियों के मामले अलग अलग कानूनों से शासित होते हैं। इस कारण जब भी की कानूनी समस्या कहीं समाधान के लिए प्रस्तुत की जाए तो तिथियों का विवरण सही सही अवश्य प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

यहाँ आपने यह नहीं बताया है कि पट्टा कब किस तिथि को बना? उस समय तीनों भाइयों की आयु क्या थी? फिर दादाजी और बड़े पिताजी का देहान्त कब हुआ और कब फौती इन्तकाल (मृत्यु के फलस्वरूप होने वाला नामान्तरण) कब हुआ?

एक और तथ्य इस मामले में उपलब्ध नहीं है जो इस समाधान की सबसे जरूरी कड़ी है। आप यह किस आधार पर कहते हैं कि दादाजी ने जब पट्टा बनवाया तब उन्हों ने भविष्य में भूमि को बांट देने की बात कही थी? यह एक ऐसा तथ्य है जिसे मजबूती से अदालत में साबित करना पड़ेगा, जो आपके लिए असम्भव प्रतीत होता है। यह भी तो हो सकता है कि पट्टा बनाते वक्त दादाजी ने सोचा हो कि यह संपत्ति बड़े के नाम ठीक रहेगी। बाद में छोटों के नाम भी कोई और सम्पत्ति खरीद देंगे। हो सकता है उन्होंने कोई सम्पत्ति खरीद दी हो। यह भी हो सकता है वे ऐसा नहीं कर पाए हों। तब भी आपका उस जमीन पर किसी तरह का हक दस्तावेजों के आधार पर नहीं बनता है।

सरकार ने पट्टा उस जमीन पर कब्जेदार को दिया है अर्थात आपके दादाजी ने आपके बड़े पिताजी का उस जमीन पर कब्जा बताया और जमीन आपके बड़े पिताजी के नाम कब्जे में आ गयी। आज तक किसी ने उस पर आपत्ति नहीं की। नामान्तरण भी हुए अनेक वर्ष हो चुके होंगे। यह हो सकता है कि अभी तक उस जमीन से होने वाली आय का तीनों भाइयों के परिवार में वितरण होता हो। लेकिन केवल इस आधार पर आप का दावा सही नहीं हो सकता। बेनामी सम्पत्ति से सम्बन्धित कानून है कि जो सम्पत्ति जिस के नाम है उसी के नाम मानी जाएगी। हमें लगता है कि आपके दावे में कोई सार नहीं है। फिर भी आपको अपने दस्तावेजों के साथ किसी स्थानीय दीवानी और राजस्व मामलों में प्रेक्टिस करने वाले वरिष्ठ वकील से परामर्श कर के अपनी तसल्ली कर लेनी चाहिए।



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