समस्या-
आगरा, उत्तर प्रदेश से विकास गुप्ता ने पूछा है-
मैं एक शादी शुदा और एक प्राइवेट नौकरी करने वाला लड़का हूँ। मेरी शादी अभी हाल में ही हुई है। मेरी समस्या यह है कि मैं जिस मकान मैं रहता हूँ वह मेरे पिताजी का है और मेरी माँ के नाम पर है। मेरे घर में मेरे अलावा मेरे दो और शादी शुदा भाई हैं जो अलग रहते हैं। मेरे सबसे बड़े भाई को मेरे पिताजी ने अपना बिज़्नेस शुरू करने के लिए 5,00,000 रुपये दिए थे जिसके बदले मेरे बड़े भाई मेरे पिताजी को हर महीने 9,000 रुपये देते हैं। मेरे बड़े भाई ने सारा बिज़नेस अपने नाम करवा लिया है और उसी बिज़नेस से उन्होने एक अच्छा मकान भी ले लिया है और वो अपने परिवार के साथ आराम से रहते हैं। लेकिन वो अब हमारे मकान के पीछे भी पड़े हुए हैं। पिताजी को बार बार बटवारे के लिए मनाते रहते हैं। इसीलिए वो पिताजी के लिए कुछ ना कुछ करते रहते हैं। लेकिन मेरे पिताजी ने मेरे लिए कभी भी कुछ नहीं किया। सिर्फ़ 12वीं तक पढ़ाया और छोड़ दिया और कहा अब हमारे पास तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं है। मैं और मेरी पत्नी उसी मकान के ऊपर बने एक स्टोर रूम में रहते हैं। मई पूरे दिन भर बाहर नौकरी करता हूँ और मेरे माँ-बाप मेरी पत्नी से पूरे दिन भर घर का सारा काम कराते रहते हैं। जब कि वह गर्भवती है। मैं कुछ बोलता हूँ तो घर से निकाल देने की धमकी देते रहते हैं। मेरे पास अभी इतनी व्यवस्था भी नहीं है कि मैं अभी अलग जा कर रहूँ। मुझे डर लगता है कि मेरे पिताजी मेरी माँ को धमका कर सारी संपत्ति बड़े भाई को दे दें और मुझे मेरी पत्नी के साथ निकाल दिया जाए। कई बार मेरे और पिताजी के बीच इसी बात को ले के बहस बी हो चुकी है। लेकिन मेरे पिताजी उसी वक्त पुलिस को बुला लेते हैं और कहते है कि एक बदमाश हमारे घर में जबरन घुसा हुआ है और निकल नहीं रहा है। साथ ही साथ मैं आपको यह भी बताना चाहता हूँ कि मेरी माँ पढ़ी लिखी नहीं है इसी लिए मेरे पिताजी और भाई मेरी मम्मी को धमका कर किसी ना किसी पेपर पर अंगूठा लगवाते रहते हैं। मेरे पिताजी पूरी तरह से मेरे बड़े भाई का साथ दे रहे हैं। मेरा बीच वाला भाई गुड़गाँव में अपनी पत्नी के साथ नौकरी करता है। मैं सिर्फ़ इतना जानना चाहता हूँ कि क्या मेरे बड़े भाई के पास सारी संपत्ति आ जाने के बाद मेरा कुछ भी हक नहीं रह जाएगा? मैं कानूनी रुप से क्या कर सकता हूँ जिस से मेरे 75 वर्षीय पिताजी सारी संपत्ति मेरे बड़े भाई के नाम नहीं करें।
समाधान-
आप के माता-पिता की उम्र बहुत अधिक है। ऐसी अवस्था में हर माता पिता सदैव उसी संतान की तरफदारी करने लगता है जिस से उन्हें सेवा कराने और जरूरत पड़ने पर इलाज वगैरह का खर्च करने की प्रत्याशा होती है। आप अभी खुद को अलग जा कर रहने में सक्षम नहीं पाते हैं तो वे आप से कैसे प्रत्याशा कर सकते हैं। यही कारण है कि वे आप के भाई की तरफदारी करते हैं और आप को नालायक समझ कर व्यवहार करते हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे मकान को आप के भाई को हस्तान्तरित कर देंगे। वे आप के साथ अच्छा व्यवहार भले ही न करें। लेकिन आप को अपनी संपत्ति से पूरी तरह वंचित कर दें कर पाना उन के लिए बहुत कष्टकारी होगा।
आप के पिताजी ने मकान आप की माता जी के नाम से खरीदा है। लेकिन कानून यह है कि मकान जिस के नाम से खरीदा गया है उसी का माना जाएगा। ऐसा कोई दावा कि मकान पिताजी के पैसे से खरीदा गया था और उन का है कानून द्वारा नहीं माना जाएगा। इस कारण से आप को यह मान कर चलना चाहिए कि मकान आप की माता जी का है।
किसी भी स्त्री की संपत्ति उस की अपनी संपत्ति होती है। इस कारण से वह मकान उन की संपत्ति है और वे अपने जीवनकाल में किसी को भी हस्तान्तरित कर सकती हैं। उसे बेच सकती हैं, दान कर सकती हैं। लेकिन यह विक्रय या दान केवल रजिस्टर्ड विलेख के द्वारा ही हो सकता है। यह विलेख जब तक उप पंजीयक के यहाँ उचित स्टाम्प ड्यूटी पर ही पंजीकृत हो सकता है। उत्तर प्रदेश में स्टाम्प ड्यूटी लगभग दस प्रतिशत है। इस तरह यदि आप की माता जी का यह मकान 10 लाख रुपयों की कीमत का है तो उस पर एक लाख रुपया स्टाम्प ड्यूटी देनी पड़ेगी। इस तरह यह मुमकिन नहीं लगता कि आप के भाई और पिताजी माता जी को उपपंजीयक के कार्यालय में ले जा कर मकान आप के भाई के नाम कराने के लिए कोई दानपत्र या विक्रय पत्र लिखा पाएंगे।
दूसरी सूरत यह है कि आप के भाई माता जी की कोई वसीयत करवा लें। यदि वसीयत उप पंजीयक के यहाँ पंजीकृत करवाई जाती है तो उसे चुनौती देना कठिन है। लेकिन यदि वे कोई अपंजीकृत वसीयत लिखाते हैं तो उसे चुनौती दी जा सकती है। वसीयत से आप की माताजी के जीवन काल में संपत्ति माता जी की ही रहेगी। उन के देहान्त के उपरान्त ही वह उस की होगी जिस के नाम की वसीयत की जाती है। आप की माता जी के देहान्त के बाद यदि कोई वसीयत सामने आए तो उसे इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि वह उन की स्वतंत्र इच्छा से की गई नहीं है। किसी भी वसीयत को वसीयत करने वाला अपने जीवन काल में निरस्त कर सकता है और अंतिम वसीयत ही मान्य होती है।
यदि आप की माता जी उक्त मकान को अपने जीवन काल में विक्रयपत्र या दान पत्र द्वारा हस्तान्तरित नहीं करती हैं और कोई वसीयत भी नहीं करती हैं तो उत्तराधिकार के नियम के अनुसार आपके पिताजी और आप तीनों भाई और यदि आपकी कोई बहिन हो तो वे सब बराबर के हिस्से के अधिकारी होंगे। तब आप अपने हिस्से के लिए बंटवारे का दावा कर सकते हैं। उन के जीते जी तो बँटवारा संभव नहीं है।
आप उस मकान में अभी रह रहे हैं। एक तरह से आप अपनी माता जी की अनुमति से वहाँ निवास कर रहे हैं। इस तरह आप एक लायसेंसी हैं। आप को माता जी के जीते जी निकालने का वैधानिक मार्ग यही है कि माता जी एक कानूनी नोटिस दे कर आप का लायसेंस रद्द करें और फिर भी आप के द्वारा मकान खाली न करने पर आप के विरुद्ध मकान खाली करने का दावा करें। इस दावे में भी उनहें कोर्ट फीस देनी पड़ेगी। और दावे का निर्णय होने में भी कम से कम चार पाँच बरस और उस की अपील में भी इतना ही समय लग जाएगा। तब तक वे आप को उस मकान से नहीं निकाल सकते। पुलिस को बुलाने का जो नाटक आप के पिताजी करते हैं वह केवल आप को धमकाना मात्र है। पुलिस आप को वहाँ से निकाल नहीं सकती। आप निर्भीक हो कर अपने भाई और पिता से कह सकते हैं कि आप परिवार के सदस्य की हैसियत से वहाँ रहते हैं आप को भी अपने माता पिता के मकान में रहने का अधिकार है। यदि उन्हें आप को निकालना ही है तो वे आप के विरुद्द मुकदमा कर दें। आप बिना अदालत के आदेश के मकान को खाली नहीं करेंगे। यदि आप के माता-पिता आप की गर्भवती पत्नी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते तो आप उन्हें स्पष्ट कहें कि यह उचित नहीं है। यदि आप की पत्नी उन के विरुद्ध घरेलू हिंसा की शिकायत करेगी तो उन्हें फिजूल में परेशानी होगी। इस तरह आप अपनी पत्नी को उत्पीड़न से भी बचा सकते हैं।