रमेश कुमार जैन ने पूछा है ………
क्या आरोप पत्र (चालान ) दाखिल करने की कोई समय सीमा भी होती है, या नहीं? अगर होती है, तब कितनी होती है? और क्या कोई ऐसी विशेष धारा भी होती है.जिसमें समय सीमा का कोई मापदंड नहीं होता है आरोप पत्र दाखिल करने का? इसके अतिरिक्त धारा 498-ए व 406 में यह कितने दिनों की समय सीमा निर्धारित है।
उत्तर – – –
रमेश जी,
सभी अपराधों का विचारण दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुसार होता है। इस संहिता में पुलिस द्वारा आरोप पत्र प्रस्तुत करने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। लेकिन इस में न्यायालय द्वारा किसी अभियुक्त के विरुद्ध प्रसंज्ञान लिए जाने के लिए समय सीमा निर्धारित की गई है। इस संहिता का अध्याय 36 इसी मामले में है। धारा 468 में परिसीमा निर्धारित की गई है। इस के अनुसार …..
1. यदि कोई मामला केवल जुर्माने से दंडनीय है तो उस की समय सीमा छह माह है;
2. यदि कोई मामला एक वर्ष से अनधिक अवधि के कारावास से दंडनीय है तो समय सीमा एक वर्ष है;
3. यदि कोई मामला तीन वर्ष से अनधिक अवधि के कारावास से दंडनीय है तो समय सीमा तीन वर्ष है: तथा
4. यदि कोई मामला तीन वर्ष से अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय है तो उस के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
यह समय सीमा अपराध की तिथि से आरंभ होती है जहाँ अपराध की जानकारी व्यथित व्यक्ति को या पुलिस अधिकारी को नहीं है वहाँ समय सीमा उस दिन से आरंभ होती है जिस दिन अपराध किए जाने की सूचना इन में से किसी को प्राप्त होती है। जहाँ यह ज्ञात नहीं है कि अपराध किसने किया है वहाँ समय सीमा तब प्रारंभ होगी जब व्यथित व्यक्ति अथवा पुलिस अधिकारी को पता लगता है कि अपराध किसने किया है। इस मामले में अवधि की गणना के लिए वह दिन छोड़ दिया जाता है जिस दिन इस की गणना की जानी है।
लेकिन कुछ अपराध हैं जो लगातार चालू रहते हैं, ऐसे मामलों में समय सीमा प्रत्येक उस क्षण से लागू होगी जिस के दौरान अपराध चालू रहता है। इन बातों के होते हुए भी यदि न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि देरी का उचित स्पष्टीकरण है तो न्याय हित में न्यायालय अपराध का संज्ञान ले सकता है।
धारा 498-ए तथा धारा 406 भा.दं.सं.में अधिकतम दंड तीन वर्ष का कारावास है इस कारण से इस मामले में क्रूरता किए जाने की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के अंतर्गत न्यायालय मामले का प्रसंज्ञान ले सकता है। लेकिन इन मामलों में कभी कभी अपराध लगातार चालू रहने वाला होता है। ऐसी स्थिति में जिस तिथि तक अपराध चालू रहता है उस से तीन वर्ष की अवधि के भीतर न्यायालय द्वारा इन अपराधों का प्रसंज्ञान लिया जा सकता है।
एक बात और है जो इस परिसीमा के संदर्भ में यहाँ उल्लखित की जा सकती है। कुछ मामलों में अभियुक्त को गिरफ्तार कर लिया जाता है। लेकिन पुलिस द्वारा आरोप पत्र दाखिल नहीं किया जाता है। सामान्यतः ऐसे मामलों में आरोप पत्र प्रस्तुत करने की समय सीमा गिरफ्तारी के दिन से 90 दिन की है। यदि इस अवधि में पुलिस द्वारा आरोप पत्र दाखिल नहीं किया जाता है तो अभियुक्त को जमानत पर छूटने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। कुछ विशिष्ठ मामलों में पुलिस को आरोप पत्र प्रस्तुत करने के लिए 180 दिनों की छूट दी गई है। यदि इन विशिष्ठ मामलों में पुलिस 180 दिन तक आरोप पत्र प्रस्तुत न करे तो अभियुक्त को जमानत पर छूटने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। लेकिन इस से मुकदमा समाप्त नहीं होता।