आप का प्रश्न बहुत उपयोगी है। कोई भी व्यक्ति जो अपने जीवनकाल में संपत्ति धारण करता है, उस की मृत्यु होते ही, उस की संपत्ति के अधिकारी उस के उत्तराधिकारी हो जाते हैं। व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत उस की संपत्ति का उत्तराधिकार की विधि के अनुसार बंटवारा होना चाहिए और प्रत्येक उत्तराधिकारी को उस के अधिकार का भाग मिलना चाहिए। जिस जिस व्यक्ति के पास मृतक की संपत्ति होती है वे सभी उस के न्यासी होते हैं। उन्हें चाहिए कि वे मृतक के उत्तराधिकार को निश्चित कर प्रत्येक उत्तराधिकारी को उस के हिस्से की संपत्ति सोंप दें। लेकिन ऐसा नहीं होता। जो संपत्ति संबंधियों, मित्रों आदि के पास होती है वे उसे अपने पास रख लेते हैं, तब उत्तराधिकारी को अपने हिस्से की संपत्ति प्राप्त करने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं, और संपत्ति जिन लोगों के आधिपत्य में है वे उस के हिस्से की संपत्ति देने से इन्कार करते हैं तो उत्तराधिकारी को कानून का सहारा लेना होता है। यह भी देखा गया है कि उत्तराधिकार की लड़ाई में अनेक बार झगड़े होते हैं और लोगों के सम्बन्ध खराब हो जाते हैं, यहाँ तक कि कई बार फौजदारी की नौबत आ जाती है। लोग घायल हो जाते हैं अनेक बार झगड़ों में जान तक चली जाती है।
यदि किसी व्यक्ति को अक्सर मृतक की कुछ न कुछ संपत्ति किसी संस्था, जैसे बैंक, पोस्ट ऑफिस, बीमा कंपनी, सरकार या नियोजक आदि के पास छूट जाती है। यदि उस संस्था के पास मृतक ने अपनी संपत्ति के लिए कोई नामिति निश्चित किया हुआ होता है तो वह संस्था उस की संपत्ति को आवश्यक औपचारिकताएँ पूरी कर देने के उपरांत नामिति को दे देते हैं। लेकिन जब ऐसी संपत्ति धारण करने वाली संस्था के पास इस तरह का कोई नामांकन नहीं होता है तो उस संस्था के लिए यह निश्चित करना कठिन होता है कि वह उस संपत्ति को किसे सोंपे। ऐसी अवस्था में ऐसी संस्थाएँ मृतक की संपत्ति पर अपना अधिकार प्रदर्शित करने वाले व्यक्ति को निर्देश देती हैं कि वे न्यायालय से उत्तराधिकार प्रमाण-पत्र प्राप्त कर लाएँ। ऐसी संस्थाओं के पास यह निश्चित करने के लिए अन्य कोई मार्ग भी नहीं होता जिस से वे यह सुनिश्चित कर सकें कि मृतक की संपत्ति किसे सौंपी जाए। यदि ऐसी संस्थाएँ बिना उत्तराधिकार प्रमाण पत्र के मृतक की संपत्ति किसी भी व्यक्ति को सोंप दें और बाद में कोई अन्य दावेदार उपस्थित हो जाए तो इन संस्थाओं बेमतलब कानूनी मुकदमेबाजी में उलझना पड़ जाता है।
उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी करने के लिए प्रत्येक जिले का जिला न्यायालय अधिकृत है। आप को भी अपनी माँ की उन संपत्तियों के लिए जो कि आप के या आप की माता जी के आधिपत्य में नहीं हैं प्राप्त करने के लिए जिस जिले में आप की माँ निवास करती थीं वहाँ उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए आवेदन करना होगा। इस आवेदन पर न्यायालय आप की माता जी के सभी उत्तराधिकारियों को सूचना प्रेषित करेगा तथा एक सामान्य सूचना समाचार पत्र में प्रकाशित करने का निर्देश देगा। यह सभी कार्यवाही हो जाने के उपरांत यदि किसी व्यक्ति से कोई आपत्ति प्राप्त होती है तो आप की और आपत्तिकर्ता की साक्ष्य अभिलेखित कर के निर्णय देगा कि किस प्रकार से उत्तराधिकार प्रमाण पत्र बनाया जाएगा। इस निर्णय के उपरांत आप को न्यायालय में उत्तराधिकार प्रमाण पत्र के लिए निश्चित शुल्क के स्टाम्प पेपर प्रस्तुत करने होंगे। उन्हीं स्टाम्प पेपर पर उत्तराधिकार प्रमाण पत्र आप को प्रदान किया जाएगा। जिस के आधार पर आप पोस्ट ऑफिस तथा बैंक से राशियाँ प्राप्त कर सकेंगे। उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए होने वाली न्यायालयीन कार्यवाहियाँ आसान नहीं हैं। इस के लिए किसी वकील की सेवाएँ प्राप्त करना हमेशा सुविधाजनक होता है। आप को भी चाहिए कि आप उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए अपने जिले की जिला अदालत में अभ्यास करने वाले किसी वकील की सेवाएँ प्राप्त करें।