पिछले आलेख न्यायालयों की श्रेणियाँ और उन में न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ पर राजीव के प्रश्न के पूर्वार्ध का उत्तर दे दिया गया था, उन के प्रश्न का उत्तरार्ध था कि क्या गलत कार्य करने पर जज को हटाया जा सकता है?
इस का उत्तर है कि हटाया जा सकता है। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को छोड़ दें तो भारत में किसी भी न्यायालय के न्यायाधीश को उस के पद से हटाए जाने की प्रक्रिया अधिक दुरूह नहीं है। किसी भी अन्य न्यायालय के न्यायाधीश के पदों के लिए सेवा नियम बने हुए हैं। जिन के अंतर्गत कोई भी गलत कार्य (दुराचरण) करने पर उन के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही की जा सकती है। अनुशासनिक कार्यवाही के लिए प्रक्रिया का निर्धारण किया हुआ है। सभी अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्च न्यायालय करता है। यदि कोई व्यक्ति किसी न्यायाधीश की शिकायत उसे नियुक्त करने वाले उच्च न्यायालय को करता है तथा अपनी शिकायत के समर्थन में पर्याप्त साक्ष्य भी उपलब्ध कराता है और संबंधित उच्च न्यायालय उस शिकायत पर प्रारंभिक जाँच करने के उपरांत यह पाता है कि न्यायाधीश के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार हैं, तो उस न्यायाधीश को आरोप पत्र दिया जा सकता है।
आरोप पत्र देने के उपरान्त आरोपों पर जाँच की जाएगी जिस में आरोपी न्यायाधीश को अपने बचाव का पूरा अवसर प्रदान किया जाएगा। जाँच के दौरान यह साबित हो जाने पर कि न्यायाधीश ने दुराचरण किया है उसे उस के पद से हटाए जाने के दंड से दंडित किए जाने का आदेश पारित किया जाएगा। यदि यह प्रतीत होता है कि उस न्यायाधीश ने कोई अपराध किया है तो उस के विरुद्ध सामान्य नागरिक की तरह अपराधिक प्रकरण दर्ज किया जा कर उसे दंडित किया जा सकता है।
उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के अंतर्गत होती है। उन्हें संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के अन्तर्गत प्रक्रिया के माध्यम से ही हटाया जा सकता है। इस के अंतर्गत यह आवश्यक है कि लोकसभा के 100 अथवा राज्य सभा के 50 सांसद एक साथ शिकायत अपने सदन के अध्यक्ष को प्रस्तुत करें। अध्य़क्ष उस शिकायत पर तीन सदस्यों की एक समिति का गठन करता है। इस समिति में शिकायत सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के विरुद्ध होने पर सुप्रीमकोर्ट के ही दो न्यायाधीश और उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के विरुद्ध होने पर एक सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश और एक संबंधित उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और एक न्यायविद होता है।
यह समिति शिकायत की जाँच करती है और अपनी सिफारिश अध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत करती है। यदि यह सिफारिश करती है कि जज को हटाने की कार्यवाही की जानी चाहिए तो इम्पीचमेंट के लिए संसद के दोनों सदनों में प्रस्ताव लाया जाता है जिस पर दोनों सदनों में बहस होती है, आरोपित न्यायाधीश को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है। यह बहस एक ही सत्र में पूरी होने पर तथा न्यायाधीश को हटाने के समर्थन में प्रस्ताव दोनों सदनों में उन के बहुमत तथा उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई बहुमत मतों से पारित होने पर आरोपित न्यायाधीश को हटाने के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है जो न्यायाधीश को हटाने के लिए आदेश पारित करता है। यह समस्त प्रक्रिया अत्यनत दुरूह है और लगभग असंभव जैसी है। इस कारण से यह विचार किया जा रहा है कि इस प्रक्रिया को आसान बनाया जाए। लेकिन यह संविधान में संशोधन से ही संभव है।
उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के अंतर्गत होती है। उन्हें संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के अन्तर्गत प्रक्रिया के माध्यम से ही हटाया जा सकता है। इस के अंतर्गत यह आवश्यक है कि लोकसभा के 100 अथवा राज्य सभा के 50 सांसद एक साथ शिकायत अपने सदन के अध्यक्ष को प्रस्तुत करें। अध्य़क्ष उस शिकायत पर तीन सदस्यों की एक समिति का गठन करता है। इस समिति में शिकायत सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के विरुद्ध होने पर सुप्रीमकोर्ट के ही दो न्यायाधीश और उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के विरुद्ध होने पर एक सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश और एक संबंधित उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और एक न्यायविद होता है।
यह समिति शिकायत की जाँच करती है और अपनी सिफारिश अध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत करती है। यदि यह सिफारिश करती है कि जज को हटाने की कार्यवाही की जानी चाहिए तो इम्पीचमेंट के लिए संसद के दोनों सदनों में प्रस्ताव लाया जाता है जिस पर दोनों सदनों में बहस होती है, आरोपित न्यायाधीश को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है। यह बहस एक ही सत्र में पूरी होने पर तथा न्यायाधीश को हटाने के समर्थन में प्रस्ताव दोनों सदनों में उन के बहुमत तथा उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई बहुमत मतों से पारित होने पर आरोपित न्यायाधीश को हटाने के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है जो न्यायाधीश को हटाने के लिए आदेश पारित करता है। यह समस्त प्रक्रिया अत्यनत दुरूह है और लगभग असंभव जैसी है। इस कारण से यह विचार किया जा रहा है कि इस प्रक्रिया को आसान बनाया जाए। लेकिन यह संविधान में संशोधन से ही संभव है।