सुभाष ने हिसार, हरियाणा से समस्या भेजी है कि-
खास वसीयत का अधिकार हिंदुओं को नहीं प्राप्त है। खास वसीयत लिखित या कुछ सीमाओं तक मौखिक हो सकती है। खास वसीयत क्या है? मेरे दादा जी की स्वअर्जित सम्पति थी और उन्होंने मेरे नाम वसीयत की थी| मैंने उन के स्वर्गवास होने पर उस वसीयत का इन्तकाल नहीं करवाया और वो सम्पति उनके उतराधिकारियों के नाम हो गई। उन को गुजरे हुए अभी 2 महीने हुए हैं। अब मुझे क्या करना चाहिए? क्या यह वसीयत निरस्त हो गई है?
समाधान-
कानून में वसीयत केवल वसीयत होती है कोई वसीयत खास और आम नहीं होती। आप यह खास वसीयत शब्द कहाँ से ले कर आए इस का पता करें। यदि एक ही संपत्ति के सम्बन्ध में एक व्यक्ति ने एक से अधिक वसीयत की हों तो अन्तिम वसीयत ही प्रभावी होती है। वसीयत वसीयत की विधि से होनी चाहिए। अर्थात बिना किसी प्रभाव. लालच या दबाव के की गई होनी चाहिए। वसीयत पर वसीयत करने वाले के हस्ताक्षर दो गवाहों के सामने होने चाहिए और गवाहों के हस्ताक्षर भी वसीयत पर होने चाहिए।
यदि संपत्ति को वसीयत प्रस्तुत न होने के कारण सहज उत्तराधिकारियों का नामांतरण हो चुका है तो उस से परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। इस आदेश से वसीयत खारिज नहीं होती। आप को नामांतरण के आदेश की अपील करनी चाहिए कि यह आदेश बिना किसी सामान्य सूचना के पारित किया गया है जो गलत है। नामांतरण वसीयत के आधार पर होना चाहिए। आप की अपील मंजूर की जा कर अपीलीय अधिकारी नामांतरण करने वाले अधिकारी को पुनः वसीयत की जाँच करते हुए नामांतरण खोलने का आदेश दे देगा। अपील करने की अवधि की एक सीमा होती है। आप को नामान्तरण की जानकारी मिल चुकी है इस कारण से आप को तुरन्त अपील करनी चाहिए। देरी होने पर आप को हानि उठानी पड़ सकती है। इस मामले में किसी स्थानीय वकील से तुरन्त संपर्क कर के बिना कोई देरी किए कार्यवाही करें।