बैंक से अनादरण का प्रमाण पत्र प्राप्त हो जाने के 30 दिनों के भीतर चैक का धारक चैक जारी करने वाले व्यक्ति को एक लिखित सूचना प्रेषित करे कि अनादृत चैक की राशि पन्द्रह दिनों में चैक धारक को अदा की जाए अन्यथा चैक देने वाले के विरुद्ध अपराधिक कार्यवाही की जाएगी। अब पन्द्रह दिनों के भीतर यदि चैक जारी करने वाला व्यक्ति उक्त चैक की राशि भुगतान कर चैक वापस प्राप्त कर लेता है या भुगतान की रसीद प्राप्त कर लेता है तो चैक अनादरण अपराध बनते बनते रह जाता है। लेकिन यदि चैक जारी करने वाले ने चैक धारक को चैक की राशि इस अवधि में अदा नहीं की तो फिर चैक का अनादरण एक अपराध बन जाता है।
अब भी चैक अनादरण एक ऐसा अपराध है पन्द्रह दिनों का चैक राशि भुगतान का नोटिस मिलने के बाद पन्द्रह दिनों की अवधि समाप्त हो जाने के 30 दिनों में उस की शिकायत चैक धारक द्वारा अदालत को प्रस्तुत न की जाए तो फिर उस मामले में किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की जा सकेगी। कोई भी उस अपराध का संज्ञान नहीं कर सकेगा।
प्रत्येक प्रकार की धन वसूली के मामलों में अदालत द्वारा यह निर्धारित (डिक्री पारित) कर देने पर कि धन वसूली योग्य है। एक निष्पादन प्रार्थना पत्र पर वसूली की जा सकती है और ऋणी को जेल भेजने का भी प्रावधान है। लेकिन चैक अनादरण के मामले में यह निर्धारण आवश्यक ही नहीं है कि कोई धन वसूली योग्य था भी या नहीं? बस चैक अनादरण होना चाहिए। उस के 30 दिनों में पन्द्रह दिनों में भुगतान करने का नोटिस होना चाहिए और नोटिस मिलने की तिथि से पन्द्रह दिनों में भुगतान न होने पर अगले तीस दिनों मे एक शिकायत बाकायदे अदालत में पेश होना चाहिए।
वास्तव में हो क्या रहा था? हो यह रहा था कि देश में आबादी और मुकदमों की संख्या के लिहाज से अदालतें जरूरत की 20 प्रतिशत भी नहीं हैं। वे दुगना काम कर के और न्याय की गुणवत्ता से समझौता कर के 40 प्रतिशत काम का निपटारा करती हैं। नतीजा यह है कि शेष 60 प्रतिशत मामले अदालतों में धूल फांक रहे हैं। ऐसे में दीवानी प्रक्रिया से धन वसूली के लिए कम से कम दो पीढ़ियों की जरूरत होगी। ऐसी हालत में देशी विदेशी (खास तौर पर विदेशी ही) वित्तीय कंपनियाँ अपना कारोबार करने
को तैयार नहीं थी और यह कारोबार न होता तो देश में माल की बिक्री के लिए करोडों अरबों रुपयों के कर्जों के लिए धन का निवेश होना संभव नहीं था। यदि ऐसा होता तो देश में रौनक न होती। जो विदेशी पूँजी यहाँ लगी है। वह छूने को नहीं मिलती।