इस मामले में सच यह है कि केन्द्रीय मोटर वाहन अधिनियम की धारा 100 में सभी मोटर वाहनों की विण्ड स्क्रीन तथा खिड़कियों के शीशों के बारे में प्रावधान किए गए हैं। इन के अनुसार खिड़कियों का शीशा ऐसा होना चाहिए जिस से देखने योग्य प्रकाश 70 प्रतिशत अवश्य पार जा सके। इस कारण से 30 प्रतिशत प्रकाश से अधिक प्रकाश रोकने वाला कोई शीशा किसी चौपहिया वाहन की खिड़कियों पर लगाया जाता है तो वह नियम विरुद्ध होगा और इस तरह का वाहन सड़क पर चलाया जाना एक अपराध होगा।
यह मामला भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्षव लाया गया। तब सर्वोच्च न्यायालय ने दिनांक 27 अप्रेल 2012 को Avishek Goenka vs Union Of India & Anr के मामले में उक्त नियम की विवेचना करते हुए कहा कि यह नियम यह कहता है कि किसी भी वाहन में शीशा ही उक्त मापदंड का होना चाहिए। उन से आने जाने वाले प्रकाश को किसी बाहरी पदार्थ (फिल्म आदि) से नियंत्रित नहीं किया जाना चाहिए। इस तरह किसी भी वाहन के शीशों पर किसी भी प्रकार की फिल्म या प्रकाश को रोके जाने के लिए किसी अन्य पदार्थ का उपयोग करना उचित नहीं होगा। इसी मामले में 3 अगस्त, 2012 को एक अन्य निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि उक्त कानून का अर्थ यही है कि वाहन की खिड़कियों व विण्ड स्क्रीन पर ग्लास ही होना चाहिए न कि ग्लास पर कोई फिल्म। सर्वोच्च न्यायालय ने केवल कानून (नियम) की विवेचना की है। कोई नया कानून नहीं बनाया है। कानून बनाने का काम विधायिका का है। इस तरह पुनः यह स्पष्ट हो गया कि वाहन की विण्ड स्क्रीन या किसी भी खिड़की के शीशे पर कोई फिल्म नहीं चढ़ाई जा सकेगी।
कोई भी व्यक्ति जानबूझ कर कोई अपराध क्यों करे। इस कारण से सभी वाहन स्वामियों को अपने वाहनों की खिड़कियों के शीशों पर से सभी प्रकार की फिल्म उतरवा लेनी चाहिए। अपने वाहनों की खिड़कियों के शीशे भी जाँच करवा लेने चाहिए जिस से पता चल सके कि कहीं वे खिड़कियों पर कानून का उल्लंघन करने वाला कोई शीशा उपयोग कर के अनजाने में कोई अपराध तो नहीं कर रहे हैं। यदि उन से अनजाने में अपराध हो रहा है तो अपने वाहन की खिड़कियों के शीशों पर से गैर कानूनी फिल्म उतरवा लें और यदि शीशे ही सही नहीं हैं तो उन्हें बदलवा लें।
आप की सुविधा के लिए केन्द्रीय मोटर वाहन नियमों का नियम 100 नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है –