यज्ञदत्त वर्मा नो चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से पूछा है-
मैं मध्यप्रदेश का निवासी हूं तथा वर्तमान में मैं राजस्थान में प्राइवेटजाब कर रहा हूं, हमारा कोर्ट केस चल रहा है जिसका विवरण निम्न प्रकार है- मेरे पिताजी ने आज से लगभग 45-47 वर्ष पूर्व नगरपालिका से अपनी नौकरीलगने के पश्चात रहवासी जमीन खरीदी थी दादाजी उस समय जीवित थे पिताजी, दादाजी, दादीजी तथा पिताजी के तीन बहनें व एक भार्इ था जो उस समय नाबालिगथे मेरे पिताजी की आमदनी जमीन के मूल्य से लगभग तीन गुना थी। दादाजी घरके मुखिया थे अत: पिताजी जो भी काम करते थे उनकी सलाह तथा आदेश के अनुसारही कार्य करते थे अत: वह जमीन मेरे पिताजी ने अपने नाम से खरीदी थी और उसकारूपया कीमत अपने वेतन की बचत से जमा करवाया था तथा सभी प्रकार के टेक्सपिताजी ही भरते हैं। दादाजी की मृत्यु के पश्चात पिताजीने उनके छोटे भार्इ तथा तीनों बहनों की शादी करी, मकान भी अपनी बचत सेवेतनभत्तों, जी.पी.एफ. से अग्रिम लेकर धीरे-धीरे टुकड़ों में मकान बनवाया तथा छुटपन से छोटेभार्इ (मेरे चाचा) को अपने साथ रखा चाचा की शादी के कुछ समयपश्चात उसको उसीमकान में अलग रहने की इजाजत दी । मकान में प्रेम वश रहने दिया क्योंकि मेरेचाचा पास रहने के लिये मकान नहीं था तथा काम धन्धा भी ठीक नहीं था परन्तुजब मेरे चाचा ने (पिताजी के भार्इ) अपना मकान बना लिया तो पिताजी ने अपनेछोटे भार्इ (चाचा) को अपने मकान में जाने के लिये कहा। पहले तो जाने केलिये तैयार हो गया परन्तु बाद में मना कर दिया और कहने लगा की ये बेनामीसम्पति है तथा मेरे पिताजी (दादाजी ने) हम दोनों भार्इयों (पिताजी व चाचा)के लिये खरीदी है तथा कहता है दादाजी ने परिवार के सामने मौखिक रूप से जमीनकाआधा-आधा हिस्सा कर दिया था जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था। हो सकता है दादीजी सेजीवित अवस्था में कोर्इ कोर्ट स्टाम्प पर अंगूठा लगवा लिया हो।मेरेचाचा आधी जमीन का मालिक खुद को बताता है और कहता है कि मैं नाबालिग थाइसलिये उस समय जमीन बड़े भार्इ के नाते दादाजी ने मेरे पिताजी के नाम खरीदीथी जबकि दादाजी की कोर्इ आर्थिक सहायता नहीं थी और दादाजी उस समय आर्थिकरूप से सम्पन्न नहीं थे दादाजी की आर्थिक सिथति खराब होने के कारण पिताजीको जल्दी नौकरी करनी पड़ी। अभी फिलहाल आधे प्लाट पर मेरे चाचा का ही कब्जाहै मेरे चाचा बोलते है कि जिस भाग में मैं रहता हूं उसे मैनें ही बनाया हैजबकि उन्होंने कुछ भी पैसा नहीं लगाया है। मेरे पिताजी के पास जमीनके सभी कागज उपलब्ध है तथा मेरे पिताजी के पास निर्माण सम्बंधी कागजात नहींहै पिताजी अक्सर शहर से बाहर रहते थे और मकान किसी भी ठेकेदार से और ना हीएक-मुश्त बनवाया जितनी भी बचत होती थी मेरे पिताजी मकान में ही लगाते हैकोर्ट ने मकान खाली करने का प्रकरण चल रहा है। मेरे चाचा तथा उसका परिवारआधे हिस्से पर कब्जा जमाये हुऐ है परन्तु मकान का आधा हिस्सा खालीनहींकरते हैं। चाचा कोर्ट में केस को लम्बा खिंचने का प्रयासकरता रहता है अब कोर्ट निम्न प्रश्नों पर विचार कर रहा है-
- क्या विवादित भूखण्ड अपने पिताजी की अनुमति से वादी ने स्वंय प्रीमियमजमा कर अपने पक्ष में रजिस्ट्री करवार्इ थी।
- क्या भूखण्ड पर एक मात्र वादी ने सम्पूर्ण मकान निर्माण करवाया है यदिहां तो इसलिये उक्त मकान वादी के एक मात्र स्वामित्व का है क्या वादी नेवादग्रस्त मकान में बिना किसी किराये से प्रेम स्नेहवश निवास हेतु प्रदानकिया था।
- क्या वादी के विरूद्ध आदेशात्मक निषेधाज्ञा के माध्यम से विवादित भूखण्डके हिस्से का रिक्त आधिपत्य प्राप्त करने का अधिकारी है।
- क्या प्रतिवादी से वादग्रस्त भूखण्ड का आधिपत्य प्राप्त करने तक अन्तरिमलाभ प्राप्त करने का अधिकारी है।
समाधान-
आप के पिताजी ने बिलकुल सही मुकदमा किया है। न्यायालय उन प्रश्नों पर विचार कर रहा है जो दावे और जवाब दावे में अंकित किए गए हैं और विवादित हैं। बेनामी संपत्ति होने की प्रतिरक्षा आप के चाचा ने ली है लेकिन वह चल नहीं पाएगी। कानून आप के पिता जी के पक्ष में है। बेनामी संपत्ति कानून कहता है कि जो संपत्ति जिस के नाम पंजीकृत है उसी की मानी जाएगी।
आप के पिताजी को केवल इतना करना है कि वे अपने पक्ष के सभी दस्तावेज न्यायालय के समक्ष प्रदर्शित कराएँ और साक्ष्य प्रस्तुत करें। यदि आप के पिताजी के वकील ने मुकदमे की पैरवी ठीक से की तो आप के पिताजी को उन की संपत्ति का कब्जा प्राप्त हो जाएगा। समय तो लगेगा। हमारी न्याय व्यवस्था सुस्त है और जरूरत के केवल 20 प्रतिशत न्यायालय देश में हैं। मध्यप्रदेश की स्थिति तो और भी बुरी है।