यह सिलसिला मुझे लगता है, आप के जन्म के पहले शायद आप के माता-पिता के विवाह के बाद से ही जारी है और आप की माता जी उसे तब से सहन करती आ रही हैं, उन्हों ने शायद ठीक से इस का प्रतिवाद भी कभी नहीं किया, यदि किया होता तो बात यहाँ तक नहीं पहुँचती, या तो आप के पिता सुधर जाते, या फिर आप के माता जी और पिताजी आज तक साथ नहीं होते। जुल्म करने वाला कोई भी व्यक्ति सशक्त प्रतिरोध के बिना रुकता नहीं है। आप स्वयं कह रहे हैं कि आप के सामने आप के पिता जी की हिम्मत नहीं होती, क्यों कि आप बीच-बचाव में सामने आ जाते हैं। लेकिन आप ने भी शायद अपनी माता जी को सिर्फ मौके पर बचाया ही है। कभी आप के पिता की इस प्रवृत्ति का विरोध नहीं किया। आप को विरोध करना चाहिए था और वह तब तक सतत जारी रहना चाहिए था जब तक कि आप के पिता इस आदत को छोड़ नहीं देते। यदि आप अपनी माँ को इस यातना से बचाना चाहते हैं तो न केवल आप को इस बात का प्रतिरोध करना होगा अपितु अपनी माता जी को इस के लिए तैयार करना होगा।
इस उम्र में इस समस्या का हल तलाक नहीं है। आप की माता जी और पिताजी दोनों ही अपने लिए कोई नया जीवन साथी बनाने की मानसिकता नहीं रखते। आप भी सिर्फ यही चाहते हैं कि माता जी अलग हो जाएँ और पिताजी उन्हें कोई यातना नहीं दे सकें। तलाक से तो विवाह से आप की माता जी को प्राप्त अधिकार और छिन जाएँगे। तलाक के उपरांत आप की माता जी अपने पिता के परिवार में रहने उन की संपत्ति का उपयोग करने के अधिकार से वंचित हो जाएंगी। वे अधिक से अधिक एक मुश्त अथवा मासिक भरण-पोषण राशि की हकदार रह जाएंगी। मेरी राय में घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम में वे सभी प्रावधान हैं जो आप की चिंता और माता जी की परेशानी दूर कर सकती है। आप को अपनी माता जी से इस अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत आवेदन मजिस्ट्रेट के न्यायालय में प्रस्तुत करवाना चाहिए।
घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम की धारा-17 के अंतर्गत आप की माता जी को कौटुम्बिक गृह में रहने का अधिकार प्राप्त है और उन्हें उस से बेदखल नहीं किया जा सकता। धारा-18 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट आप के पिता जी को घरेलू हिंसा कारित करने से तथा अन्य किसी भी व्यक्ति को उन की इस काम में म