समस्या-
आनन्द शर्मा ने देवनगर, ब्यावर रोड, अजमेर – 305001, राजस्थान से पूछा है-
मेरी पत्नी मथुरा उत्तर प्रदेश की है। हमारी शादी फरवरी 2017 में हुयी थी। उसके बाद वह 25 जुलाई 2017 को मेरे घर से लड़ाई कर चली गयी। फरवरी से जुलाई 2017 के बीच वो कुल सवा 2 महीने वो भी टुकड़ों में मेरे यहाँ रुकी। जितना समय रुकी उसका व्यवहार मेरे प्रति और मेरे रिश्तेदारों के प्रति अच्छा नहीं था। वो कुछ दवाइयों का सेवन भी करती थी जिसकी जानकारी कई बार पूछे जाने पर भी न तो उसने बताई न ही उसके घरवालों ने दी। उसका मेरे साथ व्यवहार विक्षिप्तों जैसा था। कई बार समझाइश के प्रयास किये गए तब वो आना नहीं चाहती थी हर बार मना करती थी। मेरे खिलाफ महिला थाने में शिकायत भी दर्ज करायी गयी। मैंने 16-10-2017 में सेक्शन 9 में केस दर्ज करवाया जिसपर भी ये आज तक नहीं पहुंचे। इस केस पर सुप्रीम कोर्ट से स्टे लगवा कर उन लोगों ने मथुरा से 498 ए और 125 CRPC के केस डाल रखें हैं और भरण पोषण राशि की मांग कर रहे हैं। मैं अब उसको तलाक देना चाहता हूँ, तो कभी तो वो आने के लिए बोलती है कभी भरण-पोषण का पैसा मांगती है और तरह तरह से परेशान करते हैं। जेल भेजने की धमकी देते हैं। मेरे आफिस नोटिस भेज दिया जिस कारण मुझे नौकरी छोड़नी पड़ी। अब मैं बेरोज़गार हूँ। आप ही बताएं क्या करूँ। सेक्शन 9 का क्या करूं? मुझे तलाक चाहिए। कैसे और क्या करूँ? 498 ए और 125 सीआरपीसी का क्या समाधान किया जाये?
समाधान-
आपकी पत्नी को छोड़ कर गए हुए तीन वर्ष पूरे हो चुके हैं। अभी तक कोई हल इस समस्या का नहीं निकला है। आपने अपनी समस्या का जो विवरण दिया है उसमें कुछ तथ्यों का अभाव है। यह तो सही है कि अन्तिम रूप से आप दोनों अजमेर में साथ रहे लेकिन यह नहीं बताया कि विवाह कहाँ सम्पन्न हुआ था। यदि विवाह भी अजमेर में ही सम्पन्न हुआ था तो धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम में दाम्पत्य की पुनर्स्थापना का आवेदन अजमेर में ही प्रस्तुत किया जा सकता था और वहीं उसकी सुनवाई भी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने किस आधार पर उस प्रकरण में स्टे दिया है यह स्पष्ट नहीं है।
लेकिन अब पत्नी को छोड़ कर गए तीन वर्ष हो जाने के कारण धारा-9 के आवेदन का कोई अर्थ नहीं रह गया है। बेहतर यह है कि आप इस आवेदन को वापस ले कर निरस्त करवा लें। इस से सुप्रीमकोर्ट के स्थगन आदेश का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।
हमारी राय में आपको विवाह विच्छेद का आवेदन प्रस्तुत कर देना चाहिए, इसमें कोई देरी नहीं करनी चाहिए। क्यों कि पारिवारिक न्यायालय में इस आवेदन की सुनवाई के दौरान पहले आपसी समझाइश से प्रकरण को हल करने की कोशिश की जाएगी। यदि साथ रहना मुमकिन हो तो वहीं समझौता हो जाएगा और धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम का उद्देश्य पूर्ण हो जाएगा। आपके पास विवाह विच्छेद के लिए पर्याप्त आधार भी हैं। स्वेच्छा से त्याग को तीन वर्ष हो चुके हैं विवाह विच्छेद के लिये केवल दो वर्ष का त्याग पर्याप्त है। उसका व्यवहार उचित नहीं था तो क्रूरता का आधार भी उपलब्ध हो सकता है। वकील से परामर्श के बाद कुछ और भी आधार तलाशे जा सकते हैं।
जहाँ तक धारा 125 दं.प्र.संहिता का प्रश्न है तो उसका आवेदन आपकी पत्नी मथुरा में कर सकती है। उसका निर्णय आपको वहीं करवाना होगा। आपको समुचित भरण-पोषण देना होगा। एक बात आप ठीक से समझ लें कि जिस दिन आप विवाह करते हैं पत्नी के भरण-पोषण का दायित्व आप पर आ जाता है। उससे बचना असंभव होता है। धारा 498-ए का प्रकरण मथुरा में दर्ज कराने के लिए कुछ मिथ्या तथ्यों का सहारा लिया गया होगा। उसे भी वहीं लड़ना होगा। मिथ्या तथ्यों के कारण वह भी अन्ततः निरस्त हो जाएगा। पूरी मुस्तैदी के साथ उन मुकदमों में प्रतिवाद प्रस्तुत करके लड़ना ही उनका उपाय है।