तीसरा खंबा

न्‍याय-वध…..(2)

न्‍याय का वध करने में हमारी सरकार की भूमिका को आप ने देखा। देश में न्‍यायालयों की न्‍यून संख्‍या पर हमारे सुप्रीम कोर्ट के लगभग सभी न्‍यायाधीशों ने अपनी चिंता जताई है, और अपने अपने कार्यकाल में न्‍याय व्‍यवस्‍था को सक्षम बनाने की दिशा में अपने सुझाव दिए हैं। 25 जुलाई, 2006 को तत्‍कालीन मुख्‍य न्‍यायाधीश श्रीवाई. के. सभरवाल ने न्‍यायमूर्ति सोभागमल जैन स्‍मृति व्‍याख्‍यान माला में बोलते हुए न्‍याय में देरी पर अपनी चिंता व्‍यक्‍‍त की। उनका यह व्‍याख्‍यान एक महत्‍वपूर्ण दस्‍तावेज है। उनके इस व्‍याख्‍यान का हिन्‍दी अनुवाद आपके लिए यहां प्रस्‍तुत कर रहे हैं:-

न्‍यायमूर्ति श्री वाई. के. सभरवाल का व्‍याख्‍यान


भारत के संविधान का आमुख जब न्‍याय के सामाजिक, आर्थिक, और राजनैतिक सभी रूपों के बारे में बात करता है तो मनुष्‍य की न्‍याय की चाह और तलाश को प्रतिबिम्बित करता है। शारीरिक, मानसिक या आर्थिक रूप से त्रस्‍त लोग न्‍यायालय में अपनी समस्‍याओं के हल की भारी आशा के साथ पहुँचते हैं। वे कानून को हाथों में नहीं लेते क्‍यों कि उन्‍हें विश्‍वास है कि न्‍यायालय से न्‍याय प्राप्‍त होगा।तब हमारी न्‍याय प्रणाली इस दायित्‍व के अधीन होती हैं कि वहसमानता, निष्‍क्षता और औचित्‍यपरता के तत्‍वों से बिना कोई समझौता किए अपने उपभोक्‍ताओं को सस्‍ता और त्‍वरित न्‍याय प्रदान करे।

संविधान के मोर्चे पर भारतीय न्‍याय प्रणाली की सफलता अद्वितीय है।मानवाधिकारों को विस्‍तार प्रदान करने और लागू करने के मामले में इस के योगदान को पर्याप्‍त रूप से सराहा गया है।जनहित के मुकदमों के निपटारे के प्रयासों से न्‍याय प्रणाली समाज के दमित और कमजोर वर्गों के नजदीक आई है।

भारतीय न्‍यायालयों को विकासशील देशों में ही नहीं अपितु विकसित देशों से भी सम्‍मान प्राप्‍त हुआ है।इस के निर्णयों की गुणवत्‍ता और कठोर श्रम को विस्‍तृत प्रशंसा प्राप्‍त हुई है।पिछले ही माह इंग्‍लेण्‍ड और वेल्‍स के मुख्‍य न्‍यायाधीश ने एडिनबर्ग इण्‍डो-ब्रिटिश लीगल फोरम के सम्‍मेलन के समापन व्‍याख्‍यान में हमारे संविधान के अनुच्‍छेद 21 में वर्णित कानून और व्‍यवस्‍था तथा कानूनी प्रक्रिया की अवधारणा को स्‍वस्‍थ वातावरण में जीने के अधिकार की सीमा तक विस्‍तार प्रदान करने के भारत के सर्वोच्‍च न्‍यायालय के महत्‍वपूर्ण योगदान को सार्वजनिक रूप से स्‍वीकार किया है।हम भारत के नागरिक इस मान्‍यता पर गर्व महसूस कर सकते हैं।इस के बावजूद ढेरों लम्बित मुकदमों का प्रभावी ढंग से निपटारा करने में हमारे न्‍यायालयों की अक्षमता से हमारी न्‍याय प्रणाली की आलोचना में लगातार वृद्धि हो रही है।

विश्‍व के कुछ अन्‍य देशों को भी न्‍याय प्रदान करने में देरी की समस्‍या का सामना करना पड़ रहा है।लेकिन भारतीय न्‍याय प्रणाली की तो यह मुख्‍य समस्‍या है।

भारतीय संदर्भ में न्‍याय में देरी’ का अर्थ वह समय है, जो एक मुकदमे के निपटारे में न्यायालय द्वारा लगाएगए पर्याप्त रूप से वांछित समय सेअधिक लिया जाता है। किसी भीन्याय प्रणाली में एक मुकदमे केनिपटारे में पारंपरिक रूप से कुछसमय तो लगता ही है। कोई भी यहआशा नहीं कर सकता कि एक मुकदमेका निपटारा रातों रात हो जाएगा। समस्या तब उत्पन्न होती है जबएक मुकदमे के निपटारे में आशा सेबहुत अधिक समय लगता है और तबहम यह कहते हैं कि न्याय होने में देरीहो रही है। आंकड़ों के अध्ययन से यहपता लगता है कि विभिन्न स्तरों परपर्याप्त प्रयत्नों और प्रणाली द्वाराबड़ी मात्रा में निपटारे में वृद्धि किएजाने के बावजूद मुकदमों के निपटारे में होने वाली देरी की मात्रा बढ़ती हीजा रही है।

भारत ने सभी क्षेत्रों में काफी प्रगति की है।सूचना-क्रांति ने बढ़ती हुई जनसंख्‍या की अपेक्षाओं बहुत ऊँचा कर दिया है।आजादी के आरम्भिक वर्षों में साक्षरता का स्‍तर बहुत नीचा था।इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया के नाम पर हमारे पास केवल रेडियो था।लेकिन साक्षरता में वृद्धि, नए चैनल्‍स के जनता तक पहुँचने और अखबारों के पाठकों की संख्‍या में वृद्धि से कानूनी अधिकारों के प्रति सजगता बढी है, जिस से न्‍यायालय के सामने आने वाले मुकदमों की संख्‍या में भी वृद्धि हुई है।त्‍वरित और सस्‍ते न्‍याय की आकांक्षा सार्वभौमिक है। कानूनी अधिकारों के प्रति सजगता से मुकदमों की संख्‍या में वृद्धि एक स्‍वागत योग्‍य विकास है और चिंता का विषय नहीं है।लेकिन इस बढ़े हुए काम को करने के लिए साधनों और सही मार्ग को तलाशने का दायित्‍व न्‍याय प्रणाली का है।त्‍वरित न्‍याय का मूल अधिकार लाखों लोगों के लिए केवल सुनहरा सपना नहीं रहना चाहिए।सुव्‍यवस्थित समाज का अस्तित्‍व एक दक्षता से काम करने वाली न्‍याय प्रणाली पर निर्भर होता है।मुकदमों के निपटारे में देरी उन के पक्षकारों में न केवल भ्रान्‍त धारणाओं को जन्‍म देता है, अपितु न्‍याय प्रणाली की न्‍याय करने की क्षमता को दुर्बल करता है।

हुत अधिक देरी अक्‍सर मुकदमों में न्‍याय का वध कर देती है, देरी के परिणाम स्‍वरूप साक्षियों की स्‍मृति धंधली हो जाने और उन की मृत्‍यु से महत्‍वपूर्ण सबूत नष्‍ट होने की संभावना से इन्‍कार नहीं किया जा सकता है।परिणाम यह होता है कि मजबूत होने पर भी एक पक्षकार अपनी गलती के कारण नहीं, अपितु धीमी न्‍याय प्रक्रिया के कारण अपना मुकदमा हार जाता है जिस से न्‍याय के प्रति अत्‍यधिक आशावानलोगों में विभ्रान्ति उत्‍पन्‍न होती है।मुकदमों में देरी सामान्‍य प्रकृति के मुकदमों को ही नहीं अपितु शीघ्र निपटने वाले मुकदमों को भी प्रभावित करती है। देरी और मुकदमों का यह अम्‍बार हम से कुछ न कुछ उपाय की अपेक्षा करता है अन्‍यथा समूची प्रणाली इस के भार तले कुचली जाएगी।हमें न्‍याय प्रणाली को इस बदनामी से बचाने के उपाय करने होंगे अन्‍यथा लोग इस में से विश्‍वास खो कर अशुभ परिणामों की परवाह किए बिना गैर कानूनी उपाय अपनाऐंगे।

दीवानी मामलों की अपेक्षा अपराधिक मामलों में समस्‍या अधिक गंभीर है।निष्‍पक्षता और औचित्‍यपूर्णसुनवाई के मूल्‍य के साथ अपराधिक मामलों का त्‍वरित निपटारा एक सुदूर वास्‍तविकता है। विवेकपूर्ण अवधि में सुनवाई और निपटारा नहीं करने वाली प्रक्रिया को न्‍यायपूर्ण, निष्‍पक्ष और विवेकपूर्ण नहीं कहा जा सकता।एक लम्‍बी अवधि के पश्‍चात अभियुक्‍त के बरी होने पर उसे होने वाली अनावश्‍यक परेशानी का अनुमान किया जा सकता है।अनावश्‍यक देरी से सबूतों के नष्‍ट होने, गवाहों की स्‍मृति धुंधलाने अथवा धमकियों या फुसलाने या सहानुभूति के कारण सच्‍ची गवाही नहीं देने से दोषी व्‍यक्ति बरी हो जाते हैं। जो भी कारण हो हमें इस वास्‍तविकता से वाकिफ हो जाना चाहिए कि सुव्‍यवस्थित समाज का अस्तित्‍व एक प्रभावी कार्यसक्षम अपराधिक न्‍याय प्रणाली पर निर्भर करता है।

म गैट और डब्‍लूटीओ जैसी अन्‍तर्राष्‍ट्रीय समझौतों और संविदाओं में पक्षकार हैं, हमें विज्ञान और तकनीकी, व्‍यापार और वाणिज्‍य के क्षेत्रों में प्रगति की ओर बढ़ना है जिस से न केवल समृद्धि और उपलब्धियों में हमारा हिस्‍सा यथावत रहे अपितु उस में वृद्धि हो, इस उद्देश्‍य की पूर्ति के लिए यह आवश्‍यक है कि हमारी न्‍याय प्रणाली दक्ष, प्रभावी और लोगों की पहुँच में (सस्‍ती) होनी चाहिए।

दालतों के पास कोई जादू की छडी नहीं है जिस से वे भारी मात्रा में लम्बित मुकदमों का निपटारा कर दें, वे अन्‍याय की घटनाओं की केवल इस कारण से उपेक्षा कर सकते हैं कि उन के पास पहले से ही अत्‍यधिक मुकदमें लम्बित हैं।यदि अदालतें ऐसा करना शुरू कर दें तो उन की सक्षमता और आम लोगों का उन पर असीम विश्‍वास ही खो देंगी जिनका वे अब तक उपभोग करती आ रही हैं।यह उत्‍साहवर्धक तथ्‍य है कि न्‍याय में देरी और मुकदमों के इतने अधिक लम्बित होने के बावजूद न्‍याय प्रणाली में जनता का विश्‍वास अभी तक कायम है। यह वह समय है जब हम मुकदमों में देरी और उन के भारी संख्‍या में जमाव के मूल कारणों की वैज्ञानिक एवं सज्ञान विश्‍लेषण करते हुए ऐसी योजना बना रहे हैं जिस से कि एक निश्चित अवधि में मुकदमों के निपटारे के काल को हम स्‍वीकृत सीमा में ले आऐं। साथ साथ हमें इस समस्‍या से जूझने के रास्‍ते तलाश करने की माथापच्‍ची भी करते रहना है कि हमारे लोगों का न्‍याय प्रणाली की योग्‍यता और विश्‍वसनीयता पर भरोसा कायम रहे।समस्‍या के मूल को तलाशने और हल करने के लिए मार्ग बताने के लिए निपुण समितियों की रिपोर्टों, विधि आयोगों की सिफारिशों और विधिवेत्‍ताओं की सलाहों का ढेर हमारे सामने है लेकिन अब तक मुकदमों के दायरे और निपटान के बीच के पहाड़ से हम एक पत्‍थर तक नहीं निकाल पाने में सफल नहीं हो सके हैं।

मेरा यह अखण्‍ड विश्‍वास है कि जो सुझाव मैंनेप्रस्‍तावित किए हैं उन्‍हें सही और दृढ़ संकल्‍प के साथ लिञा जाए तो वे मुकदमों के अम्‍बार को कम करने में बहुत दूर तक साथ देंगे और उसे प्रबन्‍ध करने योग्‍य सीमा में लाया जाना संभव हो सकेगा इन में से अनेक सुझाव पहले विभिन्‍न मंचों पर दिए जा चुकें हैं। आवश्‍यकता इस बात की है कि निश्‍चय और तीव्रता के साथ उन पर अमल किया जाए।

स व्‍याख्‍यान की चिंता आप ने देखी। यह सही है कि इस दिशा में काम किया जा रहा है किन्‍तु वह अपर्याप्‍त है। न्‍यायाधीशों के चयन की प्रक्रिया इतनी लम्‍बी है कि उसे प्रारम्‍भ करने के बाद भी वर्षों व्‍यतीत हो जाते हैं। हम देश अभी तक सार्वजनिक नियुक्तियों के लिए ऐसी प्रक्रिया विकसित नहीं कर पाए हैं जिस से कोई पद खाली न रहे। यह प्रक्रिया इतनी लम्‍बी है कि देश में स्‍थापित न्‍यायालयों में से लगभग दस प्रतिशत हमेशा खाली पड़े रहते हैं। इस से इन न्‍यायालयों पर हो रहा खर्च बदस्‍तूर होता रहता है। जो एक न्‍यायाधीश पर होने वाले खर्च से कहीं बहुत अधिक होता है। इस तरह जनता के धन का अपव्‍यय जारी रहता है। सरकार इस व्‍यय को न्‍यायपालिका पर होने वाले व्‍यय में सम्मिलित करते हुए उस का प्रचार भी करती है।

न्‍या‍ वध की इस कथा को हम जारी रखेंगे, न्‍याय प्राप्ति की प्रक्रिया में हो रहे सार्वजनिक धन और व्‍यक्तिगत धन के अपव्‍यय पर आगे बात करेंगे, पाठकों की अदालत में असली मामले भी ले कर आऐंगे। आप की नजर में भी ऐसे अनेक मामले हो सकते हैं। आप हमें भेजिए हम उन्‍हें तीसरा खंबा में ले कर आऐंगे। इस के लिए आप हमें ई-मेल करें। यह भी आप को बताऐंगे। अगली कडि़यों में। आप प्रतीक्षा करें।

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