समस्या-
मैंने आज तक जहाँ भी देखा है हर मामले में पत्नी अपने मायके में जाकर पति के ऊपर मुकदमा करती हुई मिली है। आपके तीसरा खंबा में भी जितने मामले मैंने पढ़े है उन में भी पत्नी ने किसी न किसी कारण से पति का घर छोड़ अपने मायके जाकर पति के ऊपर मुकदमा किया है। लेकिन मेरे मामले में बिलकुल उलट है मेरी पत्नी ने मेरे ही घर में रह करके मेरे ऊपर 498ए और घरेलू हिंसा अधिनियम में झूठे मुकदमे किए हैं। मुझे मेरे ही घर से निकाल दिया है और खुद मेरे ही घर में मेरे बच्चों के साथ रह रही है। खुद 10,000/- रुपए महिने की नौकरी कर रही है। क्या इस तरह के मामलों के लिए कोई खास धारा नहीं है? ये तो सभी जानते हैं कि पति के साथ गलत हो रहा है, पर पुलिस और प्रशासन कुछ करने को तैयार नहीं होता है। मेरी सुनने वाला कोई नहीं है। घरेलू हिंसा अधिनियम में तो अदालत ने एक-तरफ़ा कार्यवाही करते हुए मुझ से अंतरिम खर्चा दिलाने की अंतिम 24.07.2012 दी है। अब आप ही बताएँ मैं क्या करूँ?
-कमल हिन्दुस्तानी, हिसार, हरियाणा
समाधान-
कानूनों के दुरुपयोग की समस्या दो तरह की है। धारा 498-ए में कोई बुराई नहीं है लेकिन पहली समस्या तो सामाजिक है। किसी पत्नी या बहू के साथ इस धारा के अंतर्गत मानसिक या शारीरिक क्रूरता का बर्ताव किए जाने पर अपराध बनता है। लेकिन यदि आप ने एक बार भी अपनी पत्नी पर थप्पड़ मार दिया या किसी और के सामने यह कह भर दिया कि थप्पड़ मारूंगा तो वह भी क्रूरता है। अब आप देखें कि भारत में कितने पुरुष ऐसे मिलेंगे जिन्हों ने इस तरह का बर्ताव अपनी पत्नी के प्रति नहीं किया होगा? ऐसे पुरुषों की संख्या नगण्य होगी। इस का अर्थ हम यही ले सकते हैं कि हमारा समाज हमारे कानून की अपेक्षा बहुत पिछड़ा हुआ है। लेकिन भारतीय समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी है जिस के लिए यही कानून उपयुक्त है। हमारे सामने यह चुनौती है कि हम हमारे समाज को कानून की इस स्थिति तक विकसित करें। एक बार एक प्रगतिशील कानून का निर्माण करने के बाद उस से पीछे तो नहीं ही हटा जा सकता। कुल मिला कर यह एक सामाजिक समस्या है।
दूसरी समस्या पुलिस के व्यवहार के संबंध में है। जब कोई महिला अपने पति के विरुद्ध शिकायत करना चाहती है तो वह किसी वकील से संपर्क करती है। वकील को भी काम चाहिए। वह महिला को उस के पति को परेशान करने के सारे तरीके बताता है, यहाँ तक कि वकीलों का एक ऐसा वर्ग विकसित हो गया है जो इस तरह के मामलों का स्वयं को विशेषज्ञ बताता है। वह महिला को सिखाता है और सारे प्रकार के मुकदमे दर्ज करवाता है। मामला पुलिस के पास पहुँचता है तो पुलिस की बाँछें खिल जाती हैं। पुलिस को तो ऐसे ही मुकदमे चाहिए जिस में आरोपी जेल जाने से और सामाजिक प्रतिष्ठा के खराब होने से डरता है। ऐसे ही मामलों में पुलिसकर्मियों को अच्छा खासा पैसा बनाने को मिल जाता है। जो लोग धन खर्च कर सकते हैं उन के विरुद्ध पुलिस मुकदमा ही खराब कर देती है, उन का कुछ नहीं बिगड़ता और जो लोग पुलिस को संतुष्ट करने में असमर्थ रहते हैं उन्हें पुलिस बुरी तरह फाँस देती है। इस तरह यह समस्या कानून की नहीं अपितु पुलिस और सरकारी मशीनरी में फैले भ्रष्टाचार से संबंधित है। कुल मिला कर सामाजिक-राजनैतिक समस्या है। इस के लिए तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ना पड़ेगा।
एक बार पुलिस जब न्यायालय के समक्ष आरोप पत्र प्रस्तुत करती है तो न्यायालयों का यह कर्तव्य हो जाता है कि वे उस मामले का विचारण करें। देश में न्यायालय जरूरत के 20 प्रतिशत से भी कम हैं। विचारण में बहुत समय लगता है और यही समय न केवल पतियों और उन के रिश्तेदारों के लिए भारी होता है अपितु पति-पत्नी संबंधों के बीच भी बाधक बन जाता है। तलाक का मुकदमा होने पर वह इतना लंबा खिंच जाता है कि कई बार दोनों पति-पत्नी के जीवन का अच्छा समय उसी में निकल जाता है। जब निर्णय होता तो नया जीवन आरंभ करने का समय निकल चुका होता है। कुल मिला कर समस्या सामाजिक-राजनैतिक है और सामाजिक-राजनैतिक तरीकों से ही हल की जा सकती है। न्यायालय केवल कानून की व्याख्या कर सकते हैं, वे कानून नहीं बना सकते।
अब आप के मामले पर आएँ। आप की पत्नी ने आप को अपने ही घर से कैसे निकाल दिया यह बात समझ नहीं आती। या तो आप ने किसी भय से खुद ही घर छोड़ दिया है, या फिर आप ने वह घऱ अपनी पत्नी के नाम से बनाया हुआ हो सकता है। मुझे कोई अन्य कारण नहीं दिखाई देता है। यदि घर आप का है तो आप को वहाँ रहने से कौन रोक रहा है? जब तक वह आप की पत्नी है आप उसे निकाल भी नहीं सकते। आप पत्नी से तलाक ले लें तो फिर आप को यह अधिकार मिल सकता है कि आप उसे अपने मकान में न रहने दें। यह सब निर्णय हो सकते हैं लेकिन अदालतें कम होने के कारण इस में बरसों लगेंगे। यही सब से बड़ा दुख है और समस्या है। पर इस का हल भी राजनैतिक ही है। पर्याप्त संख्या में न्यायालय स्थापित करने का काम तो सरकारों का ही है और सरकारें सिर्फ वे काम करती हैं जिन के कारण राजनैतिक दलों को वोट मिलते हैं। जिस दिन राजनैतिक दलों को यह अहसास होगा कि पर्याप्त अदालतें न होने के कारण उन्हें वोट नहीं मिलेंगे उस दिन सरकार पर्याप्त अदालतें स्थापित करने का काम कर देंगी।
घरेलू हिंसा के मामले के एक-तरफा होने का कारण तो केवल यही हो सकता है कि आप स्वयं सूचना होने के बाद भी न्यायालय में उपस्थित नहीं हुए हैं या हो गए हैं तो फिर अगली पेशियों पर आप स्वयं या आप का कोई वकील न्यायालय में उपस्थित नहीं हुआ। ऐसे में न्यायालय के पास इस के सिवा क्या चारा है कि वह एक-तरफा कार्यवाही कर के निर्णय करे। आप को सूचना है तो आप स्वयं न्यायालय के समक्ष उपस्थित हो कर एक-तरफा सुनवाई किए जाने के आदेश को अपास्त करवा सकते हैं। उस के बाद न्यायालय आप को सुन कर ही निर्णय करेगा। यदि आप की पत्नी की आय 10,000/- रुपया प्रतिमाह है और आप इस को न्यायालय के समक्ष साबित कर देंगे तो न्यायालय आप की पत्नी को गुजारा भत्ता नहीं दिलाएगा। लेकिन आप के बच्चे जिन्हें वह पाल रही है उन्हें पालने की जिम्मेदारी उस अकेली की थोड़े ही है। वह आप की भी है। न्यायालय बच्चों के लिए गुजारा भत्ता देने का आदेश तो आप के विरुद्ध अवश्य ही करेगा।