तीसरा खंबा

परिणामों पर गंभीरता से विचार के बाद ही जीवनसाथी के विरुद्ध मुकदमा करें

समस्या-

राखी ने इन्दौर मध्यप्रदेश से पूछा है-

मैंने मम्मी-पापा के कहने पर डराने के लिए 498ए आईपीसी और घरेलू हिंसा का केस कर दिया था। 498ए  तथा  घरेलू हिंसा का मुकदमा झूठा सिद्ध हुआ। मैंने अपील कर दी। मेरे पति ने तलाक का मुकदमा लगा दिया है। वे बच्ची (5 साल) लेना चाहते हैं। 125 और तलाक में 2000/- अंतरिम मिल रहे हैं। मेरे पति ने लिव इन में रह रहे है या शादी कर ली है। मैं कहा जाऊँ किससे शिकायत करूँ। मैं मेरे पति के साथ रहना चाहती हूँ।

समाधान-

किसी भी समस्या के समाधान के लिए उस समस्या का पूरा विवरण होना चाहिए। आपकी समस्या में यह विवरण नहीं है कि आपने अपने पति को डराना क्यों चाहा था। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि आपके उनके साथ रहते हुए और एक बेटी के होते हुए भी आपके पति का किसी अन्य स्त्री के साथ सम्बन्ध था और आपके पति का व्यवहार उचित नहीं था और घरेलू हिंसा हुई थी। उस परिस्थिति में अपने पति को उस दूसरी स्त्री से दूर करने के लिए आपने अपने माता-पिता की सलाह पर मुकदमे किए। लेकिन ऐसा तो हमने होता नहीं देखा कि मुकदमे होने पर कोई पति यदि उसका किसी दूसरी स्त्री से सम्बन्ध हो तो वह उससे दूर हो कर पत्नी को अपनाने की ओर आगे बढ़ता हो। बल्कि पत्नी के मायके चले जाने के कारण उसे पूरी छूट मिल जाती है। यदि उसका इरादा उस स्त्री को अपनाने का हो तो उसके लिए सोने में सुहागा और हो जाता है।

आपने और आपके माता पिता ने शुरू से उद्देश्य यही रखा कि मुकदमे पति को डराने के लिए किए हैं। आपने अपने मुकदमों में गंभीरता से साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की और उसका नतीजा यह हुआ कि 498ए तथा घरेलू हिंसा के मुकदमे खारिज हो गए। अब आपने अपील कर दी है। पर यदि साक्ष्य ही उचित नहीं प्रस्तुत हुई है तो अपील में भी निर्णय आपके विरुद्ध जा सकता है।

हमारे यहाँ हिन्दू विधि में तलाक और विवाह विच्छेद को अपना लिया गया है। लेकिन तलाक शुदा स्त्री का दूसरा विवाह आसान नहीं होता। समाज अभी इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है। इस कारण तलाक हो जाने पर स्त्री का जीवन अत्यन्त कठिन हो जाता है। इस कारण वे आपकी तरह तलाक के बजाए उसी विवाह में लौटने की कोशिश में रहती हैं जो घरेलू हिंसा और दमन से भरा होता है। अब यही आपके साथ हो रहा है।

आज की स्थिति में आपके पास दो रास्ते हैं। पहला तो यह कि आप आपके पति द्वारा किए गए तलाक के मुकदमे का जवाब देते हुए स्पष्ट रूप से कहें कि आपके पति के दूसरी स्त्री से सम्बन्ध थे और आपके साथ हिंसा होती थी, इसी कारण आपने उन पर घरेलू हिंसा और 498ए के मुकदमे किए। आपके पति अभी भी दूसरी स्त्री से सम्बन्ध बनाए हुए हैं। यदि वे दूसरी स्त्री से सम्बन्ध तोड़ें और कभी दूसरी स्त्री के बारे में न सोचें तो आप उनके साथ रह सकती हैं। जहाँ तक बेटी की कस्टडी का प्रश्न है तो वह आसानी से आपके पति को नहीं मिलेगी जब तक आप खुद न चाहें। अदालत के जज को स्पष्ट कहें कि आप उनके साथ रहना चाहती हैं लेकिन पति को पाबन्द किया जाए। जज खुद आप दोनों के बीच समझौते की कोशिश करेगा। हो सकता है समझौता हो जाए। फिर भी यह आशंका हमेशा रहेगी कि आपके पति बार बार लौट कर उस दूसरी स्त्री की ओर जाएँ।

दूसरा उपाय यह है कि आप आत्मनिर्भर होना तय कर लें। तलाक होने दें। जब तक आप दूसरा विवाह नहीं करती तब तक आपको निर्वाह भत्ता मिलता रहेगा या आप स्थायी पुनर्भरण के रूप में एक मुश्त धनराशि ले सकती हैं। बेटी की कस्टडी अपने पति को दे दें और फिलहाल एकल जीवन जीने की तरफ आगे बढ़ें। कुछ बरस बाद कोई बेहतर साथी जीवन में मिले तो उसके साथ फिर से विवाह कर के आप रह सकती हैं। निर्णय आपको करना है। आपके जैसे बहुत उदाहरण हैं जिनमें पति को सबक सिखाने के लिए पत्नियाँ मुकदमे कर देती हैं। न तो उनकी कोई तैयारी होती है और न ही परिणाम का अनुमान। वैसी स्थिति में आप जैसी स्थिति में पहुँच जाती हैं। हम यहाँ यह कहना चाहते हैं कि पति हो या पत्नी, उसे अपने जीवनसाथी के विरुद्ध मुकदमा करने से पहले बहुत सोच विचार करना चाहिए

Exit mobile version