समस्या-
कोई परिवादी अपने आपराधिक मुकदमे में जिसमें न्यायालय के समक्ष समझौता संभव नहीं है और चार्जशीट भी दायर हो चुकी है लेकिन परिवादी अपने मुकदमे की पैरवी करने या गवाही देने के लिए न्यायालय में उपस्थित नही होता है तो न्यायालय द्वारा क्या- क्या कार्यवाही की जा सकती है? कृपया विस्तार से बताये!
– संजय सिंह, ग्राम- जाम नगर, ज़िला- पटना
समाधान-
अपराधिक मुकदमे कई प्रकार से संस्थित हो सकते हैं। जिस में पहली और सामान्य स्थिति यह है कि परिवादी पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराए और पुलिस यह मानते हुए कि कोई संज्ञेय अपराध घटित हुआ है, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(1) के अंतर्गत अन्वेषण आरंभ करे औक अंतिम परिणाम के रूप में आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत करे। दूसरी स्थिति यह है कि परिवादी द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया गया हो और मजिस्ट्रेट उसे दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) में पुलिस को अन्वेषण करने का आदेश दे। तब पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर अन्वेषण के उपरान्त अंतिम परिणाम के रूप में आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत करे। तीसरी स्थिति यह है कि न्यायालय स्वंय ही परिवाद पर प्रसंज्ञान ले कर मुकदमा दर्ज कर अभियुक्तों को समन करे और मुकदमा आरंभ करे।
पहली दोनों स्थितियों में न्यायालय के समक्ष राज्य सरकार अभियोजक होती है और राज्य सरकार का अभियोजक मुकदमे में परिवादी पक्ष की और से पैरवी करता है। इस तरह के मुकदमों में परिवादी का केवल यह दायित्व होता है को न्यायालय से साक्षी के रूप में समन मिलने पर परिवादी न्यायालय के समक्ष उपस्थित हो और अपनी गवाही दे। इन प्रकरणों में परिवादी को मुकदमे की प्रत्येक पेशी पर उपस्थित होने की कोई आवश्यकता नहीं होती।
उक्त दो मामलों के अतिरिक्त जिन मामलों में मजिस्ट्रेट स्वयं प्रसंज्ञान लेता है उनमें परिवादी या उस के अधिवक्ता को हर पेशी पर न्यायालय में उपस्थित होना जरूरी है। किसी भी पर परिवादी या उस के अधिवक्ता के न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होने पर न्यायालय उस प्रकरण को अभियोजन पक्ष की ओर से किसी के भी उपस्थित नहीं होने पर उसे समाप्त कर सकता है। लेकिन यह आवश्यक नहीं है। न्यायालय परिवादी को कुछ अवसर उपस्थित होने के लिए दे सकता है।
आपने अपनी समस्या में यह अंकित किया है कि आरोप पत्र प्रस्तुत हो चुका है। इस का अर्थ यह है कि आप जिस प्रकरण के संबंध में यह प्रश्न पूछ रहे हैं वह पुलिस द्वारा प्रस्तुत आरोप पत्र पर आरंभ हुआ है। ऐसी स्थिति में परिवादी का न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने का कोई दायित्व नहीं है सिवा इस के कि वह समन प्राप्त होने पर न्यायालय के समक्ष उपस्थित हो कर अपना बयान दर्ज कराए। यदि वह समन मिलने पर भी उपस्थित नहीं होता है तो उसे न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिए, जमानती या गिरफ्तारी वारंट भेजा जा सकता है। समन, जमानती या गिरफ्तारी वारंट परिवादी को मिलने पर भी वह न्यायालय में उपस्थित नहीं होता है तो उस की गवाही बंद कर दी जाएगी और मुकदमा आगे बढ़ जाएगा। मुकदमे में परिवादी का बयान न होने से सामान्य स्थिति यही होगी कि अभियुक्त के विरुद्ध आरोप साबित नहीं होने के कारण उसे दोषमुक्त घोषित कर दिया जाए।