तीसरा खंबा

पारिवारिक अंतरिम व्यवस्था बँटवारा नहीं होती।

समस्या का पूरा विवरण जरूर दें

समस्या-

सुधाकर ने लार,  सलेमपुर, जिला देवरिया, उत्तर प्रदेश से पूछा है –

मेरे दादा जी के दो पुत्र हैं, आज से लगभग 20 साल पहले  से ½ का बराबर  अचल संपति का बटवारा हो गया हैं। मेरे दादा जी इस समय 90 साल से ऊपर और वृद्धावस्था में हैं, सही गलत का आकलन नही कर पाते हैं। सेवा का दावा  दोनों तरफ से किया जाता है। हमें शक है कि कहीं उनके छोटे पुत्र कि पत्नी अपने नाम से वसीयत ना करा ले एव छोटा पुत्र उनके नाम पर 2 लाख का केसीसी करा लिया है। बड़े पुत्र को क्या करना चाहिए और वह थाने का चौकीदार में नाम अंकित है़ मृत्यु के बाद किस पुत्र का अधिकार होगा?

समाधान-

कल की समस्या का हल प्रस्तुत करते समय मैंने कहा था कि हमारे पास आने वाली बहुत सारी समस्याओं में भी बहुत सारे जरूरी विवरण का अभाव होता है। जिनके कारण हम समस्या का कोई उचित समाधान प्रेषित नहीं कर पाते। आपके द्वारा दिए गए विवरण से यह पता नहीं लगता कि वास्तव में समस्या क्या है?

आपकी समस्या का अधूरा विवरण यह है कि 20 वर्ष पहले किस सम्पत्ति का बँटवारा हो गया है तथा किन के बीच हुआ है। यह स्पष्ट नहीं है। संपत्ति खेती की जमीन है या अन्य संपत्ति है। क्यों कि खेती की जमीन और अन्य अचल संपत्तियों के लिए कानून एक जैसा नहीं है। खेती की जमीन पर कृषक की हैसियत किराएदारी जैसी होती है। वह लगान के रूप में सरकार को किराया देता है और असल स्वामित्व हमेशा सरकार / राज्य का बना रहता है। इस कारण दोनों का उत्तराधिकार भी भिन्न होता है। अन्य राज्यों में समान कानून है लेकिन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में खेती की जमीन के उत्तराधिकार का कानून अन्य संपत्तियों के उत्तराधिकार कानून से भिन्न है।

बँटवारा हमेशा साझीदारों के बीच होता है। यदि आपके दादाजी उस जमीन के मालिक थे और कोई साझीदार नहीं था तो बँटवारा नहीं हो सकता था। यदि बेटे भी साझीदार थे और बंटवारा हो चुका था दोनों को समाम संपत्ति मिल चुकी थी तो फिर झगड़ा क्या है? आप जिसे बंटवारा कहते हैं, वह अक्सर एक अस्थायी व्यवस्था होती है जिसमें परिवार का मुखिया अपने पुत्रों को आधी आधी खेती दोनों पुत्रों जोतने का अधिकार दे देता है। दोनों उसमें खर्चा भी अपना करते हैं मेहनत भी और आय खुद रख लेते हैं, यह भी व्यवस्था हो सकती है कि दोनों भाई कुछ न कुछ अपने पिता को देते रहें। यह पिता की अपने परिवार के भीतर की गयी आंतरिक व्यवस्था है, बँटवारा नहीं। स्वामित्व तो फिर भी पिता (आपके संदर्भ में आपके दादा) का ही बना रहता है। तभी छोटे भाई के कहने से उन्हों ने केसीसी करवा ली। यह केसीसी दादा के नाम से ही बनी होगी। इससे लिए गए कर्ज की देनदारी भी आपके दादाजी की ही है। यदि दादाजी की मृत्यु हो जात है तो कर्जा उनकी इस जमीन को उत्तराधिकार में प्राप्त करने वालों को चुकाना पड़ेगा। यदि आपके पिता उत्तराधिकारी हुए तो उन्हें भी केसीसी की देनदारी का बोझ उठाना पड़ेगा।

अब थाने में चौकीदार कौन दर्ज है यह स्पष्ट नहीं है। आपके पिता या चाचा? हों तो हों उससे संपत्ति पर क्या फर्क पड़ता है। वसीयत के मामले में आपका सन्देह सही हो सकता है। आपके दादा चाहें जिसके नाम वसीयत कर सकते हैं। यदि उन्होंने वसीयत कर दी तो संपत्ति उसी को प्राप्त होगी। आप कुछ नहीं कर सकते। बस एक बात है कि आप वसीयत को प्रभाव में आकर कराई गयी कह सकते हैं। लेकिन उसमें फिर एक अन्तहीन कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। वसीयत के मामले में कानूनन अन्तिम  वसीयत ही मान्य है। यदि अन्तिम वसीयत कहती है कि मैं पिछली सारी वसीयतें रद्द करता हूँ मेरी सम्पति का दाय उत्तराधिकार के कानून के अनुसार होगा तो पिछली सभी वसीयतें बेकार हो सकती हैं। आप ऐसा करने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन इस वसीयत के बाद कोई और वसीयत फिर से हो जाए तो कुछ नहीं कहा जा सकता। इसका कोई उपाय नहीं है।  

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