समस्या-
झज्जर, हरियाणा से कृष्ण कुमार ने पूछा है-
पुश्तैनी और सहदायिक संपत्ति में क्या अन्तर है?
समाधान-
परंपरागत हिन्दू (मिताक्षर) विधि यह थी कि यदि किसी पुरुष को अपने तीन पीढ़ियों के पुरुष पूर्वज पिता, दादा और परदादा से कोई संपत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त होती है तो वह पुश्तैनी संपत्ति है और उस में उस संपत्ति को प्राप्त करने वाले पुरुष के पुत्र, पौत्र व प्रपौत्र को जन्म से ही सहदायिक अधिकार प्राप्त होता है। अर्थात यदि इस तरह संपत्ति प्राप्त करने वाले पुरुष के दो पुत्र और एक पौत्र है तो वे भी उस संपत्ति में सहदायिक होंगे। कुल मिला कर उस संपत्ति के चार सहदायिक हो जाएंगे। सभी का समान अधिकार उस संपत्ति में होगा। इस तरह हर पुश्तैनी संपत्ति सहदायिक संपत्ति भी है।
लेकिन ऐसी पुश्तैनी संपत्ति के सहदायिक उस पुश्तैनी संपत्ति की सहायता से नई संपत्ति अर्जित करते हैं तो वह संपत्ति भी सहदायिक संपत्ति होगी। लेकिन वह पुश्तैनी नहीं होगी। दोनों तरह की संपत्ति सहदायिक होगी।
उक्त विधि अब लगातार अवसान पर है क्यों कि 17 जून 1956 से हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी हो गया। इस में किसी पुरुष पूर्वज की सम्पत्ति जो उस की स्वअर्जित थी और सहदायिक नहीं थी उस के देहान्त के बाद केवल हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार ही उत्तराधिकार में उत्तराधिकारियों को प्राप्त होने लगी और ये संपत्ति पुश्तैनी नहीं हुई। इस में किसी भी अन्य व्यक्ति को सहदायिकी अधिकार प्राप्त नहीं हुआ। हाँ जो संपत्ति उक्त अधिनियम के पहले से ही सहदायिक संपत्ति का दर्जा प्राप्त कर चुकी थी वह संपत्ति सहदायिक संपत्ति ही रही और उस के किसी सहदायिक की मृत्यु होने पर उत्तरजीविता के आधार पर उस का उत्तराधिकार निर्धारित होता रहा। अब केवल ऐसी ही सम्पत्तियाँ सहदायिक संपत्तियाँ रह गई हैं। सहदायिक संपत्तियों में भी महिलाओं को उत्तराधिकार प्राप्त हो जाने से वह भी निरन्तर कम होती जा रही है। भविष्य में एक स्थिति ऐसी उत्पन्न हो सकती है कि पुश्तैनी और सहदायिक संपत्ति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए।