भारत के संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय को कुछ विशेष शक्तियाँ भी दी हैं। वह अनुच्छेद 71 के अंतर्गत राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव के संबंध में उत्पन्न विवाद का निपटारा कर सकता है और ऐसे मामले में उस का निर्णय अंतिम माना जाएगा। अनुच्छेद 317 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या उस के किसी सदस्य के दुराचरण का मामला सर्वोच्च न्यायालय को निर्दिष्ट किया जाता है और सर्वोच्च न्यायालय इस नतीजे पर पहुँचता है कि संबंधित सदस्य या अध्यक्ष को उस के पद से हटा दिया जाना चाहिए तो उसे पद से हटा दिया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय के पास मामला लंबित रहने के दौरान राष्ट्रपति ऐसे सदस्य को निलंबित रख सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित विधि को संविधान के अनुच्छेद 141 के द्वारा भारत के सभी न्यायालयों के लिए आबद्धकर घोषित किया गया है। इस तरह सर्वोच्च न्यायालय को विधि के एक स्रोत के रूप में स्वीकार किया गया है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय को अपने स्वयं के निर्णय को उलटने की शक्ति प्रदान की गई है। लेकिन किसी निर्णय को उलट दिए जाने तक वह निर्णय अन्य न्यायालयों पर आबद्धकर रहेगा।
सर्वोच्च न्यायालय संसद या राज्य की विधानसभाओं द्वारा निर्मित की गई विधियों को यदि वे उन की सूची के नहीं हैं तो असंवैधानिक घोषित कर सकता है। दांडिक विधि प्रशासन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि वह न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपराधिक मामलों की अपीलों को एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को स्थानांतरित कर सकता है। न्याय प्रशासन की संपूर्णता के लिए सर्वोच्च न्यायालय वह कोई डिक्री या आदेश जारी कर सकता है। वह ऐसी डिक्री और आदेशों के संबन्ध में नियम भी बना सकता है। वह किसी भी व्यक्ति को स्वयं के समक्ष उपस्थित होने का आदेश दे सकता है।