बंगाल के गवर्नर को गवर्नर जनरल बना देने के बाद इस प्रेसीडेंसी में आने वाले प्रान्तों बंगाल, बिहार और उड़ीसा में न्याय व्यवस्था का विकास तेजी के साथ हुआ लेकिन मद्रास और मुम्बई में यह कुछ धीमी गति से हुआ। हालांकि इन प्रेसीडेंसियों में भी विजित क्षेत्रों को सम्मिलित कर लिए जाने के कारण उन का विस्तार हो रहा था। वहाँ कलकत्ता में प्रचलित न्याय व्यवस्था का ही अनुशीलन किया जा रहा था। हमें इस बीच वहाँ की न्यायिक व्यवस्था में हुए परिवर्तनों पर भी एक नजर अवश्य डालनी चाहिए।
मद्रास का न्याय प्रशासन
वर्ष 1797 के अधिनियम द्वारा मद्रास में 26 दिसंबर 1801 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हुई जिस ने वहाँ पूर्व में स्थित अभिलेख न्यायालय को प्रतिस्थापित किया। सुप्रीम कोर्ट में एक मेयर, तीन एल्डरमैन और एक अभिलेखक को सम्मिलित किया गया था। इस न्यायालय को भी कलकत्ता के सुप्रीम कोर्ट की ही तरह अधिकारिता प्राप्त थी जिन का विस्तार नगर और संबद्ध क्षेत्रों पर किया गया था।
1802 की न्यायिक योजना
इस योजना के तहत कलेक्टर को प्रशासकीय और भू-राजस्व से संबंधित दायित्व सोंपे गए थे। उसे न्यायिक दायित्वों से मुक्त रखा गया था जिस से वह राजस्व संग्रह के काम में प्रवृत्त हो सके। विनियम-3 के अंतर्गत जिला दीवानी अदालततों की स्थापना की गई थी। इस अदालत में किसी भी मूल्य का दीवानी वाद प्रस्तुत किया जा सकता था तथा एक हजार रुपए मूल्य तक के निर्णय बाध्यकारी होते थे। इससे अधिक मूल्य के वादों में निर्णयों की अपील प्रान्तीय न्यायालय को की जा सकती थी। इस न्यायालय को भू-राजस्व के मामलों का निपटारा करने की भी अधिकारिता थी।
विनियम-4 के अंतर्गत चार प्रान्तीय न्यायालयों की स्थापना की गई थी। ये अपील अदालतें थीं। ये जिला दीवानी अदालत द्वारा 1000 रुपए मूल्य से अधिक के वादों के निर्णयों की अपील सुनते थे। 5000 रुपए मूल्य तक की अपीलों के निर्णय बाध्यकारी होते थे तथा इस से अधिक मूल्य के मामलों की सदर दीवानी अदालत में प्रस्तुत की जा सकती थी। सदर दीवानी अदालत को विनियम-5 के अंतर्गत स्थापित किया गया था। जिस की अध्यक्षता सपरिषद गवर्नर द्वारा की जाती थी। यह 5000 रुपए मूल्य से अधिक के मामलों की सुनवाई करता था। 45000 रुपए मूल्य तक के मामलों के निर्णय बाध्यकारी होते थे। इस से अधिक मूल्य के मामलों की अपील इंग्लेंड स्थित किंग इन कौंसिल को की जा सकती थी।
विनियम-16 के अंतर्गत स्थानीय कमिश्नर के न्यायालय भी स्थापित किए गए थे जो लघुवादों का निपटारा करते थे। इन में भारतीय व्यक्तियों को कमिश्नर नियुक्त किया जाता था। ये वैयक्तिक संपत्ति से संबंधित 80 रुपए तक मूल्य के मामलों की सुनवाई कर सकते थे। इस न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध जिला दीवानी अदालत में अपील की जा सकती थी। विनियम-12 के अंतर्गत रजिस्ट्रार के न्यायालय जिलों में स्थापित किए गए थे। इन न्यायालयों की अधिकारिता में 200 रुपए मूल्य तक के सिविल मामले आते थे। 25 रुपए मूल्य तक के मामंलों में रजिस्ट्रार का निर्णय बाध्यकारी होता था, इस से अधिक मूल्य के मामलों में अपील जिला दीवानी अदालत को की जा सकती थी।