समस्या-
दिल्ली से नफ़ीस ज़ेहरा ने पूछा है –
मैं एक शिया मुस्लिम हूँ। मेरे एक दूध पीती पुत्री है। मेरे खाविंद और उन के परिजन हमेशा मुझे मानसिक रूप से उत्पीड़ित करते रहते हैं जिस के कारण मैं उस घर में खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करती। लेकिन मैं अपने पति से अलग भी नहीं होना चाहती। आप सुझाव दें कि मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान-
उत्पीड़न जैसे दुष्कृत्य के लिए यह देखने की आवश्यकता नहीं है कि आप किस व्यक्तिगत विधि से शासित होती हैं। उत्पीड़न एक अपराध भी है और उस के लिए उपाय भी सामान्य और अपराधिक विधि के अन्तर्गत ही प्राप्त होंगे। यदि आप कोई अपराधिक मामला संस्थित नहीं करना चाहती हैं तो इस के लिए आप को महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम के अन्तर्गत उपाय प्राप्त करना चाहिए।
महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 3 के स्पष्टीकरण (iii) में मौखिक एवं भावनात्मक दुरुपयोग को परिभाषित किया गया है। जिस में निम्नलिखित सम्मिलित हैं –
(क) अपमान, हँसी उड़ाना, तिरस्कार, गाली देना और कोई संतान या लड़का नहीं होने के बारे में विशेषकर, अपमानित करना या हँसी उड़ाना: और
(ख) किसी भी वयक्ति जिस से व्यथित व्यक्ति हितबद्ध है, को शारीरिक दर्द पहुँचाने की बारम्बार धमकी देना।
अधिनियम की धारा 3 में घरेलू हिंसा को परिभाषित किया गया है जिस की उपधारा (क) में कहा गया है कि व्यथित व्यक्ति के स्वास्थ्य की सुरक्षा, उस के जीवन, अंग या कल्याण को हानि पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या खतरा पहुँचाना या ऐसा करने का प्रयास करना जिस में शारीरिक दुरुपयोग, यौन दुरुपयोग, मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग तथा आर्थिक दुरुपयोग करना घरेलू हिंसा है।
इस तरह आप को मानसिक रूप से प्रताड़ित करना घरेलू हिंसा है यदि यह इस कारण से है कि आप ने पुत्र को जन्म नहीं दिया है तो यह गंभीर भी है।
इस तरह की घरेलू हिंसा के लिए आप स्वयं या इस अधिनियम के अंतर्गत नियुक्त संरक्षा अधिकारी या कोई भी अन्य व्यक्ति जो कि आप के मायके का संबंधी या मित्र हो सकता है मजिस्ट्रेट के समक्ष अधिनियम की धारा -12 के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। इस आवेदन की सुनवाई करने के उपरान्त मजिस्ट्रेट इस अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत संरक्षा आदेश पारित कर सकता है जिस में वह
(क) प्रत्यर्थी या प्रत्यर्थीगण को घरेलू हिंसा का कोई भी कृत्य कारित करने से,
(ख) घरेलू हिंसा के कृत्य में मदद करने या उस के कारित करने में दुष्प्रेरित करने से,
(ग) व्यथित व्यक्ति के नियोजन वाले स्थान या यदि व्यथित व्यक्ति कोई बालक है तो उस के विद्यालय में या किसी अन्य स्थान जहाँ व्यथित व्यक्ति अक्सर जाता हो प्रवेश करने से,
(घ) व्यथित व्यक्ति के साथ किसी भी रूप में, किसी भी प्रकार की संसूचना करने के प्रयास शामिल हैं, वैयक्तिक, मौखिक या लिखित, या इलेक्ट्रॉनिक या दूरभाष संपर्क करने से,
(ङ) मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना किन्हीं संपत्तियों को अन्यसंक्रमण करने से, दोनो पक्षकारान द्वारा संयुक्त रूप से व्यथित व्यक्ति या प्रत्यर्थी द्वारा या प्रत्यर्थी द्वारा अकेले धारित या उपभोग में या प्रयुक्त बैंक लॉकर्स या बैंक खातों, जिस में उस का स्त्री-धन, या कोई अन्य संपत्ति शामिल हैस पक्षकारों द्वारा या तो संयुक्त रूप से या उन क द्वारा पृथक पृथक धारित हो को संचालित करने से,
(च)आश्रितगण, अन्य नातेदारों या किसी अन्य व्यक्ति को जो व्यथित व्यक्ति को घरेलू हिंसा का शिकार बनाने में मदद करता है प्रतिहिंसा करने से, या
(छ) कोई अन्य कृत्य करने से प्रत्यर्थीगण को निषिद्ध करने का आदेश दे सकता है।
इस तरह का कोई आदेश मजिस्ट्रेट द्वारा पारित करने पर यदि प्रत्यर्थियों में से कोई जिन्हें ऐसे आदेश द्वारा निषिद्ध किया गया है कोई निषिद्ध कृत्य करता है तो यह एक अपराध होगा तथा उस के लिए निषेध आदेश का उलंघन करने वाले व्यक्ति को किसी भाँति के कारावास से जो एक वर्ष तक का हो सकता है या 20000 रुपए तक के जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
मेरी राय है कि आप को इस अधिनियम के अंतर्गत शिकायत प्रस्तुत कर के अथवा करवा कर राहत प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। इस अधिनियम में आवेदन प्रस्तुत करते ही शिकायत प्रथम दृष्टया उचित प्रतीत होने पर अंतरिम रूप से भी ऐसा कोई भी आदेश मजिस्ट्रेट पारित कर सकता है। जिस से उक्त शिकायत की सुनवाई के दौरान भी पीड़िता को संरक्षा प्राप्त हो सके।