भारत की अदालतों में तीन करोड़ से अधिक मुकदमे लम्बित हैं। जिन के लिए जजों की संख्या चार गुना होना आवश्यक समझी जाती है। जब कि साढ़े तीन हजार जजों के स्वीकृत पद रिक्त पड़े हैं। लेकिन विधिमंत्री का वीरप्पा मोइली कहना है कि यह एक विधिक विषय उतना नहीं है जितना प्रशासनिक अधिक है। हमारी न्याय व्यवस्था दुनिया की श्रेष्ठतम व्यवस्थाओं में से एक है। उन्हों ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि भारत में केन्द्र और राज्यों की सरकारें सब से बड़ी न्यायार्थी हैं। जहाँ तक संभव हो सके सरकारों को अदालतों से बचने की आदत डालनी चाहिए।
मोइली जी ने जो पहला बयान माध्यमों के सामने दिया है, उस से कुछ भी पता नहीं लगता है कि वे क्या करना चाहते हैं। उन के बयानों से तो यह लगता है कि वे फिर से मुकदमों को कम करने के तरीकों को अपनाना चाहते हैं जो कि पहले ही अपनाए जा चुके हैं, जिन के अपनाने से एक बार मुकदमों में कमी आई लेकिन कुछ बरसों बाद ही दुबारा मुकदमों की संख्या बढ़ने लगी।
नए विधि मंत्री के लिए तीसरा खंबा की सलाह यह है कि वे पहले यह निश्चित कर लें कि अगले पाँच वर्षों में उन्हें देश में जजों की संख्या कितनी बढ़ानी है? और वे न्याय पालिका को कितनी आधुनिक बना सकते हैं। संयुक्त राज्य में प्रत्येक दस लाख की जनसंख्या पर 111 अदालतें हैं और उन की अदालतें दुनिया की सब से अधिक आधुनिक तकनीकयुक्त हैं। जब कि हम अभी दस लाख की जनसंख्या पर 12-13 न्यायालय उपलब्ध नहीं करा पाए हैं और हमारी निचली अदालतों के लिए इमारतें तक नहीं हैं।
देश में न्याय व्यवस्था के समग्र विकास के लिए राज्यों के साथ मिल कर पंचवर्षीय योजनाएँ बनानी होंगी और उन पर तत्परता से काम करना होगा। वरना हमारी न्याय-व्यवस्था का ढाँचा चरमरा कर गिरने की कगार पर है।