“एक कुशल न्यायिक व्यवस्था के लिए यह जरूरी है कि बार (वकीलों की जमात) भी मजबूत और कुशल हो। एक ऐसी बार जो कि दिखने में न केवल स्वावलंबी और निर्भय हो और पूरे आदर के साथ मामले के विवादित बिंदुओं को मजबूती से अदालत के सामने पेश करे। चापलूसों की तरह न्यायाधीशों की हाँ में हाँ मिलाने वाली बार एक गलती करने वाले जज की गलतियों में ही वृद्धि करती है। जजों को मस्का लगाना उन्हें न्याय के उचित और सही मार्ग से सदैव विचलित कर देता है। अपनी सोच के विपरीत तथ्यों को मजबूती से रखे जाने पर एक जज मामले पर गंभीरता से विचार करने को बाध्य हो जाता है और एक सही निर्णय पर पहुँचता है। एक कमजोर बार न्याय प्रशासन की सब से बड़ी शत्रु है। एक हावी होने वाले जज के लिए एक कमजोर वकील न तो उस के पेशे के लिए ही ‘रत्न’ है और न ही न्याय प्रणाली के लिए। वास्तव में एक कमजोर और हाँ में हाँ मिलाने वाला वकील एक जज के विकास में सब से बड़ी बाधा है।
शत्रु की तरह व्यवहार करने वाला मजबूत वकील अच्छे कैरियर के महत्वाकांक्षी जज के लिए सब से अधिक लाभकारी है। वकीलों के मजबूत और नए तर्कों का सामना करते हुए ही एक अच्छे जज का निर्माण होता है। एक पुराने ढर्रे पर चलने वाली बार एक बुरी न्यायपालिका के लिए जिम्मेदार होती है। जज और वकील दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। न्याय व्यवस्था की ये दोनों भुजाएं एक साथ बराबरी के साथ विकास करनी चाहिए। दोनों एक दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए एक दूसरे से सीखते हुए आगे बढ़ते हैं तो एक स्वतंत्र और मजबूत न्याय प्रणाली विकसित होती है। अच्छे जज अच्छी आलोचना को सहृदयता के साथ स्वीकार करते हैं और अच्छे वकील हमेशा जजों को गलती करने से रोकते हैं।”