तीसरा खंबा

विक्रय पत्र निरस्त कराने के वाद के लिए अवधि मात्र

समस्या-

योगेश चन्द्र ने मोहल्ला योगमार्ग, सोरों, जिला कासगंज (उ.प्र.) से पूछा है –

मेरे बाबा लख्मीचंद ने अपनी जमीन का मुख्तारनामा 21.7.1984  को बलकार के हक में कर दिया। बाबा की मृत्यु 12.12.1992 को हो गयी हैं। बाबा की मृत्यु के बाद बलकार ने मुख्तारनामा के आधार पर जमीन का बैनामा 11.10.1996  को जसवीर के नाम कर दिया। कुछ साल मेरे पिता रमेश चंद्र से चकबन्दी न्यायालय में केस चला। केस के दौरान जसवीर ने मेरे पिता रमेश चंद्र  से न्यायालय में प्रार्थना पत्र दिलवा दिया कि बैनामा के आधार पर जसवीर का नाम डाला जाए। जसवीर ने चकबंदी अधिकारी से आदेश करा लिए कि बैनामा के आधार पर जसवीर का नाम डाला जाए। बलकार व जसवीर की मृत्यु हो चुकी है। क्या हम अपनी जमीन इस आधार पर ले सकते है कि मुख्तारनामा की वैधानिकता मुख्तारकर्ता के जीवित रहते ही रहती है मृत्यु के उपरांत स्वतः ही खत्म हो जाती है। बलकार ने जमीन का बैनामा मुख्तारनामा के आधार पर मुख्तारकर्ता की मृत्यु के उपरांत किया है।

समाधान-

आपने यह विवरण नहीं दिया कि बैनामा (विक्रय पत्र) के आधार पर जसवीर का नाम रिकार्ड में डाले जाने का आदेश चकबंदी अधिकारी ने किस तारीख को किया? इस आदेश की जानकारी आपको कब हुई? तथा अभी संपत्ति पर किस का कब्जा है और दादाजी के बाद से आज तक किस किस का कब्जा उस संपत्ति पर कब-कब रहा है। इन विवरणों के बिना आपकी समस्या का समाधान प्रस्तुत कर पाना संभव नहीं है।

यह सही है कि मुख्तारनामा के आधार पर संपत्ति के स्वामी की मृत्यु के बाद हुआ बैनामा अवैध है और उसके आधार पर जो कुछ हुआ है वह सब अवैध है। लेकिन इस बैनामा को अवैध घोषित कराने के लिए वाद संस्थित करने की अवधि बैनामा होने की तिथि से केवल मात्र तीन वर्ष की है। इस कारण इस मामले में यह देखना होगा कि वाद अवधि में है या नहीं।

इस कारण यह तय करने के लिए कि क्या उपाय किया जाए जो विवरण आपने नहीं दिया है उसकी जरूरत होगी। इसके लिए सबसे बेहतर होगा कि आप किसी स्थानीय अच्छे वकील से मिलें जो पूरी तरह सोच समझ कर कानूनी जानकारी के आधार पर आपको सही और उचित रास्ता सुझा सके।

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