राहुल राठौड ने थांदला, मध्यप्रदेश जिला झाबुआ से समस्या भेजी है कि-
मेरे पिताजी के दो भाई है जिसमे तीसरे नंबर पर मेरे पिताजी आते है जो सबसे छोटे है और मेरे दादाजी की मृत्यु हुए लगभग 10 साल हो गए है और उनकी जो जमीन थी उस का उन्होंने बंटवारा नहीं किया था। उनकी जमीन तीन अलग अलग स्थानों पर थी और जमीन का कोई बंटवारा नहीं होने के कारण तीनो स्थानों की जमीन मेरे दादाजी के तीनो लडको के नाम पर है। समस्या यह है कि जो मेरे पिताजी के दो भाई है उन्होंने मेरे पिताजी को बहला फुसलाकर दो स्थानों वाली अच्छी जमीन ले ली और जो जमीन तीसरे स्थान पर थी और जिसकी आज की तारीख में बहुत कम कीमत है वो हमें दे दी। ये मात्र मौखिक आधार पर हुआ है, अभी तक तीनों स्थानो की जमीन की अलग अलग रजिस्ट्री नही हुई है। लेकिन समस्या यह है कि मेरे पापा उनकी बातों में आ गये हैं और वो कुछ बोलते नहीं और हम चाहते है कि तीनों स्थानों की कुल जमीन का बंटवारा बराबर हो और तीनों को बराबर हिस्सा मिलना चाहिए। मुझे बताये की ऐसा कैसे हो सकता है जबकि पापा उनकी तरफ हो। क्या कोर्ट में इसका समाधान हो सकता है या नहीं?
समाधान-
आप को सब से पहले यह जानना चाहिए कि आप की यह जमीन पुश्तैनी है या नहीं। पुश्तैनी का अर्थ यह है कि यह जमीन 17 जून 1956 के पहले आप के परिवार के किसी पुरुष पूर्वज को उत्तराधिकार में मिली थी या नहीं। यदि ऐसा है तो आप उक्त जमीन के बंटवारे का वाद राजस्व न्यायालय में दायर कर सकते हैं। बंटवारे के वाद में ठीक से बंटवारा हो सकता है जिस में सारी जमीनों की किस्म का भी ध्यान रखा जाए।
मौखिक बंटवारा केवल आपसी कब्जे का बंटवारा होता है वह राजस्व रिकार्ड में दर्ज नहीं होता। यह एक तरह से आपसी सहमति है जो तब तक जारी रहती है जब तक कानूनी रूप से बंटवारा न हो जाए। बंटवारा आपसी सहमति से बंटवारा नामा पंजीकृत कराने से भी हो सकता है और न्यायालय द्वारा भी हो सकता है।
राजस्व अर्थात खेती की जमीन के मामले राज्यों के कानून से शासित होते हैं और उन में बहुत विविधता होती है। दूसरी अचल संपत्तियों से खेती की जमीन भिन्न होती है। उस पर मालिकाना अधिकार सरकार का होता है कृषक केवल खातेदार होते हैं। इस कारण आप को चाहिए कि आप इस मामले में किसी स्थानीय राजस्व मामलों के वकील से सलाह करें और उस के अनुसार उपयुक्त कदम उठाएँ।