सर्वोच्च न्यायालय की रिटें जारी करने की अधिकारिता : भारत में विधि का इतिहास-95
दिनेशराय द्विवेदी
भारत के सर्वोच्च न्यायालय को उस की अपीलीय और आरंभिक अधिकारिता के अतिरिक्त संविधान में नागरिकों को प्रदत्त मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिए उचित कार्यवाहियाँ करने की अधिकारिता संविधान के अनुच्छेद 32 द्वारा प्रदत्त की गई है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि संविधान के खंड (3) में प्रदत्त अधिकारों को प्रवृत्त करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उचित कार्यवाहियाँ संस्थित करने के अधिकार की गारंटी दी जाती है। इसी अनुच्छेद के दूसरे चरण में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के भाग-3 में उपबंधित अधिकारों को प्रवृत्त करने के लिए निर्देश और आदेश जारी करने का अधिकार है और वह बंदीप्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण और अधिकार-पृच्छा में से जो भी उचित हो उसी प्रकृति की रिट जारी कर सकता है।
अनुच्छेद 32 के द्वारा मूल अधिकारों का प्रवर्तन कराने के अधिकार संविधान द्वारा जो गारंटी दी गई है उसे इस संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार के अतिरिक्त किसी भी अन्य प्रकार से निलंबित नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 139 के में संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 32 में वर्णित प्रयोजनों से भिन्न किसी अन्य प्रयोजनों के लिए भी रिटें जारी करने की अधिकारिता प्रदान कर सकती है।