तीसरा खंबा

स्त्री को उत्तराधिकार में प्राप्त तथा स्त्री से उत्तराधिकार में प्राप्त कोई संपत्ति पैतृक नहीं होती

समस्या-

हिन्दू सासू माँ और बेटी दोनों ने अपनी सम्पत्तियों पर 1945 में रजिस्टर्ड मुख्तारनामा आम से बेटी के पति को कुछ शर्तों के साथ मुख्तारआम नियुक्त किया था, क्योंकि उनके कोई वारिस नहीं था। इस मुख्तारनामा आम से उस वक्त प्रचलित न्यायालयीन कार्यवाहियों एवं व्यापार और कृषि कार्य की देख रेख हेतु तथा दोनों माँ और बेटी की संपत्तियों का वारिस नियुक्त करने हेतु उनके ही दामाद व पति को मुख्तारआम नियुक्त किया था। तत्पश्चात दोनों माँ बेटी की मृत्यु हो गई और उपरोक्त संपत्तियाँ पत्नी और सासू के नाते मुख्तार-आम ने १९५२ में अपने स्वयं और पुत्र के नाम कर लीं। पुत्र के नाम संपत्तियाँ करना उचित हो सकता है क्यों कि तरह पुत्र को माता की सम्पत्तियाँ प्राप्त हो गईं। लेकिन अपने नाम से करवाने का अधिकार तो मुख्तारआम को नहीं मिला था। क्यों कि यदि वास्तवमें उनको सम्पत्ति देना होता तो उनको मुख्तार-आम नियुक्क क्यों किया जाता सीधे ही वारिस नियुक्त कर दिया जाता।

(१)     यदि मुख्तार-आम नियुक्त करने वाले संपत्ति के मूल स्वामी ने मुख्तार-आम को अपनी सम्पत्ति का वारिश नियुक्त करने का भी अधिकार दिया हो तो क्या वह मूल स्वामी की मृत्यु के पश्चात उसकी सम्पत्ति को स्वयं अपने नाम वसीयत कर सकता है?

(२)     मुख्तार आम तथा संपत्ति के मूल स्वामियों अर्थात उस की पत्नी और सासू तीनों की मृत्यू हो चुकी है। मूल स्वामियों की कुछ संपत्तियां तो पहले से ही जो माता से प्राप्त हुई पुत्र के नाम थीं और बची हुई पिता की मृत्यु के बाद पुत्र के नाम हो गई। इस तरह से आज जो संपती पुत्र के पास हैं वे क्या पैतृक होंगी या नहीं होंगी? कृपया मार्गदर्शन प्रदान करें।

-राजेश, इंदौर, मध्यप्रदेश

समाधान-

ब से पहले हम मुख्तारनामा की बात करें। मुख्तारनामा से सम्पत्ति का हस्तान्तरण नहीं होता है। मुख्तारनामा किसी व्यक्ति की सम्पत्ति के संबंध में काम करने और दस्तावेज आदि निष्पादित करने के लिए ही किया जा सकता है और वह सम्पत्ति के मूल स्वामी के जीवनकाल के लिए होता है। जैसे ही मुख्तार नियुक्त करने वाले मूल स्वामी की मृत्यु होती है मुख्तारनामा स्वयमेव ही समाप्त हो जाता है। क्यों कि सम्पत्ति उत्तराधिकार के संबंधी कानूनों के अनुसार उत्तराधिकारियों या उत्तरजीवियों की हो जाती है। इस मामले में भी यह स्पष्ट है कि सम्पत्ति के मूल स्वामियों अर्थात मुख्तार आम की सास और पत्नी के जीवन काल में मुख्तारआम द्वारा किए गए कार्यों से तो मूल स्वामी आबद्ध रहेंगे और उस के द्वारा किए गए सभी हस्तान्तरण वैध हस्तान्तरण होंगे। लेकिन जैसे ही मूल स्वामी की मृत्यु हो जाती है। मुख्तार नामा स्वयमेव ही निरस्त हो जाता है। उस के उपरान्त यदि मुख्तार आम कोई कार्य मूल स्वामी की ओर से करता है तो वह अवैध होगा।

हाँ तक वसीयत का प्रश्न है तो वसीयत करने के लिए कभी भी मुख्तार नियुक्त नहीं किया जा सकता। संपत्ति के मूल स्वामी के अतिरिक्त कोई भी अन्य व्यक्ति वसीयत नहीं कर सकता। इस तरह यदि मुख्तार आम मूल स्वामी के जीवनकाल में भी वसीयत नहीं कर सकता, मूल स्वामी की मृत्यु के उपरान्त तो वह मुख्तार आम ही नहीं रह जाता है। इस प्रकार मूल स्वामी की मृत्यु के उपरान्त उस का मुख्तार आम मूल स्वामी कि किसी संपत्ति को किसी भी तरह हस्तांतरित नहीं कर सकता।

ब से पहले हमें यह जानना चाहिए कि पैतृक संपत्ति क्या है?

कोई भी संपत्ति जो किसी पुरुष को अपने पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में प्राप्त होती है वह पैतृक संपत्ति होती है। इस मामले में संपत्ति माँ और पुत्री की है। दोनों महिलाएँ हैं। उन्हें वह संपत्ति किसी से भी प्राप्त हुई हो वह पैतृक नहीं हो सकती। इसी तरह से उन की मृत्यु के बाद जिस किसी भी व्यक्ति को उन की संपत्ति प्राप्त होगी, वह भी पैतृक नहीं होगी।

प के मामले में जो सास है उस की एक मात्र उत्तराधिकारी उस की पुत्री है। इस कारण यदि माता की मृत्यु पहले हो गई है तो उस की समस्त संपत्ति उस की पुत्री को प्राप्त होगी। इस तरह पुत्री समस्त संपत्ति की स्वामी हो जाएगी। यदि पुत्री की मृत्यु बाद में हुई है तो उस की मृत्यु के उपरान्त उस के दो उत्तराधिकारी होंगे, उस का पति और उस का पुत्र। दोनों को संपत्ति का आधा आधा भाग प्राप्त होगा। यदि पिता की मृत्यु हो जाती है तो उस की संपत्ति फिर पुत्र को प्राप्त हो जाएगी। इस तरह पुत्र समस्त संपत्ति का स्वामी हो जाएगा। इस मामले में पिता उसे अपनी पत्नी से उत्तराधिकार में प्राप्त सपत्ति को वसीयत भी कर सकता है। लेकिन यदि उस ने उक्त संपत्ति की वसीयत पुत्र के नाम ही की है तो दोनों ही मामलों में कोई अंतर नहीं पड़ेगा।

क्त मामले में यदि पहले पुत्री की मृत्यु हो जाती है तो उस की संपत्ति प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी होने के कारण संपत्ति का आधा पति को और आधा पुत्र को प्राप्त होगा। बाद में माता की मृत्यु हो जाने पर उस का एक मात्र उत्तराधिकारी होने के कारण समस्त संपत्ति नाती को प्राप्त होगी, न कि दामाद को।

अंतिम बात यह कि इस मामले में कोई भी संपत्ति पैतृक नहीं हो सकती। क्यों कि संपत्ति स्त्रियों की है। एक प्रश्न यह उठ सकता है कि जो संपत्ति पति को पत्नी से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई वह पति की मृत्यु के उपरान्त उस के पुत्र को प्राप्त होने पर वह पैतृक होगी। यदि पिता की मृत्यु 1956 में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी होने के पूर्व होती तो ऐसा ही होता। लेकिन यदि पिता की मृत्यु उक्त अधिनियम के प्रभावी होने के उपरान्त हुई है तो उस से पुत्र को प्राप्त होने वाली संपत्ति पैतृक नहीं होगी।

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