एक स्थान पर यह बोर्ड लटका हुआ दिखे कि कोई भी स्वास्थ्यवर्धक भोजन की इच्छा रखने वाला यहाँ आ कर भोजन कर सकता है। आप अपनी भूख मिटाने अंदर घुसें और वहाँ कहा जाए कि थाली कटोरी ले कर लाइन में लग जाओ और आगे बढ़ते जाओ। आप लाइन में लग गए। लाइन आगे बढ़ती जा रही है। एक कमरे से दूसरे में, फिर तीसरे में फिर चौथे में फिर गैलरी, फिर कमरा। फिर आप किसी लाइन वाले से ही पूछेंगे कि वह खाने वाला कमरा कब आएगा? आप को जवाब मिलेगा -जरा आगे वाले से पूछता हूँ। आप सोचेंगे कहाँ आ फंसे ? इस से तो बिन खाए ठीक थे। सवाल आगे से आगे तक जा रहा है। फिर लौट कर जवाब आता है। तब तक चार-छह कमरे और दो-तीन गैलरी और आप पार कर चुके हैं। भाई भोजन बनाने वाले कम हैं। इस लिए जैसे रोटियाँ पक रही हैं वैसे ही दी जा रही हैं। समय तो लगेगा ही।
आप को पता है आप कहाँ हैं? जी हाँ आप भारत की न्याय-पालिका में हैं। यहाँ भोजन स्वास्थ्यवर्धक तो है लेकिन मिलते ही मिलेगा। आखिर हम ठाले तो बैठे नहीं हैं रोटियाँ बेल ही रहे हैं, सिकते ही सिकेंगी। बिना पके परोस दें तो कहेंगे कि स्वास्थ्यवर्धक का बोर्ड झाँसा था।
अब आप कहेंगे कि जितने लोग यहाँ आने की संभावना थी उतने रोटी बेलने वाले, उतने चूल्हे और उतने ही सिकाई करने वाले लगाए जाने थे। वरना बोर्ड ही नहीं लगाना था। जी बोर्ड कैसे नहीं लगना था। आखिर हम एक गणतांत्रिक देश हैं। जनतंत्र है यहाँ पर। हर व्यक्ति को स्वास्थ्यवर्धक भोजन कराना हमारा दायित्व है। हम तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। जल्दी ही रोटियाँ जल्दी पकने लगेंगी।
लाइन में खड़े लोगों में से कुछ कहते हैं हम आप की मदद को आएँ। वाह आप कैसे आ जाएँगे? स्वास्थ्य वर्धक भोजन पकाना कोई हँसी ठट्ठे का खेल है? जो हर कोई पका लेगा। उस के लिए पहले आप को वैज्ञानिक पाकशास्त्र की डिग्री पास करनी होगी। फिर हम वैकेंसी निकालेंगे। फार्म भरना होगा परीक्षा पास करनी होगी। फिर अंतर्दर्शन होगा। बड़ी कवायद होगी। यहाँ जितने भी भोजन पकाने वाले हैं सब के सब इसी प्रक्रिया से आए हैं।
भाई अब की बार वैकेन्सी इतनी निकालना कि लंबी लाइन ना रहे। वाह जी वाह ज्यादा लोग तो भर्ती कर लें पर चूल्हे ही ना हों तो? आखिर आदमी उतने ही तो भरती करेंगे जितने चूल्हे होंगे। तो चूल्हे क्यों नहीं बढ़ाते। भाई सरकार कहती है कि हमारे पास और भी तो बहुत से काम हैं। इतना सारा पैसा चूल्हों और पाकशास्त्रियों पर ही खर्च कर दे तो बाकी कामों का क्या होगा? रोटी के बिना लोग मर थोड़े ही जाएंगे। फिर बाहर भी तो लोग रोटियाँ बेच ही रहे हैं। वहाँ क्यों नहीं चले जाते?
चुनाव आ रहे हैं। एक पार्टी कह रही है – हम हर साल चूल्हों की संख्या उतनी बढ़ाएंगे जितनी आज है। यानी पहले साल दुगने, दूसरे साल तिगुने और पांच साल में छह गुना हो जाएँगे। दूसरी अभी तक चुप हैं। चुनाव आने दो देखते हैं वे क्या कहती हैं?