समस्या-
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में वर्णित में वर्णित संपत्ति पर अधिमान्य अधिग्रहण का अधिकार (preferential right to acquire) क्या है?
समाधान-
जब भी किसी व्यक्ति का देहान्त बिना कोई वसीयत छोड़े हो जाता है तो मृतक की संपत्ति और व्यवसाय पर उस के उत्तराधिकारियों का स्वामित्व स्थापित हो जाता है। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार प्रथम अनुसूची के सभी उत्तराधिकारियों को उस संपत्ति और व्यवसाय में समान हिस्सा प्राप्त हो जाता है और वे सभी उक्त संपत्ति और व्यवसाय के संयुक्त स्वामी हो जाते हैं। ऐसी संपत्ति और व्यवसाय अविभाजित संयुक्त संपत्ति और व्यवसाय हो जाते हैं। उस संपत्ति और व्यवसाय में सभी हिस्सेदारों के भागों का निर्धारण या तो सभी उत्तराधिकारियों के आपसी समझौते से हुए विभाजन विलेख के माध्यम से संपन्न होता है अथवा किसी एक या अधिक उत्तराधिकारियों द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत किए गए विभाजन के वाद में हुई डिक्री के माध्यम से होता है।
यदि ऐसी किसी संयुक्त संपत्ति या व्यवसाय का विभाजन किए बिना उत्तराधिकारियों में से कोई एक भागीदार अपना हिस्सा स्थानान्तरित करवाना चाहे तो उस समय उस संयुक्त संपत्ति या व्यवसाय के अन्य भागीदारों को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वे संपत्ति या व्यवसाय से अपना हिस्सा अलग चाहने वाले पक्षकार का हिस्सा उस का मूल्य उस हिस्सेदार को चुका कर स्वयं अपने नाम हस्तान्तरित करवा लें।
इस तरह स्वयं अपने नाम हस्तान्तरित करवाने का इच्छुक भागीदार उस हिस्से को प्राप्त करने के लिए जिस क्षेत्र में वह संपत्ति स्थित है अथवा जिस क्षेत्र में वह व्यवसाय चल रहा है उस क्षेत्र पर क्षेत्राधिकार रखने वाले दीवानी न्यायालय में हिस्से को हस्तान्तरित करवाने के लिए आवेदन कर सकता है। संपत्ति या व्यवसाय का मूल्य क्या अदा किया जाएगा इस पर विवाद होने पर न्यायालय हस्तांतिरित होने वाली संपत्ति या व्यवसाय का मू्ल्य तय करेगा। इस प्रकार तय मूल्य अदा करने को तैयार न होने पर संपत्ति या व्यवसाय का भाग उस का अधिकारी भागीदार किसी भी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित कर सकता है।
यदि अपने नाम हस्तांतरित करवाने के इच्छुक सहभागीदारों की संख्या दो या अधिक हो तो उन में से जो भी भागीदार हस्तांतरित कराए जाने वाली संपत्ति या व्यवसाय के भाग का अधिक मूल्य देने को तैयार होगा वही उस संपत्ति या व्यवसाय को अपने नाम हस्तांतरित कराने का अधिकारी होगा।