दीपक शर्मा ने गोरखपुर उ.प्र. से पूछा है-
मेरे भाई की शादी 1996 में हुई। उनकी पत्नी 5 दिन घर में रहने के बाद अपने मैके चली गयी और जाते ही 498 ए और 125 के तहत जलाकर मारने और मेंटनेन्स के लिए दावा कर दिया। 498 ए में मेरे भाई, मेरी माँ, पत्नी, बहन, चाचा के नाम थे। 498 ए में हम 2 बार जमानत भी करवा चुके हैं, 2002 मे हम 125 मुक़दमा हार गये और 1996 से 500 रुपए प्रतिमाह खर्चा भी दे रहे हैं। तब से केस चल रहा है। जनवरी 2016 में सुलह की बात के तहत मेरे भाई की वाइफ को 1,50,000 रुपए भी दिया गया कि अब हमसे तुमसे कोई मतलब नहीं. और उसने 4 केस में सें दो में सरेणडर भी कर दिया। अभी कागज बन ही रहे थे कि तभी मेरे भाई की मृत्यु हो गयी। अब वो हमसे ज़मीन के लिए लड़ रही है तथा वो इस को लेकर बेचकर पैसा बनाना चाहती है। इस 20 साल में वो अपने मैके में रह रही थी मुक़दमे के अलावा हमसे कोई मतलब नहीं था। उसका यहाँ का कोई आईडी नहीं है। क्या वो पैतृक संपत्ति को पाने तथा सेल करने की अधिकारी है? यह संपत्ति मेरे और मेरे भाई की दिन रात काम करके हम ने हमारी माँ के नाम से खरीदा था। माँ भी नहीं है। प्लीज़ आप मुझे सही रास्ता बताएँ की हम इस संपत्ति को ग़लत हाथ में जाने से बचा लें।
समाधान-
आप ने जिस संपत्ति के बारे में चिन्ता व्यक्त की है उसे आप दोनों भाइयों ने दिन रात काम कर के खरीदा और माँ के नाम से। इस तरह यह संपत्ति पैतृक नहीं थी। इसे कभी भी पैतृक नहीं कहा जा सकता। यह माँ के नाम थी इस कारण उन की संपत्ति थी। उन के देहान्त के बाद हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार उन के उत्तराधिकारियों की है।
आप की माँ के जितनी भी संतानें हैं (जिस में आप की बहनें भी सम्मिलित हैं) और यदि पिता जीवित हैं तो उन्हें मिला कर जितने उत्तराधिकारी हैं वे सब बराबर के अधिकारी हैं। जब आप की माताजी जीवित थीं और आप के भाई का पत्नी से विवाद चल रहा था। तभी संपत्ति में यह संकट उत्पन्न हो चुका था। आप की माताजी चाहती तो अपने जीवन काल में ही अपनी संपत्ति की वसीयत कर सकती थीं। उन की संपत्ति निर्वसीयती रह जाने से उस का विभाजन होगा जिस में एक हिस्सा आप के मृतक भाई का भी है। भाई की पत्नी चाहे दो दिन ही आप के परिवार में रही हो और उस के बाद केवल लड़ाई के सिवा कुछ भी न किया हो पर पति के जीवित रहते तलाक न होने से उत्तराधिकार के कानून के अनुसार वह एक हिस्सेदार है और उत्तराधिकार के कानून के अनुसार वह एक एक हिस्सेदार है और अपने पति का हिस्सा प्राप्त करने की अधिकारिणी है। आप न देंगे तो लड़ कर लेगी। इस से बेहतर है कि आपसी सहमति से उसे उस के हिस्से के रूप में कुछ दे दिया जाए और उस विभाजन का दस्तावेज तैयार कर लिया जाए। यदि अदालत में मुकदमा चल रहा हो तो आपसी रजामंदी से विभाजन का आवेदन दे कर विभाजन की डिक्री प्राप्त कर ली जाए।