तीसरा खंबा

संज्ञेय, असंज्ञेय, जमानती व ग़ैरजमानती अपराध और अग्रिम जमानत

समस्या-

शमशेर ने बीकानेर, राजस्थान से पूछा है-

हत्या का प्रयास करने वाले अपराधी को पुलिस को सौंप दिया। लेकिन पुलिस ने उसे बिना मजिस्ट्रेट के सामने पेश किये छोड़ दिया।  अब पुलिस कहती है कि उसकी जमानत हो गयी है। क्या पुलिस थाने में जमानत होती है? क्या अगर होती है, तो पुलिस उसे वापिस कब लाएगी?

समाधान-

शमशेर भाई, साधारण लोग चीजों को ठीक से समझने की कोशिश नहीं करते। असल में चीजें बिना कोशिश के समझ नहीं आतीं। आप थोड़ा कोशिश करते तो यह सब आप को भी समझ आ जाता। कोशिश से हमारा मतलब कुछ आसपास के जानकार लोगों से पूछना और जरूरत पड़ने पर किसी किताब का सहारा लेना भी है। खैर, आप का यहाँ यह सवाल पूछना भी एक कोशिश ही है, इस कोशिश के लिए आप को बधाई¡

सब से पहली बात तो ये कि आप ने “अपराधी” शब्द का गलत प्रयोग किया है। अपराधी का अर्थ होता है जिस के विरुद्ध किसी अपराध का आरोप अदालत ने सिद्ध मान लिया हो। जब तक उस पर आरोप होता है वह “अभियुक्त” या “मुलज़िम” कहलाता है। जैसे ही अपराध सिद्ध हो जाता है, उसे “अपराधी” या “मुज़रिम” कहा जा सकता है। यहाँ आप को इस के लिए अभियुक्त शब्द का प्रयोग करना चाहिए था।

दूसरी बात ये कि जमानत पुलिस थाना में भी होती है और अदालत में भी होती है। अपराध दो तरह के होते हैं, एक तो संज्ञेय और दूसरे असंज्ञेय। संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर पुलिस उसे प्रथम सूचना रिपोर्ट के रूप  में दर्ज करती है और अनुसंधान आरंभ कर देती है, असंज्ञेय अपराधों के मामले में सूचना को पुलिस केवल रोजनामचे में दर्ज करती है और सूचना देने वाले को कहती है कि यह असंज्ञेय मामला है इस कारण वह सीधे मजिस्ट्रेट की अदालत में परिवाद प्रस्तुत करे। असंज्ञेय मामलों पर मजिस्ट्रेट प्रसंज्ञान ले कर सुनवाई के लिए तलब कर सकता है।

अब संज्ञेय मामलों में भी दो तरह के मामले होते हैं। जमानती और ग़ैरजमानती। जमानती मामलों में अभियुक्त के गिरफ्तार होने पर पुलिस खुद जमानत ले लेती है, बल्कि ऐसे मामलों में अभियुक्त से पुलिस को पूछना जरूरी होता है कि वह जमानत पेश करे तो उसे छोड़ दिया जाएगा। अभियुक्त अक्सर जमानत पेश करते हैं और रिहा हो जाते हैं। गैर जमानती मामलों में पुलिस जमानत नहीं ले सकती। उसे गिरफ्तार करने पर 24 घंटों में अदालत में पेश करना होता है। वहाँ अभियुक्त जमानत की अर्जी पेश कर सकता है और मजिस्ट्रेट जमानत ले कर उसे रिहा कर सकता है।

जो अपराध गैरजमानती हैं उनमें भी अभियुक्त चाहे तो पहले से सेशन कोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी दे सकता है और सेशन न्यायालय पुलि से उस मामले की डायरी मंगा कर सुनवाई कर सकती है। उचित होने पर उसे अग्रिम जमानत का लाभ देते हुए आदेश दे सकती है कि उसे गिरफ्तार करने की जरूरत हो तो उसे जमानत ले कर छोड़ दिया जाए।

हत्या का प्रयास करने का अपराध गैरजमाती है। इस कारण यदि अभियुक्त को पुलिस को सौंप दिया गया है तो उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना पुलिस के लिए आवश्यक है। लेकिन यदि अभियुक्त ने पहले से ही अग्रिम जमानत का आदेश ले रखा है तो पुलिस को उसे जमानत पर छोड़ना जरूरी है। आप के मामले में यही हुआ होगा। अब जब पुलिस मजिस्ट्रेट के समक्ष उस मामले में आरोप पत्र प्रस्तुत करेगी तब अभियुक्त को सूचित करेगी और उसे मजिस्ट्रेट के न्यायालय के समक्ष उपस्थित होना पड़ेगा। वहाँ उसे दुबारा जमानत पेश करनी होगी।

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