तीसरा खंबा

अनापत्ति का निर्णय तो सभी आश्रितों को आपस में ही करना होगा।

समस्या-

नाज़िया ख़ान ने लखनऊ, उत्तर प्रदेश से समस्या भेजी है कि-

मेरे पापा रेलवे में कर्मचारी थे। वो मेरी मम्मी को बहुत मारते थे कि पैसा लाओ। फिर उन्ही ने मार के 10 रुपए के स्टांप पेपर पर हस्ताक्षर करा लिया बोले ये तलाक़ है। लेकिन मेरी मम्मी नहीं मानी फिर उन्हों ने घर से भगा दिया। मम्मी ने फॅमिली कोर्ट में केस कर दिया। उनको वहाँ 5 हजार रुपए अंतरिम मिलने लगे। अदालत ने तलाक को नहीं माना। हम दो भाई बहन हैं। फिर मेरे पापा ने दूसरी औरत रख ली। रेलवे वाले उन्हे पास और मेडिकल सुविधा दे रहे थे। मेरे पापा की सेवाकाल में ही मृत्यु हो गई 7 महीना पहले। रेलवे वाले बोल रहे हैं कि तुम लोग इनको पेन्शन और पैसा लिखो फिर वो दूसरी औरत तुमको नौकरी लिखेगी। मैं ने कहीं नहीं सुना कि सब दूसरी पत्नी का होता है। उसके कोई बच्चे नहीं हैं।  हमारी मदद करें।

समाधान-  

दि आप के पिता का आप की माता के साथ तलाक को वैध नहीं भी मानने पर भी मुस्लिम पर्सनल ला के अनुसार दूसरा विवाह वैध था। अर्थात दोनों पत्नियों को समान अधिकार प्राप्त था। आप दोनों बहन भाइयों को भी अपना अधिकार प्राप्त है। लेकिन अनुकंपा नियुक्ति तो किसी एक आश्रित को तभी मिल सकती है जब अन्य सभी आश्रित उस के नाम पर अपनी अनापत्ति दर्ज कराएँ। अनापत्ति का निर्णय तो सब आश्रितों को मिल बैठ कर ही करना होगा।

ऐसी स्थिति में आप के पिता की दूसरी पत्नी पूरी तरह से बारगेन कर सकती है कि उसे पेंशन और नौकरी से मिलने वाली ग्रेच्युटी आदि दी जाए तो वह आप के या आप के भाई के नौकरी पाने पर अपनी अनापत्ति दे सकती है। यह बात उस ने रेलवे वालों को कही होगी और उन्हों ने आप को बताई है। इस का निर्णय तो आपसी समझ से ही करना पड़ेगा। वैसे भी यदि आप के भाई को नौकरी मिलती है तो उस के एवज में बाकी चीजें छोड़ देना बुरा नहीं है।

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