तीसरा खंबा

अपनी समस्या पर सिर्फ सोचते न रहें, वकील से मशविरा करें और निर्णय ले कर कार्यवाही करें

 हिमांशु श्रीवास्तव ने पूछा है –
मेरा विवाह दिनांक 10.02.2003 को हुआ था। हमारे एक सन्तान है। पत्नी मेरे परिवार के साथ समायोजन नहीं चाहती, और न  ही उस का परिवार। मेरी पत्नी इस के लिए सदैव मेरे पिता जी पर मिथ्या आरोप लगाती रही। पिताजी के देहान्त के उपरान्त अब मुझे दोषी बताती है। पत्नी के पिता और चाचा मुझे धमकी देते हैं कि मुझे मार डालेंगे। अब मेरी पत्नी उस के मायके वालों के साथ कानपुर में रहती है। वे मुझे अपनी संतान से मिलने की अनुमति भी नहीं देते हैं। अब मैं अपनी पत्नी के साथ नहीं रहना चाहता तथा अपनी संतान को अपने संरक्षण में रखना चाहता हूँ। 
 उत्तर –
हिमांशु जी,
प ने जो स्थितियाँ बताई हैं, केवल उन के आधार पर यह तय नहीं किया जा सकता कि आप को अपनी पत्नी से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त हो सकती है अथवा नहीं या आप को अपनी संतान को संरक्षण में लेने का अधिकार प्राप्त हो सकता है अथवा नहीं। इस के लिए आप को विवाह से ले कर आज तक आप की पत्नी व ससुराल वालों और आप के बीच जो कुछ भी हुआ है सब कुछ बताना पड़ेगा। तभी कोई अधिवक्ता यह बता सकेगा कि आप जो चाहते हैं वह राहत आप को प्राप्त हो सकती है अथवा नहीं। 
हिन्दू विधि में विवाह विच्छेद केवल कुछ निश्चित आधारों पर अथवा पति-पत्नी दोनों की सहमति से ही प्राप्त हो सकता है। ऐसे आधार आप के वैवाहिक जीवन में आप को उपलब्ध हुए हैं अथवा नहीं यह बात कोई वकील आप से एक दो साक्षात्कार करने के उपरान्त ही तय कर सकता है। लगभग यही बात आप की सन्तान के संरक्षण के सम्बन्ध में है। मेरा आप को सुझाव है कि आप केवल सोचते न रहें। वैवाहिक मामलों में अनुभव रखने वाले किसी नजदीकी वकील से तुरंत मिलिए, उसे अपनी समस्या विस्तार से बताइए। वह आप की समस्या सुन कर और सभी तथ्यों को जानकर आप को उचित सलाह देगा। यदि आवश्यक हुआ तो अन्य तथ्य जानने का प्रयत्न भी करेगा। वकील की सलाह प्राप्त होने पर आप गंभीरता से विचार करें और उचित निर्णय लें। आप को लगे कि कानूनी और न्यायालय की कार्यवाही किया जाना आवश्यक है तो उस की सलाह के आधार पर कार्यवाही करें। बैठे न रहें। 
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