प्रयास ने पूछा है –
मैं ने दो वर्ष पूर्व आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली थी। लेकिन अभी इस बात की जानकारी किसी को नहीं है। मैं और मेरी पत्नी अलग-अलग अपने-अपने माता-पिता के साथ रहते हैं। क्या यह शादी कानूनी है? यदि नहीं है तो उसे कानूनी बनाने की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर –
प्रयास जी,
आप ने आर्यसमाज मंदिर में विवाह किया है। आम तौर पर आर्यसमाज वाले वे ही विवाह कराते हैं जो कि कानूनन वैध हों। वे दोनों की आयु के प्रमाण देखते हैं, वे देखते हैं कि विवाह सूत्र में बंधने जा रहे स्त्री-पुरुष दोनों में कोई ऐसा संबंध तो नहीं है जिस से विवाह अवैध हो जाए, वे यह भी देखते हैं कि उन में से कोई विवाह के अयोग्य नहीं है। इस तरह से एक हिन्दू विवाह के लिए आवश्यक सभी बातों को देखते हुए एक वैध विवाह संपन्न कराते हैं। सप्तपदी के चित्र भी वे रखते हैं। विवाह के साक्षी भी होते हैं। वे अपने रजिस्टर में इन सब तथ्यों को अंकित करते हुए विवाह के बाद विवाह का प्रमाण पत्र जारी करते हैं। इस तरह यदि हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत सभी शर्तों को पूरा कराते हुए आर्य समाज मंदिर में आप दोनों का विवाह संपन्न हुआ है तो आप का विवाह वैध है। उसे वैध ठहराने के लिए किसी अन्य प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं है।
लेकिन सामान्य रीति से संपन्न हुए विवाह को भी विवाह पंजीयक के कार्यालय में पंजीबद्ध करवाना बेहतर है। अनेक राज्यों में इसे अनिवार्य किया जा चुका है। इसलिए मेरी सलाह है कि आप भी अपने विवाह को पंजीबद्ध करवा लें। इस पंजीकरण से आप का पक्ष और मजबूत हो जाएगा। आप दोनों का विवाह हो चुका है और बिना इस विवाह का विच्छेद हुए आप दोनों ही कोई दूसरा विवाह नहीं कर सकते। यदि किया जाता है तो वह अवैध होगा। यदि किसी परिस्थिति में आप की पत्नी का विवाह अन्यत्र कराने का प्रयत्न किया जाता है तो आप सिविल न्यायालय में जा कर उसे रुकवा सकते हैं।
विवाह हो जाने के उपरांत आप लोग अपने-अपने माता-पिता के साथ रहने की कोई बाध्यता हो सकती है। लेकिन यदि आप अपने पैरों पर खड़े हैं तो आप को साथ-साथ रहने का प्रयत्न करना चाहिए। विवाह स्त्री-पुरुष के बीच होता है लेकिन उस की सामाजिक मान्यता का बड़ा महत्व है। विवाह का पंजीयन करवाने के उपरांत आप को प्रयत्न करना चाहिए कि आप दोनों के माता-पिता इस बात को स्वीकार कर लें कि आप का विवाह हो चुका है जिसे उलटना संभव नहीं है। यदि ऐसा संभव न हो सके तो भी आप दोनों को उन्हें बता कर साथ रहना चाहिए। यह हो सकता है कि आप के परिजन इस विवाह को स्वीकार न करें। यूँ तो कई बार ऐसा देखा गया है कि सामाजिक रूप से किए गए विवाह को भी अवैध बता दिया गया है, और मुकदमा चलता रहा है। ऐसी स्थिति में किसी भी वैध विवाह पर आपत्ति तो कोई भी कर सकता है। यदि आप के मामले में भी ऐसा होता है तो आप विवाह कराने वाले पुरो
हित, साक्षियों की गवाही, आर्य समाज मंदिर के रजिस्टर और विवाह प्रमाण पत्र के आधार पर उसे एक वैध विवाह साबित कर सकते हैं।
हित, साक्षियों की गवाही, आर्य समाज मंदिर के रजिस्टर और विवाह प्रमाण पत्र के आधार पर उसे एक वैध विवाह साबित कर सकते हैं।