समस्या-
एक लड़की ने जो कि मेरे मित्र के साथ एक प्राइवेट कंपनी मे काम करती थी 20/01/2010 को बलात्कार अपहरण और मारपीट की प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखाई जिस में मेरे मित्र उसकी पत्नी, उनके माता पिता, भाई और भाई की पत्नी का नाम लिखा दिया। उसका मेडिकल हुआ मेडिकल में रिपोर्ट आयी कि 2 फिंगर स्पेस है। अंदर किसी तरह के शुक्राणु नहीं पाए गये और किसी तरह का चोट का निशान भी नहीं पाया गया। उस का मेरे मित्र के साथ प्रेम संबंध था, लेकिन शारीरिक संबंध नहीं था। मेरे मित्र का मेडिकल भी नहीं हुआ। उस लड़की से मेरे मित्र की हमेशा बातचीत होती थी जिसकी सारी रेकॉर्डिंग मेरे मित्र के पास है और कॉल डिटेल्स भी पुलिस ने कोर्ट में लगाई है। मेरे मित्र 4 महीने जेल में रहे तो लड़की वहाँ उस से मिलने भी जाती थी। जो अखबार में छपा था और पुलिस ने भी अपनी डायरी में लिखा है। पुलिस ने घर के सभी लोगों के नाम हटा केवल मेरे मित्र के विरुद्ध अपहरण, बलात्कार और धारा-120ख आईपीसी के तहत कोर्ट में दाखिल की है। अभी कोर्ट में ट्रायल चल रही है। इस केस में 4 आई.ओ. को वो लड़की बदलवा चुकी थी। उधर लड़की ने एक एप्लिकेशन डीआईजी के पास दी है कि मुलजिम से पैसा लेकर पुलिस ने नाम निकाला है और उस के पक्ष में रिपोर्ट दी है इसलिए फिर से विवेचना की जाए। पुलिस ने मेरे मित्र के घरवालों को तंग करना चालू कर दिया है। क्या ये संभव है कि एक तरफ ट्रायल हो और दूसरी तरफ विवेचना फिर से हो। इस का उपाय क्या है कि वो लड़की दुबारा एप्लिकेशन ना दे और पुलिस तंग ना करे? लड़की ने जिरह में कहा है कि मैं जेल में मिलने नहीं जाती थी और मोबाइल से बात भी नहीं करती थी। जब कि सारा रेकॉर्ड जेल में है और दो डिप्टी जेलरों को भी पुलिस ने गवाह बनाया है उनकी गवाही अभी नहीं हुई है। बातचीत का सारा रेकॉर्डिंग की मेरे मित्र ने सीडी बनवा ली। वकील तो कहता है कि कुछ नहीं होगा। चाहे केस कोई भी हो लेकिन कोई भी वकील ये नहीं कहता है कि मैं केस हार जाउंगा? इस मुक़दमे में क्या हो सकता है?
-मुकेश सिंह, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
समाधान-
मान लीजिए किसी व्यक्ति के विरुद्ध पूरी तरह से मिथ्या रिपोर्ट थाने में दर्ज कराई जाती है, पुलिस सबूत एकत्र करती है तो शिकायतकर्ता पुलिस को मिथ्या साक्षी और दस्तावेज प्रस्तुत करता है और उस के आधार पर पुलिस आरोप पत्र प्रस्तुत करती है, तो यह भी हो सकता है कि उन्हीं मिथ्या साक्ष्य के आधार पर एक निर्दोष व्यक्ति को दोषी सिद्ध कर दिया जाए। तब तो दंड मिलेगा ही मिलेगा। यही कारण है कि अपराधिक न्याय शास्त्र में किसी भी अभियुक्त के बचाव करने के अधिकार को अत्यन्त गंभीर माना जाता है। किसी भी अभियुक्त को पूरी तरह से बचाव करने का अवसर दिए बिना दंडित नहीं किया जा सकता।
आप के मित्र के मामले में अत्यन्त छोटे छोटे तथ्यों को ले कर प्रसन्न हो सकते हैं कि प्रथम सूचना रिपोर्ट की कुछ बातें रिकार्ड से मिथ्या साबित हो जाएंगी और आप के मित्र निर्दोष सिद्ध होंगे। लेकिन भारत में न्याय का सिद्धान्त यह नहीं है कि यदि किसी व्यक्ति के बयान के एकाधिक तथ्यों के मिथ्या सिद्ध हो जाने से उस का पूरा बयान मिथ्या मान लिया जाएगा। भारत में सिद्धान्त यह है कि साक्षी पूरा सच नहीं बोलता, इस लिए न्यायालय को हर बयान में से सच और झूठ को अलग करना चाहिए और उस आधार पर निर्णय देना चाहिए। आप के मित्र के मामले में तीन आरोप हैं, हो सकता है उसे किसी आरोप का दोषी न माना जाए लेकिन कुछ आरोपों का दोषी सिद्ध मान लिया जाए। जहाँ तक आप के मित्र के मामले में कोई स्पष्ट राय देने का प्रश्न है तो किसी भी अपराधिक मामले में आरोप पत्र तथा विचारण के दौरान न्यायालय के समक्ष आई हुई साक्ष्य का अध्ययन किए बिना कोई स्पष्ट राय नहीं बनाई जा सकती है। आप के मित्र को चाहिए कि किसी वकील से यह सुन कर कि वह उसे को बरी करा देगा निश्चिंत न हो जाएँ। पूरी गंभीरता के साथ अपने मुकदमे की पैरवी करवाएँ, स्वयं भी मामले को समझें और समय समय पर अपने वकील को युक्तियों के सुझाव भी दें।