प्रकाश कुमार पूछते हैं –
प्रेम विवाह (love marriage) करने में मुझे कानूनी रूप से क्या क्या परेशानियाँ आ सकती हैं? और उन का समाधान क्या है?
प्रकाश जी,
आप ने अपने प्रश्न में अपनी परिस्थितियाँ नहीं बताई हैं। यदि सारी परिस्थितियाँ बताते तो आप की परेशानियों का अनुमान कर के विशिष्ठ उत्तर दिया जा सकता था। आप का प्रश्न अत्यन्त सामान्य है। फिर भी प्रेम विवाह के बारे में सामान्य जानकारी यहाँ दी जा रही है।
‘प्रेम विवाह’ या ‘लव मेरिज’ शब्द कानून में कहीं भी परिभाषित नहीं है। इन शब्दों का उपयोग तब किया जाता है जब अपने परिवारों की सहमति के बिना या सहमति से भी कोई भी स्त्री-पुरुष आपसी सहमति से किए गए विवाहों के लिए किया जाता है। यह विवाह किसी भी पद्धति का हो सकता है। यदि दोनों परिवारों की सहमति हो तो इसे दोनों परिवारों या किसी एक परिवार की परंपरा के साथ विवाह किया जा सकता है। यदि दोनों परिवारों की सहमति हो तो इस तरह के विवाह में कोई कानूनी या सामाजिक समस्या नहीं होती।
भारत में सभी व्यक्तिगत विधियों के अंतर्गत होने वाले परंपरागत विवाहों को मान्यता प्रदान की गई है। ये व्यक्तिगत विधियाँ विवाह करने वाले स्त्री-पुरुष के धर्म से संबंधित होती हैं। जैसे हिन्दू विवाह, मुस्लिम विवाह (निकाह), ईसाई विवाह, पारसी विवाह और यहूदी विवाह। सभी धर्मों में कुछ प्रकार के संबंधों के बीच विवाह प्रतिबंधित हैं। विवाह इन प्रतिबंधित संबंधियों के बीच हो तो वह अकृत और अवैध विवाह होता है। इस कारण से पहली सावधानी तो यह होनी चाहिए कि विवाह प्रतिबंधित संबंधों के बीच नहीं होना चाहिए।
मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी धर्मों के अनुयायियों के अतिरिक्त सभी भारतियों को हिन्दू माना गया है। इस कारण से उन सभी पर हिन्दू विवाह अधिनियम प्रभावी है। इस कारण से यदि विवाह करने वाले स्त्री-पुरुष इन धर्मों के अनुयायी न हों तो उन्हें हिन्दू विवाह अधिनियम की शर्तों को पूरा करते हुए ही विवाह करना चाहिए।
यदि विवाह करने वाले स्त्री-पुरुष अलग अलग धर्मों के अनुयायी हों तो उन के बीच विवाह की दो रीतियाँ हो सकती हैं। उन में से कोई एक चाहे वह स्त्री हो या पुरुष अपना धर्म त्याग कर विधिपूर्वक अपने साथी का धर्म अंगीकार करे और फिर उस परिवर्तित धर्म की पद्धति के अनुसार विवाह करे। यदि दोनों ही अपना धर्म परिवर्तित नहीं करना चाहते हों और अपने-अपने धर्म में बने रहना चाहते हों तो उन्हें विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह करना चाहिए।
हिन्दू समूह में अनेक संप्रदाय हैं। जिन में से मुख्य सिख, जैन और बौद्ध संप्रदाय हैं। ये अपने-अपने संप्रदाय के अनुसार विवाह कर सकते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें हिन्दू विवाह अधिनियम की शर्तों की पालना करनी होगी। तभी उन का विवाह एक वैध विवाह कह