ओम प्रकाश जी पूछ रहे हैं —
यदि कोई लड़का किसी लड़की को बहका, फुसला कर या प्रलोभन दे कर उस के परिवार वालों छिप कर या माता-पिता को धोखे में रख कर या दबाव डाल कर कोर्ट मैरिज कर ले तो उस का विरोध कैसे हो सकता है?
उत्तर —
ओम प्रकाश जी,
आप का प्रश्न किसी भी कोण से कानूनी नहीं है। यहाँ तीसरा खंबा पर हम केवल कानूनी समस्याओं के हल प्रस्तुत करने का प्रयत्न करते हैं। जिस से न केवल प्रश्नकर्ता को हल खोजने में मदद मिले बल्कि अन्य पाठकों
की विधिक साक्षरता में सुधार हो। फिर भी इस प्रश्न का एक भाग कोर्ट मैरिज से संबंधित है इस कारण से इस का उत्तर दिया जा रहा है।
की विधिक साक्षरता में सुधार हो। फिर भी इस प्रश्न का एक भाग कोर्ट मैरिज से संबंधित है इस कारण से इस का उत्तर दिया जा रहा है।
कोर्ट मैरिज नाम की कोई चीज नहीं होती। जिसे कोर्ट मैरिज कहा जा सकता है वह स्पेशल मैरिज एक्ट के अंतर्गत विवाह पंजीयक के समक्ष होने वाला विवाह हो सकता है। लेकिन उस में विवाह किए जाने के तीस दिन पहले एक आवेदन पंजीयक के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। जिस पर पंजीयक एक नोटिस जारी करता है जो कि पंजीयक के कार्यालय के बाहर और स्त्री-पुरुष के निवास स्थानों के बाहर चस्पा किया जाता है। इस नोटिस में कहा जाता है कि ये स्त्री-पुरुष विवाह करना चाहते हैं, यदि किसी को आपत्ति हो तो समय रहते प्रस्तुत करे। इस तरह होने वाले विवाह में बहलाना, फुसलाना, धोखा देना, दबाव डालना और माता-पिता को धोखे में रखे जाने की संभावना न के बराबर है। यही कारण है कि इस विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह बहुत कम होते हैं और इन विवाहों पर हो जाने के उपरांत किसी भी प्रकार का लांछन लगाना उचित नहीं है। हो भी तो वह विधिक रुप से मान्य नहीं है।
आम तौर पर इस तरह विवाह करने वाले लोग वकील से सलाह लेते हैं तो वह आर्यसमाज में विवाह करने की सलाह देता है और हिन्दू जोड़ों के अधिकांश विवाह जो माता-पिता की अनुपस्थिति में सम्पन्न होते हैं वे आर्य समाज में ही होते हैं. ये विवाह भी विधि-मान्य हैं। इस विवाह को न्यायालय से तलाक की डिक्री के अलावा अन्य रीति से समाप्त किया जाना संभव नहीं है। तीसरे प्रकार के वे संबंध हैं जिन्हें लोग कोर्ट मैरिज कहते हैं वे किसी भी प्रकार से विवाह नहीं होते हैं। इन में लड़का और लड़की दोनों के शपथ पत्र लिख लिए जाते हैं कि वे पति-पत्नी के रूप में रहने को सहमत हैं। इन्हें किसी नोटेरी से तस्दीक करा लिया जाता है और साथ रहना शुरू हो जाता है। कहा यही जाता है कि कोर्ट मैरिज हो गई है। जब कि वास्तव में यह विवाह नहीं है और इस से किसी तरह के वैवाहिक दायित्व उत्पन्न नहीं होते। इसे अधिक से अधिक लिव-इन रिलेशन कहा जा सकता है।
तीसरे प्रकार के संबंध के अतिरिक्त कोई भी विवाह जो लड़के-लड़की की मर्जी से संपन्न हुआ है वह विधिक विवाह है, उसे क
ेवल अदालत से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर के ही समाप्त किया जा सकता है। स्वैच्छा से अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह करने वाले जो़ड़ों के लिए यही कहा जाता है कि उस विवाह में बहलाना, फुसलाना, धोखा देना, दबाव डालना और माता-पिता को धोखे में रखे जाने के तत्व सम्मिलित हैं। लेकिन दो वयस्कों के बीच वैध विवाह हो जाने के उपरांत ऐसा कहने का कोई अर्थ नहीं है। आम तौर पर लड़की के माता-पिता इस तरह के मामलों में लड़के के विरुद्ध अपनी बेटी को बहलाने, फुसलाने और अपहरण व बलात्कार के आरोप लगाते हैं। लेकिन वे साबित नहीं हो पाते और अक्सर ही लड़का छूट जाता है। साथ ही उन की शादी बरबाद हो जाती है। मुझे नहीं लगता कि ऐसे विवाहों का विरोध करने की कोई आवश्यकता है। लड़के लड़की को साथ रहने दीजिए। विवाह तो हो ही चुका है। हमारे समाज में कौमार्य का बहुत महत्व हुआ करता था। वह तो समाप्त हो ही जाता है। फिर विरोध का क्या अर्थ है? यदि विवाह में इस तरह का कोई तत्व हुआ तो कुछ दिनों में सामने आ जाएगा। तब जब लड़की स्वयं ही यह समझ ले कि उस के साथ धोखा हुआ है। उसे संभाल लीजिए। वैसे ही जैसे कि वह अब भी आप के परिवार की अभिन्न अंग है। उस की लड़ाई में उस का साथ दीजिए। उसे पैरों पर खड़ा होने और एक नया जीवन जीने में मदद कीजिए। विरोध के बजाय .यह किया जाए तो समाज का अधिक भला होगा। तब शायद लड़कियाँ भी समझने लगेंगी कि उन्हें क्या करना चाहिए था और क्या नहीं।
ेवल अदालत से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर के ही समाप्त किया जा सकता है। स्वैच्छा से अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह करने वाले जो़ड़ों के लिए यही कहा जाता है कि उस विवाह में बहलाना, फुसलाना, धोखा देना, दबाव डालना और माता-पिता को धोखे में रखे जाने के तत्व सम्मिलित हैं। लेकिन दो वयस्कों के बीच वैध विवाह हो जाने के उपरांत ऐसा कहने का कोई अर्थ नहीं है। आम तौर पर लड़की के माता-पिता इस तरह के मामलों में लड़के के विरुद्ध अपनी बेटी को बहलाने, फुसलाने और अपहरण व बलात्कार के आरोप लगाते हैं। लेकिन वे साबित नहीं हो पाते और अक्सर ही लड़का छूट जाता है। साथ ही उन की शादी बरबाद हो जाती है। मुझे नहीं लगता कि ऐसे विवाहों का विरोध करने की कोई आवश्यकता है। लड़के लड़की को साथ रहने दीजिए। विवाह तो हो ही चुका है। हमारे समाज में कौमार्य का बहुत महत्व हुआ करता था। वह तो समाप्त हो ही जाता है। फिर विरोध का क्या अर्थ है? यदि विवाह में इस तरह का कोई तत्व हुआ तो कुछ दिनों में सामने आ जाएगा। तब जब लड़की स्वयं ही यह समझ ले कि उस के साथ धोखा हुआ है। उसे संभाल लीजिए। वैसे ही जैसे कि वह अब भी आप के परिवार की अभिन्न अंग है। उस की लड़ाई में उस का साथ दीजिए। उसे पैरों पर खड़ा होने और एक नया जीवन जीने में मदद कीजिए। विरोध के बजाय .यह किया जाए तो समाज का अधिक भला होगा। तब शायद लड़कियाँ भी समझने लगेंगी कि उन्हें क्या करना चाहिए था और क्या नहीं।