समस्या-
मैं एक मकान खरीदना चाहता हूँ। उस मकान की कीमत अदा करने के अतिरिक्त मुझे और क्या क्या खर्चे देने होंगे? कृपया बताएँ?
-प्रमोद कुमार, पानीपत, हरियाणा
समाधान-
जब भी संपत्ति का मूल्य तय करने की बात होती है तो आम तौर पर उस का बाजार मूल्य ही तय होता है। यदि संपत्ति पर किसी तरह का भार हो और उस भार की अदायगी विक्रेता को करनी होती है, तब विक्रय मूल्य उस के बाजार मूल्य के समान तय होता है। लेकिन यदि किसी संपत्ति पर भार हो और उस की अदायगी क्रेता को करनी हो तो संपत्ति का क्रय मूल्य उसी अनुपात में कम हो जाता है। इस तरह यह दोनों पक्षों के बीच हुई विक्रय की संविदा पर निर्भर करता है कि किसे क्या देना और करना है। किसी भी सौदे में संपत्ति पर भारों की समस्त देनदारी विक्रेता की ही मानी जाएगी। क्यों कि क्रेता तो संपत्ति को समस्त भारों से रहित ही खरीदता है और विक्रेता को केवल संपत्ति का मूल्य और विक्रय पत्र के पंजीयन का खर्च अदा करता है। इस के अलावा जो भी खर्चे होते हैं उन की अदायगी विक्रेता का दायित्व है। यदि विक्रय पत्र के पंजीयन के लिए किसी तरह का कोई अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) किसी सरकारी या गैर सरकारी संस्था से प्राप्त करना आवश्यक हो तो उसे प्राप्त करने की जिम्मेदारी भी विक्रेता की है। लेकिन यदि विक्रय संविदा में यह तय हो गया हो कि यह खर्च क्रेता वहन करेगा तो यह सब खर्च फिर क्रेता का दायित्व हो जाता है। यदि सौदे में कुछ भी न लिखा हो तो फिर यह सब खर्चे विक्रेता की जिम्मेदारी होंगे। वैसे भी किसी क्रेता को इसी शर्त पर ही कोई सौदा करना चाहिए कि वह केवल विक्रय मूल्य अदा करेगा तथा विक्रय पत्र के पंजीयन का खर्च उठाएगा, शेष सभी जिम्मेदारियाँ विक्रेता पर छोड़नी चाहिए। इसी के आधार पर संपत्ति का विक्य मूल्य तय करना चाहिए।
जब क्रेता विक्रेता की किसी जिम्मेदारी को ले लेता है तो अक्सर वह फँस जाता है। उसे वह जिम्मेदारी पूरी करनी होती है और विक्रेता निर्धारित अवधि में पूरा विक्रय मूल्य अदा करने पर दबाव डालता है। लेकिन यदि जिम्मेदारी विक्रेता की हो तो वह सारी जिम्मेदारियाँ पूरी करने के उपरान्त ही क्रेता से पूरा मू्ल्य वसूल करने और विक्रय पत्र का निष्पादन करने की बात कह सकेगा। यदि तय समय में विक्रेता संपत्ति के विक्रय से पूर्व की सारी औपचारिकताएँ पूर्ण नहीं कर पाता है तो क्रेता सौदा निरस्त कर के क्रेता से उसे अदा कर दी गई अग्रिम राशि और हर्जाना वसूल करने की स्थिति में होता है। यदि किसी क्रय-विक्रय संविदा में अनापत्ति प्रमाण पत्र सहित समस्त खर्चो के मामले में कुछ भी नहीं तय हुआ है तो वे सभी खर्च उठाने की जिम्मेदारी विक्रेता की है।