समस्या-
मैं ने एक मकान बनवाया। ठेकेदार की सलाह से मैं ने ठेकेदार के जानकार दुकानदार से निर्माण सामग्री का क्रय किया। मेरे ठेकेदार ने कहा कि मैं गारन्टी के रूप में अपना एक चैक दुकानदार को दे दूँ, जिस से निर्माण सामग्री सही समय पर मिलती रहे। मैं दुकानदार को समय समय पर भुगतान करता रहा। असल समस्या तब आरंभ हुई जब ठेकेदार ने मेरा काम पूरा किए बिना ही छोड़ दिया। उस ने पूरी राशि की मांग की। मैं ने उस से कहा कि वह काम पूरा कर दे और कान्ट्रेक्ट के मुताबिक पूरा रुपया ले ले। मैं दुकानदार के पास अपना चैक वापस लेने गया तो उस ने वह चैक तो ठेकेदार को दे दिया है क्यों कि तुम ने उस का पूरा भुगतान नहीं किया है। मैं ने दोनों से मेरा चैक वापस देने का आग्रह किया किन्तु उन्हों ने मेरा चैक नहीं लौटाया। मैं ने तब बैंक से चैक का भुगतान रोकने के लिए कहा। बैंक ने भुगतान रोक दिया लेकिन चैक वापसी में यह रिमार्क लगा दिया कि बैंक में पर्याप्त निधि नहीं है। तब दुकानदार ने धारा 138 का मुकदमा लगा दिया। इस मुकदमे में मुझे 29,950/- रुपए भुगतान करने का आदेश हुआ तथा चार माह के कारावास की सजा हो गई। दुकानदार ने उस के पास का विक्रय का पूरा असल रिकार्ड नष्ट कर दिया और फर्जी रिकार्ड प्रस्तुत किया है जिस पर मेरे हस्ताक्षर नहीं हैं। लेकिन मजिस्ट्रेट ने इस रिकार्ड को सही मान कर उस के पक्ष में निर्णय दे दिया है। क्या मैं सत्र न्यायालय में उक्त दंडादेश की अपील कर सकता हूँ? क्या इस अपील में मुझे लाभ मिलेगा?
-कर्मवीर, कुरुक्षेत्र, हरियाणा
समाधान-
आप के पास इस बात की कोई लिखत नहीं है कि आप ने चैक सीक्योरिटी के बतौर ही दिया था। यदि लिखत होती तो आप साबित कर सकते थे कि चैक भुगतान के लिए नहीं अपितु सीक्योरिटी के बतौर दिया था। जब भी चैक किसी वर्तमान दायित्व के भुगतान के लिए न दिया जा कर किसी और उद्देश्य से दिया जाए तो उस की लिखत अवश्य लेनी चाहिए। लेकिन अक्सर लोग यही गलती करते हैं कि कोई लिखत नहीं लेते। जब से चैक अनादरण को अपराधिक बनाया गया है तब से तो सभी बैक खाताधारियों को सावधान रहना आवश्यक हो गया है कि वे बिना किसी दायित्व के किसी को चैक नहीं दें। बिना तिथि अंकित किए और बिना राशि भरे तो कदापि न दें। इस के अतिरिक्त जब भी कोई दुकानदार माल भेजता है तो उस के साथ चालान भेजता है जिस पर हस्ताक्षर करवा कर वापस लेता है। आप को भी चाहिए था कि आप ने जो रुपया उसे भुगतान किया उस की रसीद समय समय पर लेते। लेकिन शायद आपने ऐसा भी नहीं किया।
इस के अलावा जब दुकानदार ने आप को चैक वापस लौटाने से मना किया और कहा कि चैक तो ठेकेदार ले गया है। उस का यह कहना ही अमानत में खयानत था। साथ ही इस बात का अंदेशा उत्पन्न हो गया था कि आप के विरुद्ध चैक को ले कर मुकदमा किया जाएगा। आप को तब भी सावधान हो जाना चाहिए था और उन के इस षड़यंत्र के विरुद्ध कार्यवाही आरंभ कर देनी चाहिए थी। आप को पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट करनी चाहिए थी। पुलिस द्वारा कार्यवाही न करने पर आप को न्यायालय में तुरंत परिवाद दाखिल करना चाहिए था। जब आप को चैक अनादरण का नोटिस प्राप्त हुआ तब आप को उस का उत्तर देना चाहिए था और साथ ही न्यायालय को तुरन्त परिवाद भी दाखिल करना चाहिए था।
वास्तविकता यह है कि आप ने चैक को ले कर लापरवाही बरती और उस की सजा आप को भुगतनी पड़ रही है। आप ने जो तथ्य बताए हैं उस से नहीं लगता कि आप को सत्र न्यायालय से कोई राहत मिल पाएगी। वैसे भी जब तक विचारण न्यायालय का निर्णय और वहाँ प्रस्तुत साक्ष्य का सूक्ष्म अध्ययन न कर लिया जाए कोई भी विधिज्ञ यह नहीं बता सकता कि आप को अपील में लाभ मिलेगा या नहीं। लेकिन फिर भी आप के पास अपील करने का एक अवसर उपलब्ध है। यदि आप के वकील ने विचारण न्यायालय में पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत की है तो हो सकता है सत्र न्यायालय में आप को लाभ मिल जाए। आप को अपील का यह अवसर कदापि नहीं छोड़ना चाहिए और अपील कर के इस मुकदमे के माध्यम से आप के साथ जो अन्याय हुआ है उसे न्याय में परिवर्तित करने का प्रयत्न करना चाहिए। अपील करने के पूर्व आप को चाहिए कि आप अपराधिक मामलों के किसी अच्छे वकील से सलाह लें और सत्र न्यायालय में उसी से पैरवी कराएँ। सभी बैंक खाताधारियों को एक बात गाँठ बांध लेनी चाहिए कि वे जब किसी को चैक दें तो केवल तत्कालीन दायित्व के भुगतान के लिए ही दें और यह सुनिश्चित कर लें कि चैक अनादरित नहीं होगा। अन्यथा ये अवश्य जान लें कि चैक अनादरण के बाद सजा से बचना लगभग असंभव होगा।