तीसरा खंबा

निर्धन व्यक्ति द्वारा वाद कौन प्रस्तुत कर सकता है?

समस्या-

संजय सिंह राजपूत ने इटारसी, जिला होशंगाबाद से पूछा है-

वादी द्वारा कोर्ट फीस माफ़ हेतु धारा 35 के तहत कोर्ट में अर्जी दी है जो पूरी तरह से फर्जी है। गरीबी रेखा का लगा कार्ड फर्जी है जो की निरस्त हो चुका है,  पक्का दो मंजिल लेंटरपोश मकान है जिसकी वर्तमान कीमत लगभग 30 लाख है। वादी महिला विधवा 71 साल की है और संयुक्त परिवार में 4 बेटों के साथ रहती है। सभी पुत्र सक्षम हैं। लगभग 11 साल पहले जमीन बेच कर अच्छा खासा पैसा भी मिला उन्हें। इस मामले में हम प्रतिवादी हैं। सयुक्त परिवार महिला की आय कैसे जोड़गें कि वह कोर्ट फीस माफ़ ना हो। पर्याप्त साधन होते हुए भी कोर्ट फीस माफ़ होगी क्या?

समाधान-

किसी भी कानून में कोर्ट फीस माफ करने के लिए के लिए कोई धारा 35 नहीं है। लेकिन दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 33 में निर्धन व्यक्तियों द्वारा वाद संस्थित किए जाने और उन्हें ग्रहण किए जाने की प्रक्रिया है। जिसमें यह निर्धारित किया गया है कि कोई भी निर्धन व्यक्ति वाद संस्थित कर सकता है। इसके लिए उसे पहले निर्धन व्यक्ति द्वारा वाद संस्थित करने की अनुमति न्यायालय से लेनी होगी।

आदेश 33 में यह भी निर्धारित किया हुआ है कि निर्धन व्यक्ति कौन है। इसके अनुसार वाद की विषय वस्तु से भिन्न और कुर्की से छूट प्राप्त संपत्ति के अतिरिक्त इतना धन व्यक्ति के पास न हो कि वह वाद संस्थित करने के लिए न्यायालय शुल्क अदा न कर सके तो उस व्यक्ति को निर्धन समझा जाएगा।

निर्धन व्यक्ति द्वारा वाद संस्थित करने की अनुमति का आवेदन न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत होने पर राज्य सरकार को भी जिला कलेक्टर के माध्यम से सूचना दी जाती है। राज्य सरकार आवेदन में दिए गए विवरणों की जाँच करती है तथा यह पता लगाती है कि क्या वादी वास्तव में एक निर्धन व्यक्ति है। प्रतिवादी को भी सूचना दी जाती है जिससे वह अपने तथ्य न्यायालय के समक्ष रख सके।

न्यायालय सबसे पहले वादी की परीक्षा की करता है अर्थात उसके बयान लिए जाते हैं। उसके बाद राज्य सरकार और प्रतिवादीगण को अपनी साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाता है। उसके उपरान्त न्यायालय तय करता है कि आवेदक निर्धन है कि नहीं यदि न्यायालय आवेदक को निर्धन पाता है तो उस व्यक्ति के आवेदन को स्वीकार कर वाद संस्थित करने की अनुमति देता है।

यह अनुमति देने के बाद भी न्यायालय शुल्क उधार रहता है और वादी के वाद में सफल होने पर सबसे पहले न्यायालय शुल्क डिक्री की वसूली से प्राप्त धन या संपत्ति से की जाती है। 

आपके मामले में वादी 71 वर्ष की एक महिला है। स्पष्टतः उसकी कोई आय नहीं है। आपका कहना है कि वह वह संयुक्त परिवार में चार बेटों के साथ रहती है। इससे वह धनी नहीं हो जाती। संयुक्त परिवार की संपत्ति से कोई आय है और उसमें वादी स्त्री की कोई आय है ऐसा आपको सिद्ध करना होगा। जो हमें नहीं लगता कि आप सिद्ध कर सकेंगे। उसके बेटों की आय से कोई लेना देना उस स्त्री का नहीं है। 11 वर्ष पूर्व संपत्ति विक्रय से प्राप्त धन से भी वादी स्त्री की निर्धनता का कोई संबंध नहीं है। जिस मकान में वह रहती है यदि वह संयुक्त हिन्दू परिवार का है जिसकी वह सदस्य है तो आपको साबित करना होगा। उस मकान में उसका हिस्सा कितना है और उसका मूल्य क्या है। यदि उसके हिस्से का मूल्य दी जाने वाले न्यायालय शुल्क से अधिक हुआ तो भी उसे निर्धन ही समझा जाएगा। यदि वह मकान वाद की विषय वस्तु है तो उस मकान को उसकी निर्धनता की गणना में उसकी संपत्ति नहीं समझा जाएगा। आपने हमें यह नहीं बताया कि वाद किस मामले से संबंधित है। यदि इस मामले में कोई सहवादी है तो न्यायालय सहवादी से कह सकता है कि वह न्यायालय शुल्क जमा कराए।

आपको उक्त निर्धन वाद संस्थित करने की सूचना मिल चुकी होगी। आप वकील नियुक्त कीजिए और जो भी तथ्य और साक्ष्य आपके  पास हैं उन्हें न्यायालय के समक्ष रखिए। बेहतर यह है कि निर्धन व्यक्ति के वाद को प्रारंभिक स्तर पर रोकने के बजाय गुणावगुण पर उसका प्रतिवाद करने की तैयारी कीजिए।

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