तीसरा खंबा

पिता की सम्पत्ति में पुत्र का जन्म से अधिकार नहीं

समस्या-

प्रेम यादव ने खुरई, जिला सागर मध्यप्रदेश से पूछा है –

मेरे पिताजी ने मेरी मां से विवाह सन 1975 में किया था। एक-दो साल अच्छे से रखने के बाद उन्होंने मेरी मां को परेशान करना शुरू कर दिया। मेरी मां परेशान होकर अपने मायके चली गई। मेरे पिताजी मेरी मां पर तलाक का दबाव बनाने लगे तो मेरी मां ने तलाक लेने से इनकार कर दिया। फिर मेरी मां ने मेरे पिताजी पर केस कर दिया कि यह मुझे अपने साथ नहीं रख रहे हैं। ये केस 12 साल चला और इसी बीच मेरे पिताजी ने दूसरी शादी कर ली। फिर कोर्ट से आदेश आया कि या तो मेरे पिताजी मेरी मां को रखे या फिर हर महीने गुजारा भत्ता दें। मेरे पिताजी ने मेरी मां को अपने साथ रख लिया। जब मेरी मां मेरे पिताजी के घर आयी तो तब तक उनके दूसरी पत्नी से दो बच्चे हो चुके थे। फिर दूसरी पत्नी से 1 साल बाद एक लड़की और हुई और उसके फिर दो-तीन साल बाद मेरा जन्म हुआ। फिर मेरे जन्म होते ही मेरी पिताजी ने मेरी मां को फिर से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। अब मैं 24 साल का हो चुका हूं, मेरी शादी भी हो चुकी है। मेरे पिताजी मेरी दूसरी पत्नी के बच्चों के साथ हैं, उसी के साथ रहते हैं और उन्हीं को सब खर्चा पानी देते हैं। मुझे और मेरी मां को कुछ नहीं देते हैं। मेरे पिताजी की दूसरी पत्नी के बच्चे मुझे और मेरी मां से बोलते हैं कि तुम्हारे यहां कुछ नहीं है, तुम जाओ तुम्हें घर से निकाल देंगे तुम्हारा यहां कुछ भी नहीं है। क्या मैं अपने पिता से हिस्सा ले सकता हूं? मेरे पिताजी दो भाई और एक बहन है। वह सारी संपत्ति दादाजी के नाम से थी और उन्होंने खुद बनाई थी। दादाजी का 1996 में और दादी का 2016 में स्वर्गवास हो चुका है और अभी मेरे पिताजी का भी बंटवारा नहीं हुआ है। कृपया बताएँ कि मैं क्या करूं और बंटवारा कैसे होगा?

समाधान-

जिस सम्पत्ति की आप बात कर रहे हैं वह आपके दादा जी की स्वअर्जित सम्पत्ति है। उनकी मृत्यु तक अर्थात 1996 तक उसके वे एक मात्र स्वामी थे। उनकी मृत्यु के बाद उक्त सम्पत्ति उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के अनुसार उनके उत्तराधिकारियों को प्राप्त हो गयी। इस से यह सम्पत्ति संयुक्त हिन्दू परिवार की सम्पत्ति हो गयी। इस सम्पत्ति में आपके पिताजी, उनके भाई, बहिन तथा दादी के, कुल चार बराबर के हिस्से थे। आपकी दादीजी के देहान्त के उपरान्त 2016 में उनका हिस्सा भी आपके पिताजी, भाई और उनकी बहिन को प्राप्त हो गया। इस तरह अब उक्त संपत्ति में तीन हिस्से रह गए। अब आपके पिता, उनके भाई और बहिन तीनों का एक तिहाई हि्स्सा इस सम्पत्ति में है।
यह सम्पत्ति इस मायने में तो पुश्तैनी कही जा सकती है कि यह आपके पिता आदि को उनके पिता से प्राप्त हुई है। लेकिन यह सहदायिक सम्पत्ति नहीं कही जा सकती। यदि आपके दादाजी का देहान्त 17 जून 1956 के पूर्व हो जाता अथवा उन्हें इस तिथि को यह सम्पत्ति उन्हें उनके पिता, दादा या परदादा से प्राप्त हुई होती तो यह सहदायिक सम्पत्ति होती और इस में जन्म से ही आप का अधिकार होता। लेकिन आपके दादाजी का देहान्त दिनांक 17 जून 1956 को हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी होने के बाद हुआ और यह उनकी स्वअर्जित सम्पत्ति हुई। इस तरह यह सहदायिक नहीं हो कर संयुक्त हिन्दू परिवार की सम्पत्ति है। इस सम्पत्ति में केवल एक तिहाई हिस्से पर आपके पिता का अधिकार है। आपके पिता के इस सम्पत्ति में जो हिस्सा है उसमें तथा उनकी स्वअर्जित सम्पत्ति में भी आपका और आपकी माता का कोई अधिकार नहीं है। इसी तरह आपके पिता की दूसरी पत्नी और उसकी सन्तानों का भी इस सम्पत्ति में कोई अधिकार नहीं है। आप इस सम्पत्ति के बँटवारे का वाद नहीं कर सकते क्यों कि इस में आपका कोई हिस्सा नहीं है। आपके पिता इस सम्पत्ति को जिसे चाहें उसके नाम वसीयत कर सकते हैं। यदि वे वसीयत नहीं करते हैं तो उनकी मृत्यु के बाद उन के हिस्से में तथा उनकी स्वअर्जित सम्पत्ति में आपको, आपकी माता को तथा आपके पिता की दूसरी पत्नी की सन्तानों को बराबर बराबर के हिस्से प्राप्त होंगे।
इस तरह आप उक्त सम्पत्ति के सम्बन्ध में कुछ नहीं कर सकते। आप बालिग हैं इसलिए किसी तरह का खर्चा अपने पिता से नहीं मांग सकते। आपकी माताजी को यदि भरण पोषण नहीं मिल रहा है तो वे भरण पोषण की मांग कर सकती हैं और पृथक आवास की मांग कर सकती हैं। इसके लिए वे धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता तथा घरेलू हिंसा अधिनियम के अन्तर्गत आवेदन कर सकती हैं।

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