तीसरा खंबा

वयस्क सन्तानों के विवाह के लिए धन देना माता-पिता की कानूनी जिम्मेदारी नहीं।

समस्या-

मनीषा ने ब्रज विहार, खरगोन, मध्य प्रदेश से पूछा है-

मैं एक 52 वर्षीय आदिवासी महिला हूँ। मेरे पति 55 वर्ष के हैं वे पुलिस विभाग में सहायक उप-निरीक्षक के पद पर पदस्थापित हैं। मेरी एक 31 वर्षीय लड़की और 29 वर्षीय लड़का है। मेरे दोनों बच्चे नौकरी करते हैं एवं अविवाहित हैं। मेरे पति पिछले 2 वर्ष से दूसरी महिला के साथ अवैध रुप से रह रहे हैं, जिसकी शिकायत मेरे द्वारा पुलिस विभाग के बड़े अधिकारियों को भी की गयी, किन्तु कोई कार्यवाही नहीं की गई। हमारा एक घर भी है जो कि मेरे और मेरे पति के नाम पर है, मैं और मेरे बच्चे अभी इस घर में रह रहे हैं। मुझे उचित कानूनी मार्ग दर्शन करें जिससे मेरे अधिकारों की रक्षा हो सके, जैसे कि मेरे बच्चों की शादी के लिए पैसा देना, घर मेरे नाम करना, मेरे जीवनयापन एवं बीमारी के इलाज के लिए पैसे देना आदि।

समाधान-

आप एक आदिवासी महिला हैं और अनुसूचित जनजाति में आती हैं। आप पर हिन्दू विधि प्रभावी नहीं है अपितु परम्परागत विधि जो आपकी जाति में प्रचलित है वह प्रभावी है। यदि आपकी जाति में एक से अधिक पत्नियाँ रखने की परम्परा है तो आपके पति द्वारा दूसरी स्त्री के साथ रहना अवैध नहीं हो सकता।

आपके दो सन्तानें हैं। दोनों ही सन्तानें वयस्क हैं और नौकरी करती हैं इस कारण से वे आत्मनिर्भर हैं। उनके मामले में वे खुद कार्यवाही करने में सक्षम हैं और आप पर उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। किसी कानून में माता-पिता पर यह बाध्यता नहीं है कि वह अपनी वयस्क सन्तानों के विवाह पर धन खर्च करे। यह उनकी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी हो सकती है, लेकिन कानूनी नहीं। वयस्क होने तथा आत्मनिर्भर होने के कारण उन्हें अपने पिता से भरण पोषण मांगने का भी कोई अधिकार नहीं है। हाँ यदि कोई पुश्तैनी संपत्ति या आपके पति के दादा से उत्तराधिकार में प्राप्त कोई संपत्ति है तो उसमें आपकी सन्तानों को हिस्से का अधिकार है। वे चाहें तो अपना हिस्सा प्राप्त करने के लिए दीवानी वाद संस्थित कर सकते हैं।

मकान आपके पति का है तो वे आपके नाम करें इस की भी कोई कानूनी बाध्यता उन पर नहीं है। हाँ आपके जीवन यापन व बीमारी आदि के लिए समुचित खर्च प्रति माह आपको देने की बाध्यता जरूर हैं। इसके लिए आप धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत कार्यवाही कर सकती हैं जिसमें पारिवारिक न्यायालय अथवा जिस भी न्यायालय को आपके क्षेत्र में इस तरह के प्रार्थना पत्र सुनने का अधिकार है आपको प्रति माह भरण पोषण राशि पति द्वारा दिए जाने का आदेश दिया जा सकता है। इस आदेश की पालना में कोई बाधा इस कारण नहीं आएगी कि जब भी वे मना कर दें तब न्यायालय आपके पति के वेतन से कटौती करके यह धनराशि आपको पहुँचाता रहेगा।

आप और आपकी सन्तानें जिस मकान में रहती हैं उससे आपको निकाला जाना सम्भव नहीं है। यदि उसकी आशंका हो तो आप और आपकी पुत्री महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम के अन्तर्गत आवेदन दे कर यह आदेश पारित करवा सकती हैं कि आपको घर से बेदखल नहीं किया जा सके।

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