अनाम अग्रवाल ने होशंगाबाद मध्य प्रदेश से समस्या भेजी है कि-
मेरे दोस्त की शादी जुलाई 2012 में हुई। उस की पत्नी का पहले से किसी और से अफेयर था। दोस्त की सास उन के घर में ज़्यादा इंटरफेयर करती थी। इसी बात में एक दिन उसकी पत्नी 12 जुलाई 2013 को अपने माँ बाप के घर चली गई। वहीं 3 महीने बाद सितम्बर 2013 में एक बेटे को जन्म दिया। दोस्त के घर वाले और दोस्त पत्नी को देखने भी गये और लाने की कहने पर भी पर दोस्त की सास ने नहीं लाने दिया। फिर करीब 6 महिने बाद दोस्त और उसकी पत्नी की बात शुरू हुई और वो अपने पति की शर्तों पर आने तो तैयार हो गई। दोस्त बच्चे के खातिर सब बातें भुला के उस को वापस ले आया। फिर अगस्त 2014 में राखी पर उसके मायके गई और वहाँ उसके एक्स-ब्वायफ्रेंड से मिलने के लिए रुक गई। मन से झूठी कहानी बना कर कह दिया कि मुझे ससुराल में पति मारते हैं और परेशान करते हैं, वह पति के साथ नहीं चाहती। मेरे दोस्त ने अपने बेटे के जन्म दिन पर उसे फ़ोन लगाया तो उस ने बेटे से नहीं मिलने दिया। दो दिन पहले ही उसकी बड़ी बहन के घर बेटे को ले कर चली गई और कहा कि यदि तुमने किसी को मेरे अफेयर का बताया तो मैं बेटे को जान से मार दूँगी। मेरे दोस्त ने उस की ये बातें अपने घर वालों को बता दीं लेकिन बदनामी के दर से उस के अफेयर का किसी को कुछ नहीं बता पा रहा है क्यों कि उसके पास कोई पक्का सबूत नहीं है। ना कोई कॉल रिकॉर्डिंग है। वह बहुत डिप्रेस्ड है किसी से कुछ बोल नहीं पा रहा है। वो क्या करे जिस से कि उस का एक वर्ष दो माह का बच्चा उसके पास आ जाए।
समाधान-
वर्तमान परिस्थिति में किसी भी प्रकार से यह संभव नहीं है कि आप के मित्र का पुत्र उसे मिल जाए।
आप के मित्र केवल संतान को चाहते हैं। लेकिन पत्नी को वह भी अपने पास नहीं रखना चाहते। पत्नी स्वयं भी नहीं आना चाहती है। स्थिति ऐसी है कि दोनों का संबंध टूटने की तरफ बढ़ रहा है। ऐसी अवस्था में आप के मित्र को तुरन्त दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 के अन्तर्गत आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए।
इस के प्रतिवाद में पत्नी 406, 498 ए आईपीसी के अपराधों के लिए मिथ्या परिवाद प्रस्तुत कर सकती है और आप के मित्र कुछ परेशानी में पड़ सकते हैं। लेकिन केवल इन धाराओं में मुकदमा और गिरफ्तारी के भय से पुरुष कोई कार्यवाही नहीं करते हैं और देर हो जाती है। देर सबेर पत्नियाँ इन धाराओं के अंतर्गत कार्यवाही करती हैं तो तब बचाव करना भी कठिन हो जाता है। बचाव में सब से पहले धारा 9 का आवेदन प्रस्तुत करने की जरूरत पड़ती है। इस कारण यह अधिक अच्छा है कि धारा 9 का आवेदन तुरन्त प्रस्तुत किया जाए। उस का परिणाम देखा जाए। अभी आप के मित्र के पास पत्नी से विवाह विच्छेद का कोई आधार नहीं है। लेकिन यदि धारा 9 के आवेदन स्वीकार हो कर डिक्री मिल जाने के बाद भी एक वर्ष तक पत्नी और पति के बीच कोई संपर्क नहीं होता है तो उसी आधार पर विवाह विच्छेद भी हो सकता है। एक बार धारा 9 का आवेदन लंबित हो जाने पर पुत्र की अभिरक्षा के लिए आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है।