समस्या-
हमारे परिवार का बंटवारा सन 1975 में आपसी सहमति से जिला न्यायालय में हो चुका है। जिसकी डिक्री पारित हुई थी। बंटवारे में पिताजी के बड़े भाई, पिताजी, मेरी दादी, मेरी भुआ और मेरी परदादी पक्षकार थे। पिताजी के बड़े भाई और दादी को जो संपत्ति बंटवारे में दी गयी है उसके अलावा शेष संपत्ति में उन का उत्तराधिकार समाप्त कर दिया गया। पिताजी के बड़े भाई ने बंटवारे के बाद अपना हिस्सा ले लिया और अलग हो गए और जो भी संपत्ति मिली थी वो पूरी बेच दी। उनकी मृत्यु सन 2018 में हो गयी। दादी जो हिस्सा मिला वो ले के अलग हो गयी और बाद में सब बेच दिया। उनकी भी मृत्यु सन 2000 में हो चुकी है। अब पिताजी ओर भुआजी और परदादी ये साथ रहे, ओर परदादी ने अपने जीते जी उनके हिस्से की रजिस्टर्ड वसीयत सन 1977 में कर दी थी जिसमें उन्होंने उनका पूरा अंश मेरे पिताजी को दिया है। उनकी मृत्यु 1982 में हो चुकी है।
भुआ जी ने सन 1998 में 10 रुपये के स्टाम्प पर शपथ पत्र लिखकर अपना नाम राजस्व अभिलेख में पिताजी के साथ दर्ज न किये जाने के संबंध में भी नोटरी कर निष्पादित कर दिया था। भुआ जी की भी मृत्यु 2005 में हो चुकी है। पर पिताजी ने नामांतरण नहीं करवाया था हमारे मकान ओर प्लाट नजूल में आते हैं ओर कृषि भूमि सिवनी मालवा तहसील में। कृषि भूमि पर पिताजी, परदादी, और भुआजी का नाम डिक्री के बाद से आज तक चला आ रहा है। मकान और प्लाट पर जिस से मकान ओर प्लाट सन 1960 में दादाजी ने खरीदे थे उनके ही नाम चले आ रहे हैं। अब हमने नजूल अधिकारी के सम्मुख नामांतरण का आवेदन लगाया है, पूरे पेपर याने जिनसे दादाजी ने मकान ओर प्लाट खरीदे थे उसकी रजिस्ट्री, बंटवारे की डिक्री, वसीयत, शपथ पत्र सब लगाए तो राजस्व अधिकारी ने पिताजी के बड़े भाई के समस्त उत्तराधिकारी ओर भुआ जी के समस्त उत्तराधिकारियों को भी पक्षकार बनाया। अब वे सभी अड़ंगा डाल रहे हैं। कृपया समाधान बताएं। हम न तो हमारी संपत्ति बेच सकते हैं न मकान बना सकते हैं। क्या करें?
– अंकुर अग्रवाल, सिवनी मालवा, जिला-होशंगाबाद (मध्यप्रदेश)
समाधान-
मकान और प्लाट आप के दादाजी ने 1960 में खरीदे थे। इस का अर्थ है कि उन का देहान्त उसके बाद हुआ। उनकी मृत्यु के समय हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 प्रभावी हो चुका था। इस कारण यह संपत्ति सहदायिक संपत्ति नहीं थी इस कारण से उनकी इस संपत्ति का उत्तराधिकार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के अनुसार तय हुआ। उनकी पत्नी अर्थात आप की दादी, उनके पुत्र अर्थात आपके पिता और ताऊ तथा बुआ चारों समान हिस्से के उत्तराधिकारी हुए।
आप का जो बंटवारा हुआ उसमें क्या क्या सम्मिलित था यह पता नहीं। मुझे नहीं लगता कि इस में दादाजी द्वारा स्वअर्जित संपत्ति उस में सम्मिलित रही होगी। यह सब छानबीन दस्तावेजों के अध्ययन से की जा सकती है।
जिस संपत्ति के संबंध में यह समस्या प्रेषित की गयी है वह दादाजी के नाम थी। उन्हीं के नाम विक्रय पत्र का पंजीयन है। उसके बाद कोई नामान्तरण नहीं हुआ है। यदि यह संपत्ति बँटवारे में सम्मिलित थी तो जब बंटवारा की डिक्री हुई थी तभी उस डिक्री के आधार पर नामान्तरण करवा लेना चाहिए था। तो यह समस्या खड़ी नहीं हुई होती।
लेकिन अब जिस संपत्ति के नामान्तरण के लिए आप ने आवेदन किया है वह आप के दादाजी के नाम है। इस कारण उनके सभी उत्तराधिकारियों को और यदि उनके उत्तराधिकारियों की मृत्यु हो चुकी है तो मृत उत्तराधिकारियों के उत्तराधिकारियों को नोटिस जाना बिलकुल उचित है, यह नामान्तरण करने वाले अधिकारी का दायित्व भी है।
जब भी कोई न्यायिक या प्रशासनिक कार्यवाही होती है तो जिन लोगों को नोटिस दे कर उन का पक्ष रखने को कहा जाता है और वे आते हैं और अपना पक्ष रखते हैं। दूसरी ओर संपत्ति ऐसी वस्तु है जिसे हर कोई पाना चाहता है तो वह कोशिश करता है कि जिसे संपत्ति मिलने वाली है उसके काम में बाधा पैदा की जाए जिससे वह संपत्ति प्राप्त करने वाले असली अधिकारी व्यक्ति पर दबाव डाला जाए और उस से संपत्ति का कुछ भाग या नगद राशि प्राप्त कर ली जाए। इस स्थिति का एक ही उत्तर हो सकता है कि अधिकारी जल्दी से जल्दी आपत्तियों को कानून के अनुसार निर्णीत कर के अपना निर्णय दे दे।
यदि आप इस बात से त्रस्त हैं कि जल्दी सुनवाई नहीं हो रही है, तो प्रकरण में जल्दी करने का एक ही तरीका है कि आप उच्च न्यायालय में एक रिट दाखिल कर के वहाँ से न्यायालय के लिए यह निर्देश प्राप्त करें कि आप के मामले को समय सीमा में निर्णीत किया जाए। जब तक नामान्तरण नही हो जाता है संपत्ति न तो बेची जा सकेगी और न ही उस पर निर्माण किया जा सकेगा।