शैलेन्द्र ने भंडारी फाटक, दतिया मध्य प्रदेश से समस्या भेजी है कि-
मैं ने एक मकान शिवहरे जी से २७-६-२०१५ को रजिस्टर्ड विक्रय पत्र के माध्यम से ख़रीदा। शिवहरे ने यह मकान एक सिंधी से रजिस्टर्ड विक्रय पत्र के माध्यम से १२-११-२००९ में ख़रीदा था। जब सिंधी ने शिवहरे को बेचा था तो उसके पास रजिस्ट्री नहीं थी क्यों कि वह पाकिस्तान के बटवारे के समय हिंदुस्तान के दतिया जिले में आकर बस गया था १९४८ में। सिंधी १९४८ से २००९ तक उसी मकान में रहा और २००९ में शिवहरे को बेच दिया। अब निजुल ऑफिस वाले मुझे नोटिस देकर परेशान कर रहे है कि यह मकान सरकारी है। क्योकि सिंधी ने गलत बेचा था शिवहरे को और वर्तमान में आप के पास यह मकान है। जब सिन्धी दतिया में आये थे जो सरकारी जमीन खाली पड़ी थी। उस में बस गये थे बह जमीन १.१..१९५० में पीडल्बूडी के हवाले हो गयी थी और पीडब्लूडी ने १९७५ तक किराया लिया बाद में संपत्ति डेड घोषित कर दी और किराया लेना बंद कर किया। क्या मैं गलत हूँ? जब कि मैं ने खरीदी से पहले पेपर में न्यूज़ पब्लिश करायी थी कोई ऑब्जेक्शन नहीं आया तो मैं ने रजिस्ट्री कराई। मैं ने मकान बनवाने से पहले नगर पालिका से परमिशन ली थी। यह मकान नगरपालिका क्षेत्र में आता है।
समाधान-
आप के पास मकान के विक्रय पत्र की रजिस्ट्री है जो कि आप ने अखबार में आपत्तियाँ मांगने के बाद खरीदा है। इस तरह आप बोनाफाइड परचेजर हैं आप को किसी तरह की हानि नहीं होगी।
आप कह रहे हैं कि पीडब्लूडी ने उक्त भूमि को डेड घोषित कर दिया। ऐसी घोषणा का कोई दस्तावेज हो तो संभाल कर रखें। 1975 से आज तक उस भूमि पर किसी का कब्जा नहीं है और इस अवधि को 40 वर्ष हो चुके हैं। ऐसे में मियाद अधिनियम के अन्तर्गत सरकार जमीन को आप से नहीं वापस नहीं ले सकती। नोटिस मिलता है तो उस का उत्तर दें।
बेहतर हो कि आप किसी स्थानीय वकील को अपने दस्तावेज दिखा कर उक्त भूमि और उस पर बने मकान का स्वयं को स्वामी घोषित कराने हेतु दीवानी वाद प्रस्तुत कर घोषणा की डिक्री प्राप्त करें।