आप डॉलर में फीस दे कर अनिवासी भारतीयों के लाभ नहीं ले सकते
|देश के विभिन्न तकनीकी और व्यावसायिक (प्रोफेशनल) शिक्षा के संस्थानों में प्रवेश राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय परीक्षा के माध्यम से होता है। इन में कुछ स्थान अनिवासी भारतीयों के लिए सुरक्षित रखे जाते हैं जिन पर काफी अधिक शुल्क ले कर भरती की जाती है। ये स्थान कभी भी वास्तविक अनिवासी भारतीय विद्यार्थियों द्वारा नहीं भरे जाते अपितु अनेक विद्यार्थी जिन के अभिभावक उतनी फीस देने में सक्षम होते हैं, किसी अनिवासी भारतीय के समर्थन की चिट्ठी के आधार पर भरती कर लिए जाते हैं। अनेक संस्थान तो मोल-भाव के उपरांत ऐसी समर्थन चिट्ठियों की व्यवस्था खुद ही कर लेते हैं।
कोई ढाई वर्ष पूर्व जब में अपने पुत्र को किसी संस्थान विशेष में दाखिला दिलाना चाहता था और मुझे लगा था कि उस प्रदेश का निवासी न होने के कारण मेरिट में मेरे पुत्र का उस संस्थान में प्रवेश नहीं हो पाएगा तो मैं ने उस संस्थान के निदेशक से बात की थी। निदेशक ने मुझे बताया था कि मैं एक विशेष राशि कल तक जमा करवा दूं तो वे प्रवेश दे देंगे बाकी व्यवस्था वे खुद कर देंगे। हर साल यह विशेष राशि मुझे उन्हें देनी पड़ेगी। मुझे और मेरे पुत्र को यह राशि बहुत अधिक लगी थी और हम चले आए थे। बाद में बेटे को दूसरे एक कालेज में मेरिट पर प्रवेश मिल गया।
इस वर्ष कालेज प्रबंधकों के इस विशेषाधिकार को उत्तराखंड फोरेस्ट हॉस्पिटल मेडीकल कॉलेज, हलद्वानी में प्रवेश के आशार्थी कुछ मेरिट में आए छात्रों ने उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जिस पर उच्च न्यायालय ने ऐसे विद्यार्थियों को दिए गए प्रवेश रद्द करते हुए पुनः उचित प्रक्रिया अपनाने का निर्णय दिया, जो कि अनिवासी भारतीय नहीं थे और केवल अनिवासी भारतीयों की अनुशंसा पर डॉलर में फीस देना चाहते थे।
अब जिन विद्यार्थियों के प्रवेश रद्द हुए थे वे उच्चतम न्यायालय पहुंच गए। लेकिन उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन् और न्यायमूर्ति आफताब आलम की पीठ ने उच्च न्यायालय के निर्णय में हस्तक्षेप करने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि आप अनिवासी भारतीय नहीं हैं और केवल डॉलर में फीस देना चाहते हैं, हम इस पद्धति को नहीं देखना चाहते।
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Ye hamaare kaam kee jaankaari mili sirjee, bada dhanyavaad apka iske liye.
Bahut achchhi jaankaari aapaneupalabdh karai hai!…isaka laabh uthhaya jaa sakata hai!..dhanyawad!
इपने लाभ के लिए निजी संस्थान कानूनों को अपनी सुविधा ओर इच्छानुसार व्याख्यायित करते रहे हैं । न्यायालय ने इस प्रवृत्ति पर अंकुश तो लगाया लेकिन ऐसा अपराध करने वालों को दण्डित भी किया जाना चाहिए था ।
ऐसे विमर्श से पारदर्शिता बढती है और लोगों को वास्तविकता का भान होता है ।
आपने अनेक बालकों/पालकों को राह दिखाई है । आपको उन सबकी दुआएं मिलेंगी ।
बड़े काम की जानकारी है.
ये ख़बर आपने तो पढ़ी ही होगी.
http://www.ndtv.com/convergence/ndtv/story.aspx?id=NEWEN20080071490&ch=11/6/2008%208:10:00%20AM
अच्छा ज्ञान दिया आपने। कभी किसी को बताने के काम आयेगा!
एक अच्छी जानकारी, एवं न्यायसंगत फ़ैसला ..
बहुधा अभिभावक मुझे सर्वज्ञाता समझ मुझसे इस संबन्ध में पूछताछ करने आते हैं, सो बगलें झाँकना पड़ता था ।
आपने इस झेंप से तो उबार ही लिया, यह उपयोगी पोस्ट देकर..
धन्यवाद पंडित जी !
नई जानकारी आपने अपडेट करवा दी वरना हम तो पुरानी ही समझ रहे थे ! आपके ब्लॉग पर यही फायदा होता है ! बहुत धन्यवाद !
पहले होती थी यह तो मुझे ज्ञात है. कब नियम बदला, पता नहीं था. अच्छी जानकारी दी आपने.
केसी केसी जान्कारी मिल रही है…..
धन्यवाद
चि.वैभव बेटे को अपने सवयम्` के बलबूते पे जहाँ दाखिला मिला है
वहाँ से वह सफल हो
यही शुभकामना है –
अन्यथा ये व्यवस्था का गलत इस्तेमाल है –
दुख हुआ सुनकर –
– लावण्या
आपने बहुत सही मुद्दा उठाया है!
एन.आर.आई स्पांसर्ड सीट तो ग्रे एरिया है! आजकल ये बंद ही हो गई हैं – पहले होती थीं
मिलती थीं उसे जो अनिवासी कोटे में महंगी फ़ीस दे सके और साथ में किसी अनिवासी की चिट्ठी नत्थी कर दे की जी फ़ीस हम दे रहे हैं.
एन.आर.आई सीट
नियमानुसार बाकायदा अनिवासी केंडिडेट को ही मिलनी चाहिये. (इस में कोई भी एन.आर.आई बन के घुसेगा तो नीयम ही तोडेगा ना!)
जब इस प्रकार के कोटे का सारा ध्येय पैसा बटोरना ही है तो इतनी झिक-झिक क्यों .. इसे मनी कोटा काहे नहीं कह देते?
जो घटना आपके बेटे वैभव के साथ घटी लगभग वैसी ही घटना मेरे साथ उससे दो साल पहले घट चुकी थी.. मैं भी पटियाला से बेरंग वापस लौट आया था.. वैसे अच्छा हुआ.. क्योंकि बाद में मुझे मेरीट पर उससे अच्छे कालेज में दाखिला मिल गया.. शायद अभी वैभव को भी जितना गर्व होगा अपनी शिक्षा पर वो वहां प्रवेश लेने के बाद नहीं होता..