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कंडक्टर द्वारा टिकट न देकर पैसा जेब में रख लेना 409 भा.दं.संहिता में अपराध

डॉ. पुरुषोत्तम मीना राष्ट्रीय अध्यक्ष भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान ने निम्न प्रश्न तीसरा खंबा को प्रेषित किया है …
प्रश्न …. रोड़वेज और रेलवे के कंडक्टर्स/टिकट चेकर्स के द्वारा यात्रियों से किराया ले कर टिकट या रसीद नहीं दी जाती है और धनराशि अपनी जेब में रख ली जाती है। 
क्या कंडक्टर्स का यह कृत्य धारा 409 भारतीय दंड संहिता के अन्तर्गत अपराध है? यदि हाँ तो दोषियों को सजा दिलाने के लिए क्या किया जाए? क्यों कि ऐसे मामलों में विभागीय कार्यवाही के नाम पर केवल औपचारिकता की जाती है। 
 उत्तर –
 डॉ, मीना जी!
रेलवे अधिनियम की धारा-188 के अंतर्गत प्रावधान किया गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा-409 के लिए प्रत्येक रेलवे कर्मचारी को लोक सेवक (पब्लिक सर्वेंट) माना जाए।  इसी तरह भा.दं.सं. की धारा-21 में लोक सेवक को परिभाषित किया गया है। इस में कहा गया है कि कोई भी कोरपोरेशन जो केन्द्रीय, प्रान्तीय या राज्य सरकार के किसी अधिनियम के स्थापित किया गया है उस के कर्मचारी लोकसेवक होंगे।
एक कंडक्टर या टिकट चैकर के रूप में किसी कर्मचारी को टिकट बनाने, विक्रय करने या शास्ति सहित टिकट राशि वसूलने का कर्तव्य दिया जाता है। वह कर्तव्य करते हुए ऐसी कोई भी राशि वसूल कर के जेब में रख लेता है और रसीद जारी नहीं करता तो निश्चित रूप से यह धारा-409 भा.दं.सं. के अंतर्गत अपराध है। ऐसे कर्मचारी को इस अपराध के लिए दंडित किया जा सकता है।
कर्मचारी को दंडित कराने के लिए सबसे पहले तो रेलवे को शिकायत करनी चाहिए। आप यह भी कर सकते हैं कि जहाँ उक्त कृत्य किया जाए उस से संबंधित जीआरपी थाने पर अपनी शिकायत दर्ज कराएँ। पुलिस का यह कर्तव्य है कि शिकायत पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करे, और अन्वेषण कर अभियुक्त के विरुद्ध आरोप पत्र संबंधित न्यायालय में प्रस्तुत करे। पुलिस थाना अनेक बार रिपोर्ट दर्ज नहीं करता है। लेकिन आज उस के लिए भी यह सुविधा उपलब्ध हो गई है कि पुलिस विभाग की वेबसाइट पर जा कर संबंधित पुलिस अधीक्षक का ई-मेल पता जानें और अपनी शिकायत पुलिस अधीक्षक और उस से ऊपर के अधिकारियों को प्रेषित कर दें। उस शिकायत पर अवश्य कार्यवाही होगी।
वास्तव में इन  मामलों में होता यह है कि वसूल की गई राशि तो यात्री को देनी ही होती है। अक्सर रसीद जारी न करने की शर्त पर कंडक्टर या टिकट चेकर कम राशि पर भी उसे सुरक्षित यात्रा करवाता है और कोई शिकायत दर्ज नहीं होती। इस तरह कमाई गई राशि में विभाग के ऊपर तक के अधिकारियों का किसी न किसी रूप में हिस्सा होता है। यही कारण है कि इस तरह की शिकायतें विभाग में होती भी हैं तो उन्हें दबा दिया जाता है।  यात्री भी आम तौर पर अन्वेषक को गवाही देने और बाद में न्यायालय में गवाही देने की परेशानियों से बचने के लिए शिकायत करने में रुचि नही

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