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चैक क्या है? और हुंडी और चैक का फर्क

चैक अनादरण को अपराध बनाने वाले इस कानून की जाँच परख करने के पहले हम जाँचते चलें कि माजरा क्या है। परक्राम्य विलेख अधिनियम 1881 का बना हुआ है। इस में धन के लेन देन के लिए लिखे जाने वाले चिट्ठों संबंधी बिन्दु शामिल हैं। इस में एक शब्द है “बिल ऑफ एक्सचेंज” (Bill of Exchange), हिन्दी में हम इसे विनिमय पत्र कह सकते हैं लेकिन परंपरागत रूप से इसे हुंडी कहा जाता है। इस की परिभाषा देते हुए यह कानून कहता है कि …”बिल ऑफ एक्सचेंज” या हुंडी एक लिखित विपत्र है जिस पर लिखने वाले के हस्ताक्षर होते हैं और उस में किसी व्यक्ति को बिनाशर्त आदेश दिया हुआ होता है कि इस विपत्र के धारक को या उस में अंकित व्यक्ति को उस में अंकित धनराशि दे दी जाए।

इसी तरह से चैक को इस कानून में परिभाषित किया हुआ है जिस में कहा गया है कि
चैक एक “बिल ऑफ एक्सचेंज” या हुंडी है जो उस में चिन्हित बैंक द्वारा प्रस्तुत करने पर भुगतान योग्य होता है।

कुल मिला कर चैक तीन व्यक्तियों के बीच धन के लेन-देन को लेकर लिखा गया विपत्र मात्र है। इस का संबंध चैक देने वाले और चैक जिस को दिया गया है, अथवा जिस के पास है, अथवा जिस के द्वारा बैंक को प्रस्तुत किया जाता है तथा बैंक के बीच का मामला है।

“बिल ऑफ एक्सचेंज” या हुंडी में केवल दो पक्षकार थे। यहाँ चैक में तीसरे पक्षकार के रूप में बैंक और जुड़ गया है। यही एक अंतर दोनों के बीच है।

बैंक द्वारा चैक के अनादरण को एक दंडनीय अपराध बनाया गया है, इस का अर्थ यही निकाला जा सकता है कि बैंक ही वह तत्व है जो चैक के अनादरण को दंडनीय अपराध बना सकता है। हुंडी में बैंक बीच में नहीं था तो उस का अनादरण आज तक दंडनीय नहीं है।

मैं ने पिछले आलेख में बताया था कि चैक के अनादरण के कानून को बनाए जाने के समय यह कारण बताया गया था कि इस से चैक जैसे महत्वपूर्ण विलेख के उपयोग की संस्कृति को विकसित करने और आम बनाने में मदद मिलेगी। इस से जैसी संस्कृति विकसित हो रही है वह सभी देख रहे हैं। अभी से देश की राजधानी राज्य दिल्ली की मजिस्ट्रेट अदालतों में 55% से अधिक मुकदमे केवल धारा 138 के अंतर्गत इसी मामले के हैं। अदालतों के कामकाज का यातायात जाम हो रहा है। (जारी)

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