तीसरा खंबा

छायाप्रति (Xerox or Photo Copy) कब साक्ष्य में मान्य है?

ज कल छायाप्रति का बहुत चलन है। मूल को बहुत संभाल कर रखा जाता है और छायाप्रति का लगभग सभी स्थानों पर उपयोग किया जा रहा है। पहचान के लिए सचित्र पहचान पत्र का उपयोग किया जाता है। शनैः शनैः स्थिति यह हो चुकी है कि हम छायाप्रतियों पर बहुत विश्वास करने लगे हैं। बहुत लोग सोचते हैं कि छायाप्रति किसी भी घटना का अच्छा प्रमाण है। पर क्या यह वास्तव में अच्छा प्रमाण है? मुझ से अनेक बार पूछा जाता है कि मेरे पास प्रमाण स्वरूप छायाप्रति है, क्या इसे न्यायालय में मान्य किया जाएगा? 
छायाप्रति प्रमाण हो सकती है। लेकिन वह उप श्रेणी का प्रमाण है, जिसे हम द्वितीयक साक्ष्य कहते हैं। न्यायालय में किसी मामले में उस का उपयोग केवल कुछ विशिष्ठ परिस्थितियों में अन्य प्राथमिक साक्ष्य से प्रमाणित किया जाकर ही किया जा सकता है। सामान्य परिस्थितियों में किसी भी प्रलेख की छायाप्रति को न्यायालय मान्य नहीं करता और साक्ष्य में स्वीकार नहीं करता। किसी द्वितीयक साक्ष्य को जिन परिस्थितियों में साक्ष्य में स्वीकार किया जा सकता है, उन्हीं परिस्थितियों में एक छायाप्रति को भी साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है –

किसी द्वितीयक साक्ष्य को किसी प्रलेख के अस्तित्व, हालत और अंतर्वस्तु को प्रमाणित करने के लिए न्यायालय निम्न परिस्थितियों में स्वीकार कर सकता है –
1. जब न्यायालय आश्वस्त हो कि मूल प्रलेख ऐसे व्यक्ति के शक्ति या आधिपत्य में है, जिस के विरुद्ध उसे प्रमाणित किया जाना है, या ऐसे व्यक्ति के कब्जे में है जिसे न्यायालय प्रस्तुत करने के लिए आदेश नहीं दे सकती, या ऐसे व्यक्ति के कब्जे में है जिसे न्यायालय द्वारा उसे प्रस्तुत करने की सूचना देने के बाद भी उस ने प्रस्तुत नहीं किया है;
2.    जब मूल नष्ट हो चुका हो, या खो गया हो और उस की अंतर्वस्तु को साक्ष्य में प्रस्तुत करने के लिए आतुर पक्षकार स्वयं की उपेक्षा और व्यतिक्रम के अतिरिक्त किसी अन्य  कारण से उसे युक्तियुक्त समय प्रस्तुत करने में समर्थ न हो; 
3.    जब मूल की प्रकृति ऐसी हो कि उसे आसानी से इधर-उधर नहीं ले जाया जा सकता हो; (उक्त तीनों 1, 2, व 3 परिस्थितियों में कोई भी द्वितीयक साक्ष्य ग्राह्य है)
4.    जब मूल प्रलेख को जिस के विरुद्ध उसे साबित किया जाना है, उस व्यक्ति या उस के हित-प्रतिनिधि द्वारा उस प्रलेख के अस्तित्व, हालत और अंतर्वस्तु को लिखित रूप से स्वीकार किया जाना प्रमाणित कर दिया गया हो; (यहाँ स्वीकार किए जाने की लिखत ग्राह्य है)
5.    जब मूल साक्ष्य अधिनियम की धारा 74 के अर्थ में एक जनप्रलेख हो;
6.    जब मूल ऐसा प्रलेख हो जिस की प्रमाणित प्रति को साक्ष्य अधिनियम या भारत में प्रवृत्त किसी अन्य किसी विधि के अनुसार साक्ष्य में ग्राह्य किया गया हो; (परिस्थिति 5 व 6 में प्रलेख की केवल प्रमाणित प्रति ही ग्राह्य है)
7.    जब मूल ऐसे अनेक लेखाओं या अन्य प्रलेखों से गठित हो जिस की न्यायालय में सुविधाजनक रीति से परीक्षा नहीं की जा सकती हो और जिस तथ्य को साबित किया जाना हो वह वह संपूर्ण संग्रह का सामान्य परिणाम हो किन्तु इस सामान्य परिणाम की साक्ष्य ऐसे व्यक्ति द्वारा ही की जा सकती है जिस ने मूल का परीक्षण किया हो और वह उस परीक्षा करने के लिए कुशल व्यक्ति हो।

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